धोखे में रखता है टाइटल, कमजोर कंटेंट नहीं बनाता 'बेस्टसेलर' 


  • डायरेक्शन: मुकुल अभ्यंकर
  • राइटिंग: एल्थिया कौशल, अन्विता दत्त
  • जॉनर: थ्रिलर
  • सिनेमैटोग्राफी: समीर आर्य
  • एडिटिंग: सचिन्द्र वत्स
  • म्यूजिक: राजू सिंह
  • क्रिएटिव प्रोडक्शन: सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा
  • एक्शन डायरेक्शन: रियाज शेख, हबीब सैयद
  • प्रोडक्शन डिजाइन: मधुसूदन नागार्जन
  • कॉस्ट्यूम डिजाइन: श्रोबोशी सामंत
  • साउंड डिजाइन-प्रोडक्शन साउंड मिक्सिंग: सामंत क्रिस्टोफर लाकरा
  • आर्ट डायरेक्शन: आर्ची शाह
  • स्टार कास्ट: मिथुन चक्रवर्ती, श्रुति हासन, अर्जन बाजवा, गौहर खान, सत्यजीत दुबे, सोनाली कुलकर्णी, विराफ पटेल, सुचित्रा पिल्लई, वैष्णवी कर्मारकर, चंदना शर्मा, शनाया रावत, शगुन खुराना, आयुषी नेमा, राजेश जैस, ज्ञानेश्वर शुक्ला
  • रनिंग टाइम: 278.05 मिनट

वेब सीरीज 'बेस्टसेलर' के टाइटल से कहीं धोखे में मत आ जाना। यह वेब सीरीज किसी भी मायने में बेस्टसेलर कंटेंट के आसपास नहीं है। रवि सुब्रमण्यम की बुक 'द बेस्टसेलर शी रोट' पर बेस्ड इस वेब सीरीज का निष्पादन घटिया है। अच्छी थ्रिलर के लिए जरूरी है कि मेकर्स कहानी को इस तरह प्रजेंट करें कि आखिरी सीन तक जिज्ञासा बनी रहे। मगर, 'बेस्टसेलर' की मिस्ट्री आधे सफर से पहले ही रिवील हो जाती है और इसका रोमांच कहीं गुम हो जाता है। मंजिल दूर, लेकिन रास्ते में ही 'शाम' हो जाने से सारे ख्वाब टूट जाते हैं और एक मायूसी छा जाती है। तब जेहन में यही आता है, 'क्यों ऐसी उम्मीद की, जो ऐसे नाकाम हुई'। 

यह कहानी शुरू होती है, मुंबई बेस्ड हिंदी उपन्यासकार ताहिर वजीर (अर्जन बाजवा) से, जो 10 साल से कोई किताब नहीं लिख सका है। वह राइटर्स ब्लॉक जैसी स्थिति का सामना कर रहा है। एक दिन कैफे में उसकी मुलाकात छोटे शहर से आई भोली-भाली लड़की मीतू माथुर (श्रुति हासन) से होती है। मीतू उसे बताती है कि वह उसकी फैन है और उसी की तरह कामयाब लेखक बनना चाहती है। वह अपनी लिखी कहानी उसे पढ़ाना चाहती है। ताहिर मीतू की कलाई पर तीन स्लैश मार्क देखता है, जो उसकी उत्सुकता को बढ़ाते हैं। ताहिर की दिलचस्पी मीतू की निजी जिंदगी में ज्यादा बढ़ जाती है। उसकी जिंदगी की घटनाओं में वह अपनी अगली किताब की कहानी देखने लगता है। फिर खुलने लगती हैं अतीत की परतें...।

स्क्रीनप्ले की बात करें तो इसमें दर्शक को अंत तक बांधे रखने वाला 'स्पार्क' मिसिंग है। निर्देशक मुकुल अभ्यंकर ने कहानी को पर्दे पर प्रजेंट करते समय लेखक की रचना प्रक्रिया, रिश्तों में बेवफाई, अतीत की घटनाएं, हैकिंग, एड वर्ल्ड जैसे तमाम पहलू शामिल किए, फिर भी बचकाना थ्रिलर ही क्रिएट कर सके। बैकग्राउंड स्कोर पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वेब सीरीज के आठ एपिसोड हैं और हर एपिसोड करीब 35 मिनट का है। संपादन और चुस्त होता तो बेहतर होता। सिनेमैटोग्राफी और लोकेशंस अच्छी हैं। डी-ग्लैम रोल में श्रुति हासन हौले-हौले अभिनय की लय पकड़ती हैं। रिटायरमेंट के कगार पर खड़े एसीपी की भूमिका में मिथुन चक्रवर्ती ठीक-ठाक हैं। यह सच है कि उनकी एंट्री सीरीज में 'उत्प्रेरक' का काम करती है, लेकिन उनके किरदार को सलीके से नहीं लिखा गया। अर्जन बाजवा की परफॉर्मेंस कामचलाऊ है। गौहर खान ग्लैमर की भरपाई करती हैं। हालांकि कुछ अच्छे सीन उनकी झोली में आए हैं। सत्यजीत दुबे ने अपना काम अच्छे ढंग से किया है। मराठी एक्ट्रेस सोनाली कुलकर्णी यहां वेस्ट हुई हैं। सुचित्रा पिल्लई को सीमित रखा गया है। खैर, बुक का कवर आकर्षक होना इस बात की गारंटी कतई नहीं है कि उसमें लिखा कंटेंट भी दमदार होगा। इसलिए कभी भी कवर देखकर किसी बुक को जज नहीं किया जाना चाहिए। भीतर के पन्ने पलटकर उनमें लिखे शब्दों को पढ़ कर और उनमें निहित भावों को समझ कर ही यह आकलन कर सकते हैं कि किताब के कंटेंट में दम है या नहीं। वेब सीरीज 'बेस्टसेलर' हाइवे पर जाम में फंसे उस वाहन की तरह है, जिसके मुसाफिर परेशान होते रहते हैं। ऐसे में थ्रिलर ही देखनी है तो कोई और विकल्प पर भरोसा जताएं तो आपके लिए बेहतर होगा।

रेटिंग: ★