आलिया की अदाकारी 'चांद', पर 'गंगूबाई...' में 'दाग' हैं


  • डायरेक्शन-म्यूजिक-एडिटिंग: संजय लीला भंसाली
  • स्टार कास्ट: आलिया भट्ट, शांतनु माहेश्वरी, विजय राज, जिम सर्भ, सीमा पाहवा, इंदिरा तिवारी, वरुण कपूर  
  • कैमियो: अजय देवगन, हुमा कुरैशी
  • स्क्रीनप्ले: संजय लीला भंसाली, उत्कर्षिनी वशिष्ठ
  • डायलॉग्स: प्रकाश कपाडिय़ा, उत्कर्षिनी वशिष्ठ
  • सिनेमैटोग्राफी: सुदीप चटर्जी
  • बैकग्राउंड स्कोर: संचित-अंकित बल्हारा
  • लिरिक्स: ए.एम. तुराज, कुमार
  • एक्शन डायरेक्शन: शाम कौशल
  • कॉस्ट्यूम डिजाइन: शीतल शर्मा
  • प्रोड्यूसर: संजय लीला भंसाली, डॉ. जयंतीलाल गडा
  • रनिंग टाइम: 152 मिनट

फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' एस हुसैन जैदी की किताब 'माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई' के एक अध्याय पर बेस्ड है। टाइटल रोल में आलिया भट्ट 'चांद' की तरह चमकती नजर आई हैं, पर मूवी में कई 'दाग' भी हैं। स्टोरी में ट्रेजडी है, इश्यू है, रोमांस और रोमांच भी। विजुअली भी मूवी खूबसूरत है। करीने से तैयार सेट और बढ़िया प्रोडक्शन डिजाइन है। मगर, फिल्म और किरदार से इमोशनली कनेक्शन नहीं बन पाता। यह हिस्सों में अच्छी है, पर इम्प्रेसिव नहीं कह सकते। असल में, 'गंगूबाई...' की 'आत्मा' कहीं गायब-सी लगती है।  

बात कहानी की करें तो गंगा (आलिया भट्ट) काठियावाड़ के संपन्न परिवार से ताल्लुक रखती है। पिता बैरिस्टर हैं। गंगा का ख्वाब हीरोइन बनना है। इस सपने को हकीकत में बदलने वह अपने 'प्यार' रमणीक के साथ मुंबई भाग आती है। लेकिन, रमणीक उसे 'बदनाम गली' यानी रेड-लाइट एरिया कमाठीपुरा के एक ब्रोथल में 1,000 रुपए में बेच देता है। जिस्मफरोशी के दलदल में धकेले जाने पर वह पहले गंगा से गंगू और फिर गंगूबाई बन जाती है...।

भंसाली के 'कद' से बौना निर्देशन

आलिया भट्ट ने 'गंगूबाई' की चाल-ढाल को अच्छे ढंग से आत्मसात किया है। उनकी संवाद अदायगी असरदार है। आलिया ने किरदार की कोमलता, दर्द, दृढ़ता को बखूबी जीया है, जिसे स्वैग और एटीट्यूड से इंटरेस्टिंग बनाया है। प्रधानाध्यापक से उसकी बहस से लेकर सैकड़ों की भीड़ में भाषण के सीन दमदार हैं। उनके कुछ डायलॉग्स वजनदार हैं। रजिया बाई के रूप में विजय राज की एंट्री जबरदस्त है, पर उनका रोल कुछेक सीन में सिमट कर रह गया। कैमियों में अजय देवगन जब भी स्क्रीन पर दिखते हैं, कमाल लगते हैं। वह एक 'उम्मीद' लेकर आते हैं। गंगूबाई पर फिदा लेडीज टेलर अफसान की भूमिका में शांतनु माहेश्वरी प्यारे लगे हैं। आलिया के साथ 'आंखों ही आंखों में रोमांस का इशारा' करने की उनकी क्यूटनेस भरी अदा प्रभावित करती है। सपोर्टिंग कास्ट में सीमा पाहवा और जिम सर्भ का काम भी अच्छा है। हुमा कुरैशी की कव्वाली पर अदाएं दिलकश हैं।

निर्देशन संजय लीला भंसाली के 'कद' को पूरी तरह जस्टिफाई नहीं करता है। पटकथा में कसावट की कमी है। गीत-संगीत कहानी की थीम के अनुरूप है, पर याद रहने लायक कोई गाना नहीं है। मूवी की गति बीच-बीच में सुस्त है। कुछेक दृश्यों को छोड़कर फिल्म के संवाद में भी दम नहीं दिखता है। करीब ढाई घंटे का रनिंग टाइम भी खटकता है, जिसे बतौर एडिटर भंसाली घटा सकते थे। कुछ दृश्यों को उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से पेश किया है। ये दृश्य देखते समय अच्छे भले ही लगते हों, लेकिन बहुत असर नहीं छोड़ पाते। भंसाली ने नाच-गाने का भी सहारा लिया है। कोरियोग्राफी अच्छी है। सुदीप चटर्जी की सिनेमैटोग्राफी का फिल्म को आकर्षक बनाने में अहम योगदान है। फिल्म 'गंगूबाई' के सेक्स वर्कर से सोशल वर्कर बनने तक के सफर को दिखाती है। हालांकि, यह उस तरह का प्रभाव नहीं छोड़ पाती है, जिससे इसे लंबे समय तक जेहन में रख पाएं। खैर, देखना चाहो तो देखो, नहीं भी देखोगे तो कुछ मिस नहीं करोगे।

रेटिंग: ★★

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