बेअसर कहानी... अटपटा और बोरिंग प्रजेंटेशन






  • स्टोरी-डायरेक्शन : साई कबीर
  • स्क्रीनप्ले-डायलॉग्स : अमित तिवारी, साई कबीर
  • एडिटिंग : बल्लू सलूजा
  • स्टार कास्ट : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, अवनीत कौर, विपिन शर्मा, जाकिर हुसैन, खुशी भारद्वाज, कंगना रनौत (कैमियो)
  • रनिंग टाइम : 112 मिनट
कहानी किसी भी फिल्म की धुरी होती है। अगर वही बेअसर हो तो जाहिर है कि फिल्म कैसी होगी। कंगना रनौत को 'रिवॉल्वर रानी' (2014) में निर्देशित कर चुके साई कबीर की नई फिल्म 'टीकू वेड्स शेरू' कुछ ऐसी ही है। इसकी कहानी का लेखक ही बता सकता है कि उसने क्या लिखा है। फिल्म में न तो फ्लो है और न ही दृश्य आपस में अच्छे से कनेक्ट हैं। बेतरतीब कहानी के साथ फिल्म के बाकी पहलू भी उजड़े हुए हैं। स्ट्रगलिंग और जूनियर आर्टिस्ट्स के इर्द-गिर्द कहानी बुनी गई है। यह समझ नहीं आता कि दो स्ट्रगलर की कच्ची-पक्की लव स्टोरी के साथ मेकर्स फिल्म में क्या दिखाना चाहते हैं।
आइए जानते हैं क्या है इसकी कहानी? शिराज खान अफगानी उर्फ शेरू (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) मुंबई में रहता है। फिल्मों में जूनियर आर्टिस्ट है, मगर उसका एटीट्यूड किसी स्टार से कम नहीं है। इसी कारण डायरेक्टर उसे बार-बार रिप्लेस कर देते हैं। यही नहीं, पैसों के लिए वह लड़कियां भी सप्लाई करता है। शेरू के लिए उसके होमटाउन भोपाल से तस्लीम खान उर्फ टीकू (अवनीत कौर) का रिश्ता आता है। टीकू की तस्वीर देखते ही शेरू उसके रूप पर मोहित हो जाता है। टीकू तेज-तर्रार और बिगड़ैल लड़की है। वह फिल्मों में काम करना चाहती है और सुपरस्टार बनने का ख्वाब है। पहली नजर में ही वह शेरू से शादी करने से इनकार कर देती है। दरअसल, टीकू बिन्नी (राहुल) नाम के लड़के के इश्क में घायल है। बिन्नी सलाह देता है कि वह शादी करके मुंबई आ जाए। शेरू से शादी उसके लिए 'टिकट टू सिनेमा' की तरह है। वह शादी करने के लिए राजी हो जाती है और फिर शेरू के साथ शादी करके मुंबई आ धमकती है। शेरू टीकू से झूठ बोलता है कि वह फिल्म फाइनेंस का काम करता है। मुंबई आने के बाद टीकू को पता चलता है कि वह प्रेग्नेंट है और उसके पेट में पल रहा बच्चा बिन्नी का है। शेरू की खोली (घर) से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर टीकू अपने बॉयफ्रेंड बिन्नी से मिलने पहुंच जाती है। वह यह जानकर हैरान रह जाती है कि उसे फिल्मों में काम दिलाने का झांसा देने वाला बॉयफ्रेंड न सिर्फ शादीशुदा है बल्कि एक बच्चे का बाप भी है। इतना सब होने के बावजूद शेरू दरियादिली दिखाते हुए न सिर्फ टीकू के बच्चे को अपनाने को राजी हो जाता है बल्कि टीकू को खुश रखने के लिए ज्यादा पैसा कमाने की खातिर ड्रग्स के धंधे में उतर जाता है। फिर कहानी में छोटे-मोटे ऊबड़-खाबड़ मोड़ आते हैं...।
साई कबीर ने 'टीकू वेड्स शेरू' में फिल्मों की रंगीन दुनिया में एक्टर बनने की चाहत रखने वाले कलाकारों का संघर्ष दिखाने की कोशिश की है। अफसोस यह है कि घिसी-पिटी व कमजोर कहानी और लचर स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म असरदार नहीं है। लिखावट इतनी सुस्त है कि इमोशनल सीन दिल को नहीं छू पाते हैं। साई कबीर का निर्देशन शुरुआत से ही ट्रैक से भटका हुआ है। सिनेमैटोग्राफी ठीक-ठाक है, लेकिन एडिटिंग टाइट नहीं है। गीत-संगीत में ऐसी कोई बात नहीं है, जो जरा भी सुकून दे। 
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म को अपने कंधों पर खींचने की विफल कोशिश की है। उनके अभिनय में वह रवानी नजर आई, जिसके लिए नवाज जाने जाते हैं। अवनीत कौर ने इस फिल्म से डेब्यू किया है। उन्होंने किरदार में ढलने के लिए हाथ-पैर भी मारे, पर एक-आध दृश्य को छोड़कर वह रंग नहीं जमा पाई। भावनात्मक दृश्यों में अगर बेहतर करतीं तो शायद दर्शक उनके किरदार के इमोशंस को महसूस कर पाते। जाकिर हुसैन, विपिन शर्मा सरीखे एक्टर्स यहां एकदम वेस्ट हो गए हैं। उनसे उम्मीद थी, लेकिन उनके किरदारों को एक तरह से राइटिंग टेबल पर ही मरणासन्न स्थिति में पहुंचा दिया। टीकू की बहन के रोल में खुशी भारद्वाज की मासूमियत जरूर ध्यान खींचती है। फिल्म में खामियों का अंबार है। ऐसा कुछ भी नहीं है, जो एंटरटेन करे। सब कुछ अटपटा है। 'टीकू वेड्स शेरू' देखने से परहेज करने में ही आपका हित है। अगर आपने नवाज का नाम और चेहरा देखकर यह फिल्म देखने की हिम्मत दिखाई तो आपको एंटरटेनमेंट के नाम पर सिर्फ धोखा ही मिलेगा।

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