...क्या सुपर क्रेजी और मैजिकल फिल्म है
- डायरेक्शन: प्रकाश कोवेलामुडी
- स्टोरी, स्क्रीनप्ले व डायलॉग्स: कनिका ढिल्लों
- म्यूजिक: रचिता अरोड़ा, अर्जुन हरजाई
- बैकग्राउंड स्कोर: डेनियल बी. जॉर्ज
- सिनेमैटोग्राफी: पंकज कुमार
- एडिटिंग: श्वेता वेंकट, प्रशांत रामचंद्रन, शीबा सहगल
- स्टार कास्ट: कंगना रनौत, राजकुमार राव, जिमी शेरगिल, अमायरा दस्तूर, अमृता पुरी, हुसैन दलाल, सतीश कौशिक, बृजेन्द्र काला, ललित बहल
- रनिंग टाइम: 121 मिनट
इस बीच कहानी में कपल केशव (राजकुमार राव) व उसकी पत्नी रीमा (अमायरा दस्तूर) की एंट्री होती है। वे बॉबी के पुश्तैनी घर में किरायेदार बनकर आते हैं। बॉबी, केशव व रीमा की पर्सनल लाइफ में ताका-झांकी करती रहती है। उनकी इंटीमेसी देखकर बॉबी अपनी खयाली दुनिया में केशव के साथ रीमा की बजाय खुद को महसूस करने लगती है। कुछ हद तक वह केशव से ऑब्सेस्ड है। इधर केशव भी उसके साथ अजीब व्यवहार करता है। अचानक रीमा की रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो जाती है। बॉबी के शक की सुई केशव की तरफ घूमती है और वह तहकीकात में जुटी पुलिस से कहती है कि केशव ने ही रीमा की हत्या की है। कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस इसे एक्सीडेंट मानकर केस को बंद कर देती है। इसके बाद कहानी कई दिलचस्प मोड़ से गुजरती हुई अंजाम तक पहुंचती है।
मजेदार पटकथा और सलीकेदार निर्देशन
कनिका ढिल्लों ने स्क्रिप्ट में किरदारों को रोचकता के साथ बुना है। स्क्रीनप्ले मजेदार है। फर्स्ट हाफ में तो रोमांच चरम पर है, जो कॉमेडी और किरदारों के क्रेजीनेस के साथ आगे बढ़ता है। सेकेंड हाफ में कुछ दृश्य अखरते हैं, क्योंकि उन्हें खींचा हुआ है। कहानी को क्लाइमैक्स तक पहुंचाने में ये दृश्य रोचकता की गति को प्रभावित करते हैं, पर क्लाइमैक्स में थ्रिल जबरदस्त है। संवाद अच्छे हैं, जो कहानी के माहौल में घुले हुए हैं। कुछ चुटीले संवाद भी हैं जो ह्यूमर क्रिएट करते हैं। निर्देशक प्रकाश का स्टोरीटेलिंग अंदाज स्टाइलिश और अन्कन्वेंशनल है। निर्देशक ने थ्रिल को बढ़ाने के लिए जिस तरह के कलरफुल इमेजेज वाले सेट्स का इस्तेमाल किया है, वह काफी अलग फील देता है।कंगना का कमाल, राजकुमार बेमिसाल
मानसिक बीमार लड़की के रोल में कंगना की परफॉर्मेंस वाकई कमाल की है। उन्होंने कैरेक्टर के मिजाज को पकड़ते हुए उसके मनोभाव को शिद्दत से पर्दे प्रस्तुत किया है। वह इस किरदार के लिए परफेक्ट चॉइस हैं। 'क्वीन' कंगना से राजकुमार भी पीछे नहीं हैं। कैरेक्टर के वैरिएशन के साथ राजकुमार की अदाकारी में जो परफेक्शन दिखता है, वह लाजवाब है। अमायरा क्यूट लगी हैं, पर उन्हें प्रॉपर स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। हुसैन दलाल फिल्म के मसखरे हैं, जो अपनी स्क्रीन प्रजेंस से खिलखिलाकर हंसने का अवसर देते हैं। अमृता पुरी ओके हैं। स्पेशल अपीयरेंस में जिमी शेरगिल के कंगना के साथ वाले कुछ दृश्य अच्छे बन पड़े हैं। कैमियो में सतीश कौशिक और बृजेंद्र काला अपना काम बखूबी पूरा करते हैं। म्यूजिक निराश करता है। कोई ऐसा गाना नहीं, जो याद रह जाए। बैकग्राउंड स्कोर बढिय़ा है। कैमरा वर्क और संपादन ठीक है। फिल्म में थ्रिल के साथ मेंटल इलनेस से पीड़ित लोगों के प्रति मैसेज देने का भी प्रयास किया है। यही नहीं, निर्देशक ने दूसरे हाफ में कहानी को रामायण के प्रसंगों में ढालकर दर्शकों के सामने रखा है, जिसमें कुछ सीन कन्फ्यूज करते हैं तो कुछ कौतुहल पैदा करते हैं। इस दौरान 'हर चेहरे में रावण छिपा है...सवाल यह है कि क्या सीता खुद को बचा पाएगी' सरीखे संवाद एक अलग फील देते हैं।क्यों देखें: 'जजमेंटल है क्या' में किरदारों का पागलपन दिल में कुछ हरकत पैदा करता है। प्रॉमिसिंग स्क्रिप्ट और उसका बेहतर एक्जीक्यूशन इसे सुपर क्रेजी व मैजिकल फिल्म बनाता है। कंगना और राजकुमार की अमेजिंग परफॉर्मेंस जॉय राइड की तरह है। फिल्म में फन और थ्रिल दोनों हैं, साथ ही सोशल मैसेज भी। यही नहीं, अंत तक सस्पेंस भी बना रहता है। लिहाजा बिना जजमेंटल हुए देखें फिल्म, जरूर मजा आएगा।
रेटिंग: ★★½
1 Comments
Yes .... it's sounds good ...we must go to watch this movie
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