थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं...

और इस दिल में क्या रखा है, तेरा ही दर्द छुपा रखा है...

फलक पे टिमटिमाते सितारे और जमीं पे गुनगुनाते तराने... सूरज ढलने के बाद सुरों का यह नजराना मशहूर पार्श्व गायक सुरेश वाडकर (Suresh Wadkar) ने पेश किया। जिनके गाए गीत अस्सी और नब्बे के दशक में जवानी की दहलीज पर कदम रखने वालों के हमजोली और धड़कन रहे हैं। उनके सदाबहार नगमों को एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के एरा में भी उसी शिद्दत से सुना जाता है, जिस संजीदगी से उस जमाने में सुना जाता था। बहरहाल, जैसे ही मंच पर आकर फनकार सुरेश वाडकर ने अपनी मखमली आवाज में 'और क्या अहद-ए-वफ़ा होते हैं...' से सुरीला दस्तर-ख़्वान बिछाया, उनको सुनने को बेकरार संगीत प्रेमी पलक झपकते ही दावत-ए-मौसिकी में शरीक हो गए। आर. डी. बर्मन के संगीत से सजे फिल्म 'सनी' (1984) के इस गाने से आगाज के साथ ही संगीत प्रेमी दिल से फ़िदा होकर इस सुरमयी महफिल के हमसफर हो गए। 

यह आशनाई 'मैं हूं प्रेम रोगी...' गीत के साथ परवान चढ़ने लगी। इस गीत के एहसास के साथ ही दर्शकों का गुल गुलशन गुलजार हो गया और अपने प्रेम के खयालों में डूब गए। फिल्म 'प्रेम रोग' (1982) में इस गाने को लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने संगीतबद्ध किया था। फिल्म 'प्रेम रोग' सुरेश वाडकर के कॅरियर के लिए टर्निंग पॉइंट रही थी। इसमें उनके गाए गाने आज भी लोगों की जुबां पर हैं। ऑडियंस की भारी फरमाइश पर जब सुरेश वाडकर ने 'और इस दिल में क्या रखा है...' पर सुर लगाना शुरू किया तो जवां लोगों के टूटे दिल की पीर उभर आई। दीवानों को छुपे हुए इस दर्द से अपने प्यार का अफसाना याद आ गया। निगाहों के सामने अपने यार की सूरत नजर आने लगी और धड़कते सीने में पाकीज़ा मोहब्बत इबादत बनकर महसूस होने लगी। संजय दत्त, फरहा और रोहन कपूर अभिनीत फिल्म 'ईमानदार' (1987) में रूमानियत से लबरेज इस गीत को कल्याणजी-आनंदजी ने संगीतबद्ध किया था। सुरेश की पुर-कशिश आवाज में इस गीत को सुनकर दिल रो पड़ा और आंखों में नमी आ गई।

शिव-हरि के संगीत से सजा फिल्म 'चांदनी' (1989) का 'लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है...' तराना छेड़ा तो लोगों को वो दिन याद आ गए जब वे अपने अज़ीज़ से मिले थे। वो बीते दिन जब चमन में नहीं, फूल दिल में खिले थे। ख़्वाबों-खयालों की बातों वाले इस गीत को सुरेश ने अपने दोस्त दिवंगत अभिनेता विनोद खन्ना को समर्पित किया।

इस सरगम में अब बारी आई ग़ज़ल की। यह ग़ज़ल थी फिल्म 'गमन' (1978) की 'सीने में जलन, आंखों में तूफ़ान सा क्यूं है...'। इसे सुनकर हर शख़्स को अपनी परेशानी का स्मरण होने लगा। सुरेश ने ग़ज़ल का शेर 'क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में, आईना हमें देख के हैरान सा क्यूं है' को गुनगुनाते हुए दर्शकों से अपने बारे में खयालात पूछे। इस तन्हाई की खामोशी टूटती है फिल्म 'सदमा' (1983) के गाने 'ऐ ज़िंदगी गले लगा ले...' से। गुलजार की कलम से निकले इस गीत को फिल्म में इलैयाराजा ने संगीत से अलंकृत किया था। परदे पर यह कमल हासन और श्रीदेवी पर फिल्माया गया था। सुरेश ने गाने के बोल की मासूमियत और मिठास को बरकरार रखते हुए एक बार फिर इसे खूबसूरत अंदाज में अपने चाहने वालों के सामने पेश किया। इसे सुनकर अपने हर इक गम को गले से लगा चुके लोगों को जिंदगी का किनारा मिल गया।

ऑडियंस की खास फरमाइश पर जितेन्द्र और मौसमी चटर्जी की फिल्म 'प्यासा सावन' (1981) का नगमा 'मेघा रे मेघा रे...' गाकर प्रेम का संदेश बरसाया। जज्बात की बूंदें बरसने लगीं तो लोग खयालों की महफिल में गुम हो गए। मन का मयूरा मगन हो गया, प्रीत की पवन तन को छूने लगी। उमंगों का सागर उमड़ा तो प्रेम की भीगी-भीगी रुत भिगोने लगी। सुरेश वाडकर ने राजीव कपूर और मंदाकिनी की फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' (1985) के गीत 'हुस्न पहाड़ों का...' से फिज़ा में मधुरता घोल दी। पहाड़ी राग के झरने बहने लगे तो रुत सुहानी हो गई। यह अनुभूति होने लगी कि प्यार से रास्ता तो क्या जिंदगी भी कट जाती है। फिल्म में इस गीत को रविंद्र जैन ने रचा और संगीतबद्ध किया था।

फिर खत्म हुआ इंतजार 'मेरी किस्मत में तू नहीं शायद...' का। ऋषि कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे की फिल्म 'प्रेम रोग' का यह गाना अपने हमदम के बिछड़ जाने के जख्म को हरा कर देता है। हालांकि यह एहसास भी देता है कि प्यार का रिश्ता भले ही टूट गया, पर दु:ख के कांटों और गम की परछाइयों के बावजूद प्यार बरकरार है। आमिर खान-माधुरी दीक्षित की फिल्म 'दिल' (1990) का गाना 'ओ प्रिया प्रिया...' दिल टूटने के गम से जोड़े रखता है। आंसू पीकर जीने की मजबूरी का एहसास कराता है। लोग भरोसे और धोखे की दुविधा में पड़ जाते हैं। समीर के लिखे इस गाने को फिल्म में आनंद-मिलिंद ने संगीत दिया था। इस गाने के बाद सुरेश ने फिल्म 'हिना' (1991) की कव्वाली 'देर ना हो जाए कहीं...' से संगीत की महफिल की रौनक बढ़ा दी। गीत-संगीत के दीवाने आनंदित होकर झूमने लगे। फिर फिल्म 'भ्रष्टाचार' (1989) के गीत 'तेरे नैना मेरे नैनों से मीठी मीठी बातें करते हैं...' से दिल में मिठास उड़ेल दी।

सदाबहार फिल्मी तरानों का यह सिलसिला फिल्म 'उत्सव' (1984) के गीत 'सांझ ढले, गगन तले...' को भी छूकर निकला। 'राम तेरी गंगा मैली...' से अध्यात्म के गलियारों की सैर कराने की कोशिश की। सुरेश राजस्थान की धरती पर परफॉर्म कर रहे थे तो ऐसा भले कैसे हो सकता है कि राजस्थानी गीत न गाएं। सुरेश ने राजस्थानी गीत 'बन्ना रे बागां में झूला घाल्या...' पर अपनी आवाज का जादू बिखेरा। फिर फिल्म 'संगीत' (1992) का 'ओ रब्बा कोई तो बताए प्यार होता है क्या...' से उनकी आवाज कली-सी महकने लगी। लोगों ने भावनाओं की गागर के छलकने को महसूस किया। मन ऊंचे गगन में उड़ने लगा। इसके बाद उनके गले से निकले रूह को छूने वाले नगमे 'तुमसे मिलके ऐसा लगा...' से दर्शकों के दिल के अरमान पूरे हुए। जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर, माधुरी दीक्षित और नाना पाटेकर की फिल्म 'परिंदा' (1989) के इस गाने की दर्शक काफी समय से फरमाइश कर रहे थे। सुरेश ने सुनाने का जो वादा किया था, उसे पूरा किया तो दर्शकों को करार आया। उनका इंतजार खत्म हुआ और ऐसा लगा मानो हमदम मिल गया हो। गीतों की इस माला में नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी की फिल्म 'मासूम' (1983) के 'हुजूर इस कदर भी ना इतराके चलिए...' से हंसी की लड़ियों को बड़े दिलकश अंदाज में पिरोया। संगीत प्रेमियों को ऐसा लगा कि किसी अफसाने से मुलाकात हुई है। 

सुरेश ने जैसे ही मनोज वाजपेयी की फिल्म 'सत्या' (1998) का तराना 'सपने में मिलती है...' छेड़ा तो दर्शकों का रोम-रोम थिरकने लगा। गाने के हर बोल और बीट पर दूध के उबाल की तरह उछलने लगे। गाने में छुपे भावों को महसूस कर लोग अपनी उम्र भूल कर दिल बहलाते नजर आए। अपनी प्रस्तुति का समापन सुरेश ने गुलजार की फिल्म 'माचिस' (1996) के 'चप्पा चप्पा चरखा चले...' से किया। सभी संगीत प्रेमी मग्न होकर नाचने लगे। यहां तक कि गाने के बोल पर पूरे इमोशंस के साथ एक्ट भी कर रहे थे। फिल्म में इस गाने को विशाल भारद्वाज ने संगीत से सजाया था। 

इस म्यूजिकल नाइट में 'मेघा रे मेघा रे...', 'हुस्न पहाड़ों का...', 'मेरी किस्मत में तू नहीं शायद...', 'ओ प्रिया प्रिया...', 'देर ना हो जाए कहीं...', 'तेरे नैना मेरे नैनों से...', 'बन्ना रे बागा में झूला घाल्या...', 'तुमसे मिलके ऐसा लगा...', 'सपने में मिलती है...' गानों पर गायिका सीमा मिश्रा ने सुरेश वाडकर का साथ दिया। सुरेश वाडकर ने संगीत प्रेमियों की हरेक फरमाइश का पूरा खयाल रखा। संगीत प्रेमियों ने भी हर गाने पर तालियां बजाकर खूब दाद दी। सुरेश वाडकर की करीब 2 घंटे की रूहानी परफॉर्मेंस में गुलाबी नगर की आबोहवा ने हिन्दी फिल्म संगीत के जज्बात, स्पंदन, छुअन और थिरकन को महसूस किया।  

काॅन्सर्ट : सुरेश वाडकर म्यूजिकल नाइट

टाइम : शाम 7:30 बजे (रविवार, 10 सितंबर 2023)

वेन्यू : मध्यवर्ती, जवाहर कला केंद्र (जयपुर)

ऑर्गनाइजर : जवाहर कला केंद्र (कला संसार मधुरम के तहत सितंबर स्पंदन)