फादर ऑन रेंट! 'ट्रायल पीरियड' पर ब्रांड न्यू कॉन्सेप्ट
- स्टोरी-डायरेक्शन : अलेया सेन
- स्क्रीनप्ले : कुंवर शिव सिंह, अक्षत त्रिवेदी, अलेया सेन
- डायलॉग्स : अलेया सेन, अक्षत त्रिवेदी
- म्यूजिक कंपोजर्स : शांतनु मोइत्रा, आर्को, मागो & मयंक, कौशिक-गुड्डू
- एडिटिंग : शाहनवाज मोसानी
- सिनेमैटोग्राफी : मनोज खतोई
- स्टार कास्ट : जेनेलिया देशमुख, मानव कौल, शक्ति कपूर, शीबा चड्ढा, गिरिराज राव, जिदान ब्राज, स्वरूपा घोष, बरुण चंदा
- रनिंग टाइम : 126 मिनट
अलेया सेन ने फिल्म 'दिल जंगली' (2018) से डायरेक्शन में कदम रखा था। यह फिल्म दर्शकों के दिल में जगह बनाने में विफल रही। अलेया का नाम चर्चित और सफल फिल्म 'बधाई हो' (2018) से भी जुड़ा है। वह इसके प्रोड्यूसर्स में से एक हैं। अब अलेया अपने डायरेक्शन में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर 'ट्रायल पीरियड' लेकर आई हैं। फिल्म का कॉन्सेप्ट अलहदा और एकदम फ्रेश है। 'फादर ऑन रेंट' यूनीक कॉन्सेप्ट है तो चैलेंजिंग भी है। लेकिन, प्रीडिक्टेबल स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म इस कॉन्सेप्ट के साथ पूरा न्याय नहीं कर पाती। अलेया को इस पर गौर करने की जरूरत थी कि स्क्रीनप्ले ऐसा लिखा जाए, अगले सीन में क्या होने वाला है, यह पता न चल सके। दिल को छू लेने वाले इस ब्रांड न्यू कॉन्सेप्ट में इमोशनल पेरेंटिंग स्टोरी रोमांटिक ड्रामा के गलियारों से भी गुजरती है।
कहानी में एक मां है अनामया रॉय चौधरी उर्फ एना (जेनेलिया देशमुख)। तलाकशुदा है, मगर आत्मनिर्भर। सिंगल मदर है, इसलिए अपने बेटे रोमी (जिदान) के इर्द-गिर्द ही उसकी जिंदगी घूमती है। एना बतौर मां रोमी के लिए सब कुछ करती है, पर इस बीच उसकी दोस्त बनना भूल जाती है। घर व बाहर दोनों की जिम्मेदारी संभालते-संभालते एना छोटी-छोटी खुशियां और अपने बेटे का मन टटोलना भूल जाती है। रोमी को स्कूल में कुछ बच्चे परेशान करते हैं तो एक दोस्त उसे सुपरहीरोनुमा पिता के किस्से बताकर दिलासा भी देता रहता है। रोमी के स्कूल के बच्चे जब अपने-अपने पिता का बखान करते हैं तो रोमी अकेला पड़ जाता है और उसे पिता की कमी का एहसास होता है। वह मां से अपने पिता के बारे में पूछता है, जिसका उसे गोल-मोल जवाब मिलता है। इस बीच रोमी एक टीवी कमर्शियल देखता है, जिसमें दिखाया जाता है कि कोई भी सामान 30 दिन के ट्रायल पीरियड पर लेकर जाएं। यहां से उसे नए पापा का खयाल आता है। रोमी मां से जिद करता है कि उसके लिए ट्रायल पीरियड पर नए पापा लेकर आएं।
उधर, उज्जैन का रहने वाला प्रजापति शंकर द्विवेदी उर्फ पीडी (मानव कौल) शिक्षक की नौकरी की तलाश में दिल्ली आता है। उसके फूफा नौकरी के लिए खूब जतन करते हैं, पर पीडी की कहीं बात नहीं बन पा रही है। वहीं, एना बेटे की जिद के आगे मजबूर है। वह रोमी के लिए किराये पर नए पापा की तलाश शुरू करती है। मगर, 30 दिन का ट्रायल पीरियड सुनकर ही लोग भाग जाते हैं। एना और पीडी, दोनों की तलाश एक दूसरे पर खत्म होती है। अनुशासित जीवन जीने वाला पीडी रोमी के लिए एक महीने का 'अरेंजमेंट' बन जाता है। एना पीडी के सामने शर्त रखती है कि रोमी के साथ उसे ऐसे पेश आना है, जिससे रोमी को पिता शब्द से नफरत हो जाए। यानी उसे खुद को खड़ूस और हानिकारक पिता साबित करना है। पीडी इस शर्त पर आ तो जाता है, लेकिन इन 30 दिन में वह रोमी के लिए सुपरहीरो पापा बन जाता है। यही नहीं, एना को लेकर भी वह अपने दिल में एक कनेक्शन महसूस करने लगता है। फिर कहानी में एना के माता-पिता की एंट्री होती है, जिससे अचानक नया मोड़ आ जाता है।
ट्रायल पीरियड पर बेटे के लिए नया पिता लाने वाली बात थोड़ी हास्यापद और अटपटी जरूर लगती है, लेकिन अलेया सेन ने कहानी के तार ऐसे पिरोए हैं कि लगता है यकीनन यह एक अलग हटके और दूर की सोच है। प्लॉट इंटरेस्टिंग है, मगर नैरेशन और एग्जीक्यूशन थोड़ा ढीला है। लाइट-हार्टेड मोमेंट कई मर्तबा इतने हल्के हैं कि फील और कनेक्शन ही नहीं बन पाता। स्क्रीनप्ले समय-समय पर स्लो पड़ने लगता है। कहानी के हर एक अंश को फिल्म में ठीक तरीके से पिरोया नहीं गया। इस कारण यह बीच-बीच में थोड़ी-सी भटकती है। एडिटिंग के समय थोड़ी कांट-छांट और कर दी जाती तो फिल्म और एंटरटेनिंग हो सकती थी। सिनेमैटोग्राफी अट्रैक्टिव है। कई सीन बहुत खूबसूरती से फिल्माए गए हैं। म्यूजिक इम्प्रेसिव नहीं है, बस कामचलाऊ कह सकते हैं। बैकग्राउंड स्कोर कहानी को सपोर्ट करता है।
जेनेलिया सिंगल मदर की भूमिका में आकर्षक और क्यूट लगी हैं। हालांकि मां-बेटे के बीच के भावनात्मक दृश्यों में वह थोड़ा हल्की हैं। यानी इमोशंस अच्छे से उभर कर नहीं आ पाए। यहां उनकी क्यूटनेस हावी हो गई। छोटे शहर के परिवेश वाले सीधे-सादे इंसान के तौर पर मानव कौल नैचुरल लगे हैं, लेकिन उनसे उम्मीदें इससे कहीं ज्यादा थीं। शक्ति कपूर और शीबा चड्ढा ने अपने-अपने रोल सहजता से निभाए हैं। शीबा की एक्टिंग रेंज को देखते हुए उनके किरदार को विस्तार दिया जाना चाहिए था। गजराज राव का काम अच्छा है, उन्हें थोड़ा-सा और स्क्रीन स्पेस मिलता तो मजा दोगुना हो जाता। बेटे के रोल में जिदान की मासूमियत ध्यान खींचती है। स्वरूपा घोष और बरुण चंदा ने सही काम किया है।
एक मां भले ही अपने बच्चे की परवरिश में कोई कमी छोड़े, लेकिन एक बच्चे के लिए मम्मी-पापा दोनों का प्यार बहुत जरूरी होता है। मां उसके लिए ममता का सागर होती है तो पिता सुपरहीरो से कम नहीं होता। फिल्म में सिंगल पेरेंट की चुनौतियों को दिखाया गया है। यह दिखाया है कि सिंगल मदर को अक्सर बच्चे को पालने और समाज से वैलिडेशन पाने में कितनी मशक्कत करनी पड़ती है। यह हल्की-फुल्की फैमिली फिल्म है, जिसे देखने के बाद एक ताजगी महसूस होती है। नए कॉन्सेप्ट पर बनी फिल्म को एक्सप्लोर करना पसंद है तो 'ट्रायल पीरियड' का ट्रायल लिया जा सकता है।
रेटिंग: ★★½
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