पर्दे पर लाना चाहता हूं ‘जंगली कबूतर’ : एजाज खान



एड फिल्म मेकिंग से सफर शुरू करके फीचर फिल्म बनाने वालों में एजाज खान का नाम भी जुड़ गया है। फेमस उर्दू राइटर इस्मत चुगताई की बहन के ग्रैंडसन एजाज प्रॉक्सी वेडिंग वेडिंग के कॉन्सेप्ट पर कॉमेडी फिल्म ‘बांके की क्रेजी बारात’ लेकर आ रहे हैं। इसमें टीया वाजपेयी, सत्यजीत दुबे, संजय मिश्रा, राजपाल यादव, विजय राज और राकेश बेदी अहम भूमिकाओं में हैं।

प्रॉक्सी वेडिंग पर फिल्म बनाने का आइडिया कहां से आया?
जब यह स्टोरी मेरे पास आई, तो मुझे बहुत इंटरेस्टिंग लगी। प्रॉक्सी वेडिंग असल में यूपी, बिहार में होती हैं। वहां अगर किसी लड़के की बदसूरत होने या अन्य किन्हीं कारण से शादी नहीं हो रही होती है, तो प्रॉक्सी दूल्हे के जरिए शादी करवाई जाती है। वो हमें परश्यू नहीं करना था। इसलिए हमने उसको चेंज करके बांके की कुंडली में दोष का ट्विस्ट डाला है, जिसके मुताबिक उसकी शादी नहीं हो सकती। हमने इस सब्जेक्ट को कॉमेडी के रूप में प्रजेंट किया है, क्योंकि आजकल सबकी लाइफ में बहुत टेंशन है। इसलिए वे ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं, जो रिलैक्स फील करवाए।



फिल्म में जो एक्टर्स हैं, वे स्टार्स नहीं हैं। ऐसे में क्या यह बॉक्सऑफिस पर दर्शकों को खींच पाएगी।
स्टार्स के साथ काम करना कौन नहीं चाहता। मुसीबत यह होती है कि कई बार बजट आड़े आ जाता है, तो कई बार डायरेक्टर का नया होना। अगर बजट अच्छा हो, तो भी स्टार्स पूछते हैं कि इस डायरेक्टर ने पहले क्या बनाया है। स्टार्स जल्दी से नए डायरेक्टर के साथ काम नहीं करना चाहते। यह बड़ा मसला है। यही सिचुएशन हमारे सामने भी आई थी। खैर, हमने ऑनेस्टी से फिल्म बनाई है और उम्मीद है कि फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी।

बॉलीवुड में आपकी एंट्री कैसे हुई?
मैं एडवरटाइजिंग फील्ड से आया हूं। 15 साल के  करियर में मैंने 350 से ज्यादा एड फिल्में बनाई हैं। उसके  बाद एक फिल्म बनाई थी ‘द व्हाइट एलिफेंट’। यह आर्ट फिल्म थी और फेस्टिवल्स में गई थी। मुझे रिलाइज हुआ कि आर्ट फिल्म करके कोई फायदा नहीं होता। इनकी ऑडियंस बहुत कम है। फिर मैंने सोचा ऐसी कॉमेडी बनाई जाए, जिसे सब देख सकें। उसमें न तो वल्गैरिटी हो और न ही डबल मीनिंग डायलॉग। डायरेक्शन मैं बचपन से ही करना चाहता था।

आप रिश्ते में इस्मत चुगताई के ग्रैंडसन हैं। तो क्या राइटिंग में भी दिलचस्पी है?
बचपन में उनके साथ काफी वक़्त गुजारा। उनके निधन के बाद रिलाइज हुआ कि वे कितनी बड़ी हस्ती थीं। मेरा उर्दू राइटिंग में रुझान था। अभी आइडियाज तो आते हैं, पर उर्दू में लिखता नहीं हूं। वैसे अब मैं फिल्म की  कैफियत के बारे में सोचता हूं।

क्या इस्मत चुगताई की किसी कहानी पर कोई फिल्म बनाएंगे?
मुझे उनकी कहानी ‘जंगली कबूतर’ काफी पसंद है। सोचता हूं कि उसे अडेप्ट करूं, क्योंकि उस पर अच्छी फिल्म बन सकती है। देखते हैं आगे क्या होता है।

शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?

संजय, राकेश, राजपाल और विजय मंझे हुए कलाकार हैं। सैट पर सभी ने कॉपरेट किया। टिया और सत्यजीत भी अच्छी तरह उनके साथ घुल-मिल गए। मेरा मानना है कि अगर आपका सब्जेक्ट स्ट्रॉन्ग है, तो वह सबको  कन्वेंस कर लेता है। सब एक ही पेज पर होते हैं। अगर थोड़ा भी डाउट होता है, तो बहस शुरू हो जाती है। हमारा सब्जेक्ट परफेक्ट था। उसमें चेंज की गुंजाइश नहीं थी। इसलिए हमने 32 दिन में शूटिंग शेड्यूल कम्प्लीट कर लिया।

फिल्म की यूएसपी क्या है?
इसका प्लॉट। हमारा कंटेंट और स्टोरीलाइन बहुत स्ट्रॉन्ग व यूनीक है। मुझे लगता है कि आज तक किसी  हिन्दी फिल्म में ऐसी कहानी नहीं आई है। हमने लोकेशंस पर भी बहुत ध्यान दिया। हिमाचल प्रदेश के कांग
ड़ा  और परागपुर में शूटिंग की है।