'आई लव यू'... बेहूदा रोमांटिक थ्रिलर
- राइटिंग-डायरेक्शन : निखिल महाजन
- एडिटिंग : अभिजीत देशपांडे
- स्टार कास्ट : रकुल प्रीत सिंह, पावेल गुलाटी, अक्षय ओबेरॉय, किरण कुमार
- रन टाइम : 134 मिनट
'डर' तो याद ही होगी आपको! हां वही, जिसमें शाहरुख खान कि...कि...कि... किरण बोलते नजर आए थे। 1993 में आई यश चोपड़ा निर्देशित इस फिल्म में राहुल (शाहरुख खान) एक ऐसा जुनूनी आशिक है, जो किरण (जूही चावला) से एकतरफा प्यार करता है। अपने इस एकतरफा प्यार को पाने यानी किरण को अपना बनाने के लिए वह किसी भी हद तक चला जाता है। यहां तक कि किसी की जान लेने से भी नहीं हिचकता है। निखिल महाजन निर्देशित फिल्म 'आई लव यू' भी इसी लकीर को फॉलो करती है। सत्या प्रभाकर (रकुल) सफल कॉरपोरेट एग्जीक्यूटिव है। वह अपने लवर विशाल (अक्षय ओबेरॉय) के साथ रिश्ते में एक कदम आगे बढ़ाने को तैयार है। राकेश ओबेरॉय उर्फ आरओ (पावेल गुलाटी) भी उसी कंपनी में काम करता है, जहां सत्या करती है। दोनों अविश्वसनीय रूप से करीब हैं और अच्छे दोस्त की तरह हैं। सत्या को रात दो बजे की फ्लाइट से दिवाली ब्रेक पर गृहनगर दिल्ली जाना है। मगर, सत्या अपने ऑफिस की बिल्डिंग में अकेली फंस गई है। बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। वह विशाल से संपर्क करने की कोशिश करती है, लेकिन नाकाम रहती है। उसके ड्राइवर का भी अता-पता नहीं है, जो उसे एयरपोर्ट छोड़ने वाला था। ऐसे में वह आरओ को कॉल करती है, जो उसी फ्लाइट से दिल्ली जाने वाला है, जिससे सत्या को जाना है। जैसे ही आरओ उसकी मदद के लिए वहां पहुंचता है, उसके बाद सत्या के जीवन में बहुत कुछ बदल जाता है। आरओ और सत्या हैरान रह जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि सत्या का ड्राइवर मर चुका है। कहानी में अहम मोड़ तब आता है जब आरओ सत्या को ऑफिस में बंदी बना लेता है...।
फिल्म शुरुआत में तो दिलचस्पी जगाती है, लेकिन 15-20 मिनट बाद सारा मजा किरकिरा हो जाता है। दरअसल, यह एकदम प्रीडिक्टेबल हो जाती है और रोमांच कहीं गुम हो जाता है। स्टोरी में नयापन नहीं है। स्क्रिप्ट नीरस है और उसका निष्पादन घटिया है, जो निराश करता है। किसी भी पात्र की कोई बैकस्टोरी नहीं है, विशेष रूप से आरओ, जो कि क्रेजी है। फिल्म में यह बताने का प्रयास ही नहीं किया गया कि वह ऐसा क्यों है? डायरेक्टर निखिल महाजन ने क्या सोच कर यह फिल्म बनाई, यह समझ से परे है। फिल्म के किरदार ठीक से नहीं गढ़े हैं। न फिल्म की स्टोरी में दम है और न ही किसी किरदार से कोई कनेक्शन महसूस होता है। गीत-संगीत बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी एवरेज है। एडिटिंग ठीक है।
रकुल प्रीत सिंह सुंदर दिखती हैं, लेकिन एक्टिंग और एक्सप्रेशंस से प्रभावित नहीं करतीं। उनके अभिनय में स्वाभाविकता गायब है। पावेल गुलाटी क्रिपी स्टॉकर के रूप में कोशिश तो करते हैं, मगर रंग नहीं जमा पाते। इसमें राइटिंग की भी कमी है, जिसने किरदार को खुलने का मौका ही नहीं दिया। अक्षय ओबेरॉय को ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। जो भी सीन मिले, उसमें वह छाप छोड़ने में विफल रहे। किरण कुमार महज एक दृश्य में फिलर की तरह हैं। फिल्म का रन टाइम एक घंटा 34 मिनट है, इसलिए यह आपके धैर्य की परीक्षा नहीं लेती। यही इस फिल्म की खासियत है।
'आई लव यू' एक बेहूदा रोमांटिक थ्रिलर है। न तो स्क्रिप्ट और न ही परफॉर्मेंस आपको बांधे रख सकती है। 'आई लव यू' उतनी ट्विस्टी नहीं है जितना कि यह हो सकती थी। 'आई लव यू' से एकतरफा प्यार का अंजाम आपके लिए बुरा (खतरनाक) हो सकता है। लिहाजा इस फिल्म को देखने की गलती कतई नहीं करें, कुछ हासिल नहीं होगा।
रेटिंग: ★
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