सुपर से ऊपर वाला आनंद नहीं देती 'सुपर 30'


  • डायरेक्शन: विकास बहल
  • राइटिंग: संजीव दत्ता
  • म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: अजय-अतुल
  • लिरिक्स: अमिताभ भट्टाचार्य
  • सिनेमैटोग्राफी: अनय गोस्वामी
  • एडिटिंग: ए. श्रीकर प्रसाद
  • स्टार कास्ट: ऋतिक रोशन, मृणाल ठाकुर, नंदीश सिंह, पंकज त्रिपाठी, वीरेंद्र सक्सेना, आदित्य श्रीवास्तव, अमित साध, मानव गोहिल, राजेश शर्मा, अली हाजी, करिश्मा शर्मा
  • रनिंग टाइम: 154 मिनट
बॉलीवुड में पिछले कुछ सालों से रीयल लाइफ कैरेक्टर से प्रेरित फिल्में बनाने का दौर चल रहा है। इस कड़ी में अब 'क्वीन' फेम निर्देशक विकास बहल पटना बेस्ड गणित के टीचर और सुपर 30 एजुकेशन प्रोग्राम के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर, मगर टैलेंटेड स्टूडेंट्स को आईआईटी में एडमिशन के लिए जेईई की कोचिंग देने वाले आनंद कुमार के जीवन से प्रेरित फिल्म 'सुपर 30' लेकर आए हैं। फिल्म में दिखाया है कि आनंद को 'सुपर 30' शुरू करने और उसे कामयाब बनाने के लिए कितना स्ट्रगल करना पड़ा। हालांकि वह इस कहानी को उतनी रोचकता से प्रस्तुत करने में चूक गए, जितनी दिलचस्प आनंद की कहानी है। यही नहीं, कहानी प्रजेंट करते समय निर्देशक ने सिनेमैटिक लिबर्टी ली है। साथ ही आनंद से जुड़ी कंट्रोवर्सी से भी दूरी बनाए रखी है। एक्टिंग में 'काबिल' ऋतिक रोशन के कंधों पर पूरी फिल्म टिकी है, जिन्होंने फिल्म में आनंद की भूमिका निभाई है।

ब्रिलिएंट आनंद की सुपर कहानी  

कहानी में आनंद कुमार गणित विषय को लेकर पैशनेट है। गणित के जटिल सवालों को वह चुटकी में हल कर देता है। उसे शिक्षा मंत्री द्वारा रामानुजन गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाता है और वह उसे यह आश्वासन भी देते हैं कि अगर उसे किसी भी तरह की सहायता की जरूरत पड़े तो उनके घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं। वह एक फॉरेन जर्नल में आर्टिकल के लिए जटिल गणितीय समस्या को हल करके भेजता है। उसकी काबिलियत की वजह से कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में उसे एडमिशन मिल जाता है, लेकिन पोस्टमैन की नौकरी करने वाले उसके पिता अपने पीएफ से भी उसकी पूरी फीस नहीं भर पाते। ऐसे में आनंद आर्थिक मदद के लिए शिक्षा मंत्री के पास जाता है लेकिन वहां उसे निराशा ही हाथ लगती है। इसी टेंशन में उसके पिता का निधन हो जाता है। घर चलाने की मजबूरी में आनंद पापड़ बेचने लगता है। एक दिन एक्सीलेंस कोचिंग सेंटर संचालक लल्लन सिंह की कार से उसकी साइकिल को टक्कर लग जाती है। लल्लन की नजर आनंद पर पड़ती है। वह आनंद के टैलेंट से परिचित है, इसलिए वह आनंद को अपने कोचिंग में पढ़ाने के लिए रख लेता है। आनंद के पढ़ाने के अंदाज से उसके कोचिंग का नाम हो जाता है और वह जमकर धन कमाने लगता है। आनंद भी उसी रंग में रंग जाता है लेकिन एक रात पार्टी के बाद वह सड़क किनारे एक लड़के को गणित के सवाल हल करते देखता है, जो कि आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ चुका है। तब आनंद को अहसास होता है कि वह भी कभी इस दौर से गुजरा है। तब वह वंचित तबके के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने का फैसला करता है। इसके बाद कहानी में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।

फर्स्ट हाफ मजेदार, सेकंड हाफ में पटरी से उतरी कहानी

यों तो आनंद की कहानी में काफी संभावनाएं हैं और संजीव दत्ता ने उनको स्क्रिप्ट में पिरोने का प्रयास भी किया है। लेकिन कई घटनाओं को प्रस्तुत करने का अंदाज ऐसा है, जिससे वे अवास्तविक सी लगती हैं। फिल्म का पहला हाफ मजेदार है, जिसका स्क्रीनप्ले सलीके और रोचकता के साथ लिखा गया है लेकिन इंटरवल के बाद स्क्रीनप्ले पकड़ खोने लगता है। यहां बहुत कुछ ऐसा होता है जो फिल्म की तारतम्यता को प्रभावित करता है। हालांकि डायलॉग्स अच्छे हैं, जैसे- 'अब राजा का बेटा राजा नहीं बनता...वो बनता है जो हकदार होता है', 'आपत्ति से ही आविष्कार का जन्म होता है' आदि। विकास का निर्देशन ठीक-ठाक है लेकिन उस लेवल का नहीं है, जैसा फिल्म 'क्वीन' का था। अभिनय की बात करें तो ऋतिक ने आनंद के किरदार को स्क्रीन पर उतारने के लिए काफी मेहनत की है। उनकी बॉडी लैंग्वेज और वेशभूषा प्रभावित करती है, वहीं बिहारी एक्सेंट भी ध्यान खींचता है। हालांकि उनका डार्क स्किन टोन और आई कलर मजा थोड़ा किरकिरा कर देता है। आनंद की लवर की भूमिका में मृणाल ठाकुर को स्पेस तो ज्यादा नहीं मिला, पर इम्प्रेसिव लगी हैं। नेगेटिव शेड्स में टीवी शो 'सी.आई.डी.' फेम आदित्य श्रीवास्तव जमे हैं। वहीं शिक्षा मंत्री की भूमिका में पंकज त्रिपाठी अपनी परफॉर्मेंस में कुछ नयापन नहीं ला पाए। वीरेंद्र सक्सेना और नंदीश सिंह का काम अच्छा है। विजय वर्मा, अमित साध और सुपर 30 के स्टूडेंट्स बने कलाकारों ने सहज अभिनय किया है। म्यूजिक कमजोर है। सिर्फ 'जुगराफिया' गाना ही थोड़ा ठीक कहा जा सकता है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है, लेकिन एडिटिंग क्रिस्प नहीं है।

क्यों देखें: 'सुपर 30' में ऋतिक की परफॉर्मेंस अच्छी है। पटकथा व निर्देशन पर थोड़ी और मेहनत की गई होती तो फिल्म आनंद के सुपर 30 की तरह कमाल की हो सकती थी। बहरहाल, ऋतिक की एक्टिंग और आनंद के संघर्ष की दिलचस्प दास्तान के लिहाज से 'सुपर 30' वन टाइम वॉच फिल्म है।

रेटिंग: ½