...और 'बंटी और बबली 2' ने ठग लिया
- राइटिंग-डायरेक्शन: वरुण वी. शर्मा
- म्यूजिक: शंकर-एहसान-लॉय
- एडिटिंग: आरिफ शेख
- सिनेमैटोग्राफी: गेवेमिक यू एरी
- जॉनर: क्राइम-कॉमेडी ड्रामा
- लिरिक्स: अमिताभ भट्टाचार्य
- कोरियोग्राफर: वैभवी मर्चेंट
- एक्शन डायरेक्टर: परवेज शेख
- स्टार कास्ट: सैफ अली खान, रानी मुखर्जी, सिद्धांत चतुर्वेदी, शरवरी वाघ, पंकज त्रिपाठी, राजीव गुप्ता, प्रेम चोपड़ा, असरानी, यशपाल शर्मा, गोपाल दत्त, बृजेन्द्र काला, नीरज सूद
- रनिंग टाइम: 138 मिनट
फिल्म 'बंटी और बबली'(2005) का सीक्वल है 'बंटी और बबली 2'। मूल फिल्म में ठगी के कई मजेदार सीन थे, इसलिए मूवी को पसंद भी किया गया। ऐसे में सीक्वल से उम्मीदें होना लाजमी है। लेकिन, जब फिल्म देखते हैं तो लगता है कि मनोरंजन के 'लालच' में आकर फंस गए। फिल्म खत्म होने पर खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगते हैं। बचकानी कहानी है और स्क्रीनप्ले लचर है। ऑर्गेनिक ह्यूमर का अभाव है। मूवी की धीमी गति झुंझलाहट पैदा करती है।
लोगो वही, पर ठग कोई और
कुख्यात कॉन कपल बंटी और बबली यानी राकेश त्रिवेदी (सैफ अली खान) व उसकी वाइफ विम्मी (रानी मुखर्जी) अब यूपी के फुरसतगंज में रहते हैं और घर-गृहस्थी में व्यस्त हैं। आखिरी ठगी किए हुए उन्हें 15 साल हो गए हैं। तभी गुड़गांव में उन्हीं की स्टाइल में एक ठगी की वारदात होती है। यहां तक कि ठग बंटी और बबली का लोगो छोड़ कर जाते हैं। राकेश-विम्मी भी चौंक जाते हैं। पुलिस के साथ वे भी पता लगाने में जुट जाते हैं कि कौन उनके 'ब्रांड' को यूज कर रहा है।
प्लानिंग नहीं तो एग्जीक्यूशन नहीं
मूवी के डायलॉग 'प्लानिंग ही नहीं होगी तो एग्जीक्यूट क्या करेंगे' की तरह स्टोरी व स्क्रीनप्ले में परफेक्ट 'प्लानिंग' की कमी है। बतौर निर्देशक वरुण इसे ढंग से एग्जीक्यूट नहीं कर पाए। संगीत की भी 'लय' बिगड़ी हुई है। लोकेशंस और सिनेमैटोग्राफी सराहनीय है। संपादन सुस्त है।
एक्टिंग तो ठीक है
सैफ अली खान और रानी मुखर्जी की कैमिस्ट्री में पोटाश तो है लेकिन कहीं-कहीं रानी लाउड लगती हैं। सिद्धांत चतुर्वेदी अपने रोल में फिट हैं। शरवरी वाघ डेब्यू मूवी में कॉन्फिडेंट लगी हैं। पंकज त्रिपाठी देसी अंदाज में कॉमेडी का तड़का लगाते हैं पर उनका यह अंदाज अपनी पिछली फिल्मों जैसा ही है। अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम ओके है।
रेटिंग: ★½
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