अधपकी 'लस्ट स्टोरीज'... वेस्ट ऑफ टाइम


  • डायरेक्शन : आर बाल्की, कोंकणा सेन शर्मा, सुजॉय घोष, अमित रविन्द्रनाथ शर्मा
  • स्टोरी : सुजॉय घोष, आर बाल्की, काेंकणा सेन शर्मा, पूजा तोलानी, सौरभ चौधरी
  • सिनेमैटोग्राफी : तपन तुषार बसु, पीसी श्रीराम, आनंद बंसल
  • एडिटिंग : उर्वशी सक्सेना, नयन एचके भद्रा, संयुक्ता काजा, चंद्रशेखर प्रजापति
  • स्टार कास्ट : काजोल, तमन्ना भाटिया, मृणाल ठाकुर, नीना गुप्ता, कुमुद मिश्रा, विजय वर्मा, अंगद बेदी, तिलोत्तमा शोम, अमृता सुभाष, अनुष्का कौशिक
  • रनिंग टाइम : 132 मिनट

बॉलीवुड फिल्ममेकर्स अब लव स्टोरी ही नहीं, लस्ट स्टोरी को भी एक्सप्लोर कर रहे हैं। साल 2018 में आई एंथोलॉजी फिल्म 'लस्ट स्टोरीज' को न सिर्फ दर्शकों ने पसंद किया बल्कि इसकी चर्चा भी खूब हुई। अब इस फिल्म के प्रोड्यूसर रॉनी स्क्रूवाला और आशी दुआ 'लस्ट स्टोरीज 2' लेकर आए हैं। ख्वाहिश, लव, लस्ट, सेक्स, ड्रामा और धोखा के इर्द-गिर्द इसमें चार कहानियां हैं। हर कहानी का डायरेक्टर अलग है। इनमें सेक्स कंपैटिबिलिटी, सेक्सुअल नीड, सेक्सुअल वॉयलेंस जैसे टॉपिक्स को छूने की कोशिश की गई है। ये ऐसे टॉपिक्स हैं जिन पर  खुलकर बात करने से आज भी लोग कतराते हैं। 'लस्ट स्टोरीज 2' अधपकी और कच्ची कहानियों का मिश्रण है। इनमें मचलती 'वासना' कहीं न कहीं ऑडियंस के लिए 'वेस्ट ऑफ टाइम' है। चार में से दो कहानियां ही थोड़ी प्रभावी हैं। 

आर बाल्की ने पहली कहानी 'मेड फॉर इच अदर' के निर्देशन की कमाल संभाली है। इसमें वेदा (मृणाल ठाकुर) और अर्जुन (अंगद बेदी) की शादी तय होने जा रही है। दोनों के माता-पिता 'गुण' मिलाने में व्यस्त हैं। इस बीच वेदा की दादी (नीना गुप्ता) तपाक से कहती है- पहले यह देखो कि क्या ये दोनों बेड पर एक दूसरे के साथ कंपैटिबल हैं। बुजुर्ग दादी की बेबाकी यहीं नहीं थमती। वह जोर देती है कि पहले यह देखना चाहिए कि दोनों की सेक्स लाइफ अच्छी होगी या नहीं। सेक्स लाइफ अच्छी होगी, तभी इनकी शादी अच्छी चलेगी। छत्तीस के छत्तीस गुण मिले न मिले, अगर सेक्स अच्छा होगा तो दोनों एक दूसरे को कभी नहीं छोड़ेंगे। अल्ट्रा कूल दादी शादी करने से पहले वेदा और अर्जुन को 'टेस्ट ड्राइव' की सलाह देती है। दादी समझाती है कि जिसके साथ सेक्स अच्छा हो, उसी से शादी करो, ये जरूरी नहीं है। लेकिन, जिससे शादी करो, उसके साथ सेक्स अच्छा हो, इसे मेक श्योर करना जरूरी है। बाल्की ने इस स्टोरी को ह्यूमर के साथ संजीदगी से पेश करने का प्रयास किया है। बेशक बाल्की ने इसमें शादी के रिश्ते में सेक्स की अहमियत को समझाने की कोशिश की है। हालांकि एक बिंदु पर यह कहानी थोड़ी अटपटी और उबाऊ-सी लगने लगती है। स्क्रीनप्ले में कसावट की कमी अखरती है। नीना गुप्ता ने अच्छा काम किया है। उनके किरदार में ह्यूमर की परत बनी रहती है। मृणाल और अंगद ने नपा-तुला काम किया है। दोनों किरदारों को पर्सनल स्पेस कम दिया है, जिससे उनकी फीलिंग्स बेहतर ढंग से उभर कर नहीं आ पातीं।

दूसरी कहानी 'द मिरर' का निर्देशन कोंकणा सेन शर्मा ने किया है। यह किस्सा दो महिलाओं का है। एक कॉरपोरेट जगत में है तो दूसरी उसके यहां मेड (हाउस हेल्प) है। दोनों को सुकून एक जगह आकर मिलता है, वह जगह है 'मिरर'। यह मिरर उनकी सेक्सुअल फीलिंग्स की हकीकत का आईना बनता है। कोंकणा ने दोनों लीड किरदारों इशिता व सीमा की फीलिंग्स और संकोच को बेहतर ढंग से दर्शाने की कोशिश की है। बस, कमी है तो बैकड्रॉप स्टोरी की, जिसके कारण कहानी अधपकी-सी रह जाती है। तिलोत्तमा शोम और अमृता सुभाष का अभिनय एक एहसास की तरह है, जिसके साथ वे बहती चली गई हैं। कुछ मिनट बिना डायलॉग के कहानी आगे बढ़ती है, यही इसकी खूबसूरती है। इस कहानी में संवादों की कम जरूरत पड़ी है। सारी बातचीत कैमरा करता है। यौन जीवन की दबी हुई आकांक्षाओं को कई बार हालात के जरिए भी जाहिर किया जाता है और तृप्ति का भाव इन हालात में फंसने के लिए प्रेरित करता है। चाहतें, आर्थिक या सामाजिक वर्ग की बंदिशों में कैद होकर नहीं रह सकतीं। यह कहानी इंसानी जज्बात के इसी पहलू पर फोकस करती है।  

तीसरी कहानी 'सेक्स विद एक्स' सुजॉय घोष निर्देशित है, लेकिन यह इस एंथोलॉजी का सबसे कमजोर पार्ट है। इसकी स्क्रिप्ट में जरा भी दम नहीं है। यह न तो दर्शकों को आकर्षित कर पाई, न ही एंगेज रखने में सफल रही। कहानी में सेक्स के साथ थ्रिल को मिक्स करने की कोशिश की है। लेकिन इसका सस्पेंस एक्साइटमेंट और थ्रिल नहीं ला पाता। कहानी में थ्रिल कहीं खो जाता है, बस सेक्स ही बचता है। लचर तरीके से कहानी लिखी गई है, जो कि तमन्ना भाटिया के ग्लैमरस अंदाज में सिमट कर रह गई है। नकली-सी कहानी में किरदार भी फर्जी से हैं। विजय वर्मा और तमन्ना भाटिया की केमिस्ट्री भी बांधकर नहीं रख पाती। सुजॉय का डायरेक्शन-प्रजेंटेशन चलताऊ है। इसमें खामियों की भरमार है।

इस फिल्मावली की चौथी और आखिरी प्रस्तुति 'तिलचट्‌टा' के निर्देशक हैं अमित रविन्द्रनाथ शर्मा। देवयानी सिंह (काजोल) कोठे से निकलकर राजसी खानदान के वंशज की सौ साल पुरानी हवेली में रानी बनकर रह रही है। पति सूरज सिंह (कुमुद मिश्रा) को अब भी खुद के राजा होने का गुमान है। शराब पीकर आना, गाली-गलौच और मारपीट करना सूरज सिंह का रोज का काम है। देवयानी अपने बेटे को लंदन में पढ़ाना चाहती है, लेकिन उसकी इस ख्वाहिश में रोड़ा उसका पति सूरज सिंह है। इस 'राजा' से छुटकारा पाने के लिए वह एक गहरी साजिश रचती है। इसके लिए कोठे से जुड़े हुए अपने पुराने कनेक्शन का इस्तेमाल करती है। मगर, उसकी यह चाल एकदम उलट पड़ जाती है। कुमुद मिश्रा की एक्टिंग गजब की है। उनकी हवस भरी निगाह ही स्क्रीन पर सब कुछ कह जाती है। काजोल का रोल कुछ खास नहीं है। उनसे उम्मीदें थीं, लेकिन वह अपने फैंस के लिए कुछ नया नहीं कर पाईं। अनुष्का कौशिक का रोल छोटा-सा है, पर वह अपनी मासूमियत से ध्यान खींचने में कामयाब रही हैं। 

रेटिंग: ½