12 एंग्री मैन... Not Guilty!
नाटक : 12 एंग्री मैन (12 Angry Men)
मंच : रंगायन सभागार, जवाहर कला केंद्र
कब मंचन : 27 जुलाई, शनिवार शाम सात बजे
फेस्टिवल : नटराज महोत्सव 2024
आयोजक : जवाहर कला केंद्र, रजा फाउंडेशन और एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक
लेखक : रेजीनॉल्ड रोज (Reginald Rose)
हिंदी रूपांतरण : रंजीत कपूर (Ranjit Kapoor)
निर्देशक : विशाल विजय (Vishal Vijay)
प्रस्तुति : फोर्थ वॉल ड्रामेटिक सोसाइटी
12 लोग एक-एक करके एक कमरे में दाखिल होते हैं। ये अलग-अलग वर्ग, परिवेश और पेशे से हैं। सभी एक-दूसरे के लिए अजनबी हैं यानी पहले कभी नहीं मिले हैं। इन्हें अदालत ने एक अहम जिम्मेदारी दी है। 19 साल के एक लड़के पर अपने पिता के कत्ल का आरोप है। जूरी के इन 12 सदस्यों को सर्वसम्मत होकर यह फैसला देना है कि आरोपी कसूरवार (Guilty) है या बेकसूर (Not guilty)। कमरे में दाखिल होते ही ये जूरी मेंबर जल्दबाजी में दिखते हैं। किसी जूरी मेंबर को पत्नी के साथ फिल्म देखने जाना है तो किसी को अपना जरूरी काम निपटाना है। सभी को लगता है कि 5 मिनट में फैसले पर पहुंच जाएंगे, क्योंकि इस मामले के सबूतों, चश्मदीद की गवाही और लड़के की पृष्ठभूमि के आधार पर इनकी सोच में यह 'ओपन-एंड-शट केस' है। तकरीबन सभी ने राय बना रखी है कि लड़का कसूरवार है।
चूंकि फैसले पर पहुंचने के लिए सभी को एकमत होना है तो एक जूरी मेंबर के सुझाव पर वोटिंग शुरू होती है। एक-एक करके 11 जूरी मेंबर 'दोषी' के पक्ष में वोट देते हैं, लेकिन केवल एक, जूरी मेंबर 8 का मानना है कि लड़का 'निर्दोष' हो सकता है। जूरी मेंबर 8 श्योर नहीं है कि लड़का कसूरवार है। यह सुनते ही जूरी के अन्य सदस्य उस पर झल्ला पड़ते हैं। जूरी मेंबर 8 अन्य 11 सदस्यों को कहते हैं कि वे अपने तर्कों से उन्हें यकीन दिलाएं कि लड़का कसूरवार है। अब तीखी बहस शुरू हो जाती है। इस दौरान जूरी मेंबर 3 और 10 बार-बार आग बबूला होते रहते हैं। दलील पेश करने के दौरान जूरी के सदस्यों के असली चेहरे, निजी विचार और सामाजिक पूर्वाग्रह उभर कर सामने आते हैं। यहां तक कि जूरी मेंबर एक-दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकते हैं।
दोबारा वोटिंग होती है तो जूरी मेंबर 9 भी बेकसूर के पक्ष में हो जाते हैं। जब भी वोटिंग होती है तो कोई न कोई सदस्य बेकसूर के पक्ष में होता जाता है। कसूरवार और बेकसूर के पक्ष में स्थिति 6-6 पर बराबर हो जाती है। जैसे-जैसे तर्कों से उलझनें सुलझने लगती हैं तो कसूरवार के पक्ष में तीन वोट रह जाते हैं। ये वोट जूरी मेंबर 3, 4 और 10 के होते हैं। वह स्थिति भी आ जाती है, जो शुरुआती वोटिंग के एकदम उलट होती है यानी 11 जूरी मेंबर की नजर में लड़का बेकसूर है। सिर्फ एक, जूरी मेंबर 3 अपने फैसले पर अडिग हैं। उन्हें लगता है कि आजकल के बच्चे अपने माता-पिता से दुर्व्यवहार और लड़ाई-झगड़ा करते हैं। यकीनन उस लड़के ने ही अपने पिता की हत्या की है, इसलिए उसे सजा मिलनी ही चाहिए। हालांकि, क्लाइमैक्स में जूरी मेंबर 3 ऐसा राज खोलते हैं, जिससे वे सभी को हैरान कर देते हैं।
नाटक शुरू होने के बाद हौले-हौले अपनी लय पकड़ता है। जल्द ही वह समय आ जाता है, जब नाटक की लय और ऑडियंस के आनंद की ताल एक-दूसरे को मैच करने लगती है। दर्शक नाटक के हर रस का आनंद लेने लगते हैं। किरदारों के पंच डायलॉग की तारीफ करते हैं तो सिचुएशनल कॉमेडी पर ठहाके लगाते हैं। संवाद प्रधान इस नाटक की खूबसूरती एक कमरे के सेट में अभिनेताओं की चहलकदमी, लकड़ी की लंबी मेज व कुर्सी पर बैठने-उठने का अंदाज और भाव-भंगिमाएं हैं। नाटक में मर्डर वेपन चाकू और ट्रेन के गुजरने की आवाज का रोचक ढंग से इस्तेमाल किया गया है। करीब 90 मिनट की यह प्रस्तुति वैचारिक और भावनात्मक स्तर पर ऑडियंस को कनेक्ट करके रखती है। जैसे-जैसे समय बीतता है और जूरी मेंबर के बीच तनाव बढ़ता है, उनका असली स्वभाव एक-दूसरे और दर्शकों के सामने प्रकट होता है। वृद्ध जूरी सदस्य हमें उम्र के साथ आने वाली समझदारी की याद दिलाते हैं, और यह भी कि कैसे समाज में बुजुर्गों को अक्सर अनदेखा और उपेक्षित किया जाता है। एक्टिंग, डायरेक्शन और बैक स्टेज तीनों के लिहाज से यह एक सधी हुई प्रस्तुति है। नाटक में संगीत और साउंड इफेक्ट का न्यूनतम उपयोग किया है, जो दर्शकों को जूरी के रूम में मौजूद अजीब चुप्पी, तनाव और बेचैनी को सही ढंग से अनुभव करने का मौका देता है।
हर एक्टर ने अपने किरदार के मिजाज को आत्मसात करते हुए परफॉर्म किया है। यही वजह है कि स्वभाव के अनुरूप कोई किरदार आक्रामक तो कोई शांत नजर आता है। जूरी मेंबर 1 से 12 तक के किरदार क्रमश: संचित जैन, अंकित शर्मा, योगेन्द्र सिंह, चित्रार्थ मिश्रा, कमलेश बैरवा, राहुल पंवार, रितिक शर्मा, संदीप मिश्रा, गौरव कुमार, आकिब मिर्जा, दीपक गुर्जर और दीक्षांक शर्मा ने अदा किए। विनय सैनी ने गेटकीपर का किरदार निभाया। देशराज गुर्जर ने लाइटिंग और विमल मीणा ने संगीत संयोजन का जिम्मा बखूबी संभाला। '12 एंग्री मैन' विपरीत परिस्थितियों का साहस से सामना करते हुए न्याय की खोज की एक क्लासिक कहानी का उम्दा और दिलचस्प प्रस्तुतीकरण है। यह शांत और भावनात्मक अपील से लेकर सिर्फ चिल्लाने तक, तर्क के विभिन्न रूपों को प्रदर्शित करता है। नाटक में उस समय का ‘जीवंत’ दृश्य देखने को मिलता है, जब अदालती फैसले जूरी मेंबर किया करते थे। कुल मिलाकर, यह प्रस्तुति देखने लायक है।
आखिर में आपको बताते चलें कि अमेरिकी नाटककार रेजीनॉल्ड रोज ने '12 एंग्री मैन' को एक टेलीप्ले के रूप में लिखा था, जो 1954 में CBS के स्टूडियो वन पर प्रसारित हुआ था। शुरुआती सफलता के बाद, रोज ने स्टेज प्रोडक्शन के लिए स्क्रिप्ट का विस्तार किया। सैन फ्रांसिस्को के मरीना ऑडिटोरियम में 1955 में स्टेज शो की शुरुआत की। 1957 में हॉलीवुड डायरेक्टर सिडनी लुमेट (Sidney Lumet) ने इसी टाइटल से फिल्म बनाई। यही नहीं, बासु चटर्जी ने भी इस पर हिंदी फिल्म 'एक रुका हुआ फैसला' (1986) बनाई थी।
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