अंत तक अंधेरे में रखती है 'ब्लाइंड'


  • स्टार कास्ट : सोनम कपूर आहूजा, विनय पाठक, पूरब कोहली, शुभम सराफ, लिलेट दुबे, दानिश राजवी
  • स्क्रीनप्ले-डायरेक्शन : शोम मखीजा
  • डायलॉग्स : शोम मखीजा, सुदीप निगम
  • सिनेमैटोग्राफी : गैरिक सरकार
  • एडिटिंग : तनुप्रिया शर्मा
  • म्यूजिक-ओरिजिनल स्कोर : क्लिंटन सेरेजो, बियांका गोम्स
  • रनिंग टाइम : 124 मिनट

अभिनेत्री सोनम कपूर ने क्राइम थ्रिलर फिल्म 'ब्लाइंड' के जरिए बिना किसी शोर-शराबे के चार साल बाद कमबैक किया है। यह फिल्म 2011 में आई इसी टाइटल की साउथ कोरियन क्राइम थ्रिलर पर बेस्ड है। जिस खामोशी से सोनम ने वापसी की है, फिल्म देखकर दर्शक भी चुप्पी साधने को मजबूर हो जाते हैं। दरअसल, धीमी रफ्तार के कारण फिल्म थ्रिल नहीं करती। ऐसा लगता है कि फिल्म अधूरे मन से बनाई गई है। शायद इसीलिए अच्छी शुरुआत के बाद यह ट्रैक से भटक जाती है।

'ब्लाइंड' की कहानी जिया सिंह (सोनम कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है। जिया स्कॉटलैंड में पुलिस ऑफिसर है और ग्लासगो में रहती है। एक रात पब में चल रहे कॉन्सर्ट से जिया अपने भाई को जबरदस्ती घर ले जाने की कोशिश करती है। भाई भाग न पाए, इसलिए कार में वह उसे हथकड़ी लगा देती है, लेकिन तभी उसकी कार का एक्सीडेंट हो जाता है। इस हादसे में जिया भाई के साथ-साथ अपनी आंखों की रोशनी भी खो देती है। जिया की जिंदगी अब अंधेरे में चली गई है। वह भाई की मौत का सदमा झेल रही है, साथ ही उसकी नौकरी भी अब उसके पास नहीं है। जिया अपने भाई की मौत का जिम्मेदार खुद को मानती है। एक दृष्टिहीन लड़की के तौर पर वह अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को सहज बनाने की कोशिश में जुटी है। इस बीच एक रात जब जिया अपनी मां से मिलकर घर वापस आने के लिए टैक्सी पकड़ती है तो उसे टैक्सी ड्राइवर के वेश में एक साइको किलर (पूरब कोहली) मिल जाता है। यह साइको किलर खुद को टैक्सी ड्राइवर बताकर जिया को अपनी गाड़ी में बैठाता है। रास्ते में जिया काे एहसास होता है कि कैब की डिक्की में कोई है। इस बात को लेकर जिया की कैब ड्राइवर से हाथापाई हो जाती है। किसी तरह जिया उसके चंगुल से बच निकलती है। इसके बाद वह पुलिस अफसर पृथ्वी (विनय पाठक) के साथ मिल कर उसका सुराग लगाने में जुट जाती है। लेकिन, उन्हें यह नहीं पता कि वे जिस किलर को ढूंढ रहे हैं, वह खतरनाक होने के साथ-साथ चालाक भी है। वह एक साइकोपैथ है, जो लड़कियों को अगुवा करके उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देता है। साइकोपैथ को पता चल जाता है कि जिया उसे अरेस्ट करवाने की कोशिश में लगी हुई है। ऐसे में साइकोपैथ की जिया से पर्सनल खींचतान शुरू हो जाती है।

यूं तो स्टोरीलाइन इंटरेस्टिंग है, मगर फर्स्ट हाफ के बाद स्क्रीनप्ले सुस्त पड़ जाता है। कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, इसका फ्लो और इसके कैरेक्टर दोनों फ्लैट होते चले जाते हैं। थ्रिल बरकरार रखने वाले एलीमेंट की कमी अखरने लगती है। राइटर-डायरेक्टर शोम मखीजा दर्शकों को बांधे रखने में विफल साबित होते हैं। इसकी वजह किरदारों की बुनावट में अधूरापन और कच्चापन भी है। कैब ड्राइवर साइकोपैथ क्यों है, इसकी कोई बैक स्टोरी नहीं दिखाई गई है। इससे अंत तक यह नहीं पता चल पाता कि वह लड़कियों को शारीरिक और मानसिक यातनाएं क्यों दे रहा था। गैरिक सरकार की सिनमैटोग्राफी अट्रैक्टिव है। एडिटिंग थोड़ी और चुस्त हो सकती थी। म्यूजिक की बात करना समय की बर्बादी है।

सोनम कपूर ने दृष्टिहीन लड़की का किरदार अच्छे से निभाने की कोशिश की है। कुछ एक्शन सीन उन्होंने अच्छे से किए हैं, लेकिन इसके बावजूद वह किरदार की गहराई में नहीं उतर पाईं। वजह, स्क्रीनप्ले में डिटेलिंग सही ढंग से नहीं होना है। पूरब कोहली साइको किलर के रोल में चौंकाते हैं, डराते हैं, लेकिन यह सब कुछ देर ही चलता है। उसके बाद उनके किरदार का अधूरापन दर्शकों पर भारी पड़ने लगता है। अगर उनके किरदार को सलीके से बुना जाता तो शायद वह इसे बेहतर बना पाते और उनका टैलेंट वेस्ट नहीं होता। उनके किरदार में डायलॉग्स और बैक स्टोरी की कमी खलती है। विनय पाठक ने ऐसे पुलिस ऑफिसर का रोल निभाया है, जो हमेशा खाता ही रहता है। उनके किरदार को अचानक से खत्म कर देना भी रोमांच में खलल डालता है। शुभम सराफ, लिलेट दुबे और दानिश राजवी ने अपने हिस्से का काम ठीक-ठाक किया है। मूल फिल्म तरह यह मूवी जरा-सा भी रोमांच पैदा नहीं कर पाती है। 'ब्लाइंड' की कहानी में दम था, मगर डायरेक्टर इसे अच्छे से एग्जीक्यूट करने में नाकाम रहे। कहने को तो यह क्राइम थ्रिलर है, लेकिन दर्शक अंत तक अंधेरे में ही रहते हैं।

रेटिंग: ½