पुत्र-मोह में मारधाड़ और खून-खराबा करने से नहीं हिचकता 'ब्लडी डैडी'
- डायरेक्शन : अली अब्बास जफर
- स्टोरी, स्क्रीनप्ले एंड डायलॉग्स : अली अब्बास जफर, आदित्य बसु
- एडिशनल डायलॉग्स : सिद्धार्थ-गरिमा
- सिनेमैटोग्राफी : मार्सिन लास्काविएक
- एडिटिंग : स्टीवन एच. बर्नार्ड
- बैकग्राउंड म्यूजिक : जूलियस पैकियम
- स्टार कास्ट : शाहिद कपूर, रोनित रॉय, राजीव खंडेलवाल, डायना पेंटी, संजय कपूर, विवान भटेना, जीशान कादरी, अंकुर भाटिया, सरताज कक्कड़
- रन टाइम : 122 मिनट
अली अब्बास जफर निर्देशित फिल्म 'ब्लडी डैडी' पेसी थ्रिलर है, जिसमें भरपूर एक्शन है तो पिता-पुत्र के रिश्ते और जज्बात की छुअन है। यानी इस फिल्म में अपने बेटे के लिए किसी भी हद को पार करने में जरा भी नहीं घबराने वाला पिता है। फ्रेडरिक जार्डिन निर्देशित फ्रेंच फिल्म 'नुई ब्लॉन्श' (Nuit Blanche) पर बेस्ड इस फिल्म का आगाज थ्रिलिंग अंदाज में होता है। दिल्ली के कनॉट प्लेस में नारकोटिक्स ऑफिसर सुमेर (शाहिद कपूर) अपने साथी जग्गी (जीशान कादरी) के साथ एक कार को चेज करता है। इस कार में रखे एक बैग में उन्हें 50 करोड़ रुपए की कोकीन (ड्रग्स) मिलती है। दोनों ड्रग्स के इस बैग को जब्त कर लेते हैं। ड्रग्स की यह खेप ड्रग माफिया सिकंदर चौधरी (रोनित रॉय) की है। अपने गुर्गों से उसे यह पता चल जाता है कि ड्रग्स का बैग सुमेर के पास है। सिकंदर ड्रग्स के इस बैग को सुमेर से वापस पाने के लिए उसके बेटे अथर्व (सरताज कक्कड़) को किडनैप कर लेता है। बेटे को छोड़ने के बदले वह सुमेर से ड्रग्स का सौदा करता है। सुमेर ड्रग्स के साथ सिकंदर के होटल में पहुंचता है, जहां पूरा रंग जमा हुआ है। वह इसे लेडीज टॉयलेट में छिपा देता है और यह सुनिश्चित करने सिकंदर के पास जाता है कि उसका बेटा एकदम सेफ है या नहीं। लेकिन, जब वह ड्रग्स लेने वापस लेडीज टॉयलेट में पहुंचता है तो ड्रग्स का बैग गायब मिलता है। यहां से शुरू होता है असली खूनी खेल...।
फिल्म की कहानी बस 24 घंटे की है। अधिकतर सीन को दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है। फिल्म का फर्स्ट हाफ सरपट दौड़ता है और कसा हुआ है, इसलिए चीजें मजेदार हैं। थ्रिलर इम्पैक्ट के साथ दर्शकों को एक ऐसे इंटरवल पॉइंट पर लाकर छोड़ता है, जहां से दर्शक सेकंड हाफ देखने के लिए लालायित हो उठते हैं। शाहिद कपूर और राजीव खंडेलवाल का फाइट दृश्य सांसों को तेज कर देता है, लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म का स्क्रीनप्ले कमजोर पड़ जाता है। सेकंड हाफ में हड़बड़ाहट नजर आती है। फिल्म में कुछ लाइट मोमेंट भी हैं, जो तनाव पैदा करने वाले माहौल में हंसाते भी हैं। यूं तो कहानी में नयापन नहीं है, पर ट्रीटमेंट उसे दर्शनीय बनाता है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म को और असरदार बनाता है। गीत-संगीत दमदार नहीं है। सिनेमैटोग्राफी स्टाइलिश और अट्रैक्टिव है। एडिटिंग सही है। कुछ चीजें हाफ-बेक्ड हैं, जिससे यह मारधाड़ और खून-खच्चर तक ही सीमित रह गई है।
डायरेक्टर ने फिल्म में शाहिद के किरदार के पागलपन को एक्शन और थ्रिल के हाई ऑक्टेन स्टाइल में पेश किया है। सुमेर जख्मी होते हुए भी जिस तत्परता से दुश्मन को पटखनी देता है, उसे निर्देशक ने शानदार तरीके से दर्शाया है। वह होटल के कमरों, किचन और वॉशरूम के बीच अपने किरदारों को दिलचस्प अंदाज में घुमाते हैं। शाहिद का अभिनय 'कबीर सिंह' और 'फर्जी' का कॉकटेल सरीखा है। उनके किरदार सुमेर की वाइफ किसी और की जिंदगी बन गई है, लेकिन पत्नी से अलगाव के बावजूद सुमेर की जान अपने बेटे में बसती है। अपनी एक्टिंग से शाहिद ने एक पिता के इमोशंस को खूबसूरती से स्क्रीन पर उकेरा है। स्याह किरदार में राजीव खंडेलवाल फिल्म को एक नया रंग देते हैं, पर मेकर्स से शिकायत यह है कि उन्होंने राजीव की रंगबाजी को स्क्रीन पर प्रॉपर स्पेस नहीं दिया है। डायना पेंटी अपने किरदार से ध्यान जरूर खींचती हैं, मगर उनकी भूमिका को और ज्यादा विस्तार दिया जाना चाहिए था। रोनित रॉय ने सहज और स्वाभाविक ढंग से ड्रग माफिया की भूमिका को परदे पर चित्रित किया है। संजय कपूर, विवान भटेना, अंकुर भाटिया और सरताज कक्कड़ ओके हैं। हमीद बने संजय कपूर और रोनित रॉय कहानी में कई कॉमिक पंचेज जोड़ने में कामयाब रहे हैं।
भले ही प्लॉट प्रीडिक्टेबल है, लेकिन रोमांचित करता है। ओटीटी पर टाइमपास के लिहाज से 'ब्लडी डैडी' बुरा ऑप्शन नहीं है। कहानी ड्रग्स के इर्द-गिर्द है। फिल्म में मारधाड़ करते शाहिद कपूर हैं। रोनित रॉय सॉलिड विलेन बने हैं। लिहाजा शाहिद कपूर की परफॉर्मेंस और एक्शन फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।
रेटिंग: ★★½
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