यह एक कॉमेडी फिल्म है, चल 'झूठा कहीं का'


  • डायरेक्शन: समीप कंग
  • राइटिंग: वैभव सुमन, श्रेया श्रीवास्तव
  • म्यूजिक: यो यो हनी सिंह, राहुल-संजीव-अजय, अमजद नदीम, काशी रिचर्ड, सिद्धांत माधव
  • सिनेमैटोग्राफी: आकाशदीप पांडे
  • एडिटिंग: अशफाक मकरानी
  • स्टार कास्ट: ऋषि कपूर, जिमी शेरगिल, ओमकार कपूर, सनी सिंह, निमिषा मेहता, रुचा वैद्य, मनोज जोशी, लिलेट दुबे, राजेश शर्मा, राकेश बेदी
  • आइटम नंबर: सनी लियोनी
  • रनिंग टाइम: 132.56 मिनट
'चक दे फट्टे', 'कैरी ऑन जट्टा' जैसी पंजाबी फिल्में बना चुके समीप कंग अब बॉलीवुड फिल्म 'झूठा कहीं का' लेकर आए हैं, जिसकी कहानी झूठ के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में नायक अपने एक झूठ को छिपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलते रहते हैं। फिल्म में एक बार फिर 'प्यार का पंचनामा 2' मूवी फेम ओमकार कपूर और सनी सिंह साथ में नजर आए हैं, लेकिन घिसी-पिटी कहानी के कारण उनकी जुगलबंदी वह जादू क्रिएट नहीं कर पाई, जो 'प्यार का पंचनामा 2' में देखने को मिला था। इस कारण​ इसे कोई कॉमेडी फिल्म कहे तो आपके मुंह से बरबस ही निकल पड़ेगा, चल 'झूठा कहीं का'।

झूठ की बुनियाद पर ​खड़ी कहानी में​ रिश्तों की पकी खिचड़ी 

फिल्म की कहानी में वरुण (ओमकार कपूर) व करण (सनी सिंह) अच्छे दोस्त हैं और मॉरीशस में रहते हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद दोनों लंबे समय से जॉब की तलाश में हैं। करण को सोनम (रुचा वैद्य) से प्यार है। सोनम अपने इस रिश्ते को जल्द से जल्द शादी का नाम देना चाहती है लेकिन करण को अपने भाई टॉमी पांडे (जिमी शेरगिल) के लौटने का इंतजार है, जो कि फ्रॉड केस में जेल में बंद है। मगर करण ने सोनम को यह कह रखा है कि उसका भाई अमरीका में बिजनेस के लिए गया हुआ है। भाई के लौटने पर वह उन्हें लेकर उसके माता-पिता से शादी की बात करने आएगा। वहीं, एक शादी समारोह में वरुण की मुलाकात रिया (निमिषा मेहता) से होती है। उसको पटाने के चक्कर में वरुण खुद को अनाथ बता देता है। उसका यह झूठ काम कर जाता है। इसके बाद वरुण और रिया की शादी हो जाती है। यही नहीं, वरुण घर जमाई बनकर रहने लगता है। लेकिन असलियत यह है कि वरुण के पिता योगराज सिंह (ऋषि कपूर), मामा कोका (राजेश शर्मा) व मामी पंजाब में रहते हैं। कहानी में मोड़ तब आता है जब योगराज सिंह फैमिली सहित मॉरीशस आ जाते हैं और रिया के पैरेंट्स से ही उनका एक घर किराये पर ले लेते हैं। इसके बाद शुरू होता है झूठ और लुका-छुपी का खेल।

स्क्रिप्ट नहीं, झूठ का पुलिंदा

स्क्रिप्ट में फ्रेशनेस का अभाव है। लचर स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म एंटरटेन नहीं करती। करीब सवा दो घंटे की इस फिल्म को झेलना किसी चुनौती से कम नहीं है। कुछ कॉमिक पंच और फनी मोमेंट्स को छोड़ दिया जाए तो फिल्म सपाट तरीके से आगे बढ़ती है। निर्देशन में समीप की पकड़ कमजोर रही है, जिस कारण फिल्म बोरियत के सिवाय कोई एक्सपीरियंस नहीं देती।  ओमकार कपूर और सनी सिंह की परफॉर्मेंस कामचलाऊ है। ऋषि कपूर जरूर अपने अभिनय से फिल्म का फ्लो बनाए रखते हैं। राजेश शर्मा के साथ उनकी नोक-झोंक दिलचस्प है। वहीं लिलेट दुबे और मनोज जोशी के साथ वाले उनके कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं। निमिषा मेहता का काम ठीक-ठाक है लेकिन रुचा को फिल्म में ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। जिमी की एंट्री इंटरेस्टिंग है, पर अब वह टाइपकास्ट हो गए हैं। छोटे से रोल में राकेश बेदी जमे हैं। गीत-संगीत औसत है। सिर्फ 'सैटरडे नाइट' सॉन्ग ही थोड़ा याद रखने लायक है। सिनेमैटोग्राफी ठीक है, पर संपादन ढीला है।

एकदम वैल्ले हैं तो ही देखें

'झूठा कहीं का' में न तो अच्छी कहानी है और न ही उम्दा कॉमेडी। ऋषि कपूर, राजेश शर्मा और अन्य कलाकारों की परफॉर्मेंस के लिए फिल्म देख सकते हैं। वह भी तब, जब आपके पास एंटरटेनमेंट का कोई और ऑप्शन न हो। वैसे अगर फिल्म नहीं भी देखें तो कुछ मिस नहीं करेंगे।

रेटिंग: ½