'हम...' में सब कुछ है, फिर भी कुछ मिसिंग है
- डायरेक्शन: अभिषेक जैन
- स्टोरी: दीपक वेंकटेशन, अभिषेक जैन
- स्क्रीनप्ले-डायलॉग: प्रशांत झा
- म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: सचिन-जिगर
- जॉनर: कॉमेडी ड्रामा
- एडिटिंग: देव राव जाधव
- सिनेमैटोग्राफी: अमलेंदु चौधरी
- स्टार कास्ट: राजकुमार राव, कृति सैनन, परेश रावल, रत्ना पाठक शाह, अपारशक्ति खुराना, मनु ऋषि चड्ढा, प्राची शाह पांड्या, सानंद वर्मा
- रनिंग टाइम: 129 मिनट
फिल्म 'हम दो हमारे दो' के शीर्षक से धोखा खाने की जरूरत बिल्कुल नहीं है। इसमें फैमिली प्लानिंग की बात जरूर है लेकिन अंदाज जरा अलहदा है। फिल्म की कहानी शादी के लिए नकली मां-बाप बना लेने के इर्द-गिर्द बुनी गई है। हिन्दी सिनेमा के लिए यह कॉन्सेप्ट नया नहीं है। इस फिल्म में अच्छी स्टारकास्ट है, ड्रामा है, रोमांस है और कॉमेडी का टच भी। लेकिन, सब कुछ अधपका सा है, जिससे फिल्म के साथ रियल फैमिली जैसा अपनापन महसूस नहीं होता। फिल्म में रत्ना पाठक शाह का संवाद है- 'रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं उन्हें झूठ की बुनियाद पर नहीं बनाना चाहिए। एक बार टूट जाएं तो फिर जोड़ना बहुत मुश्किल होता है।' यही बात फिल्म पर भी लागू होती है। अगर एक बार फिल्म का रिद्म टूटना शुरू होता है तो उसे संभालना मुश्किल हो जाता है। यही स्थिति इस फिल्म के साथ है।
ब्राइट फ्यूचर का सपना
कहानी शुरू होती है सेल्फ-मेड एंटरप्रेन्योर ध्रुव(राजकुमार राव) की अपने ऐप लॉन्च इवेंट में फ्रीलांस ब्लॉगर आन्या मेहरा(कृति सैनन) से खट्टी-मीठी मुलाकात से। इसके बाद फिर से वे टकराते हैं। धीरे-धीरे मुलाकातों को दौर बढ़ता है और दोनों नजदीक आने लगते हैं। बचपन में मां-बाप को खो चुकी आन्या का सपना ऐसे लड़के से शादी करने का है, जिसकी स्वीट-सी फैमिली हो और एक प्यारा सा डॉगी हो। मगर ध्रुव तो अनाथ है। वह शादी के लिए आन्या को प्रपोज भी कर देता है पर मुश्किल यह है कि पैरेंट्स कहां से लाए। ध्रुव को अपना ब्राइट फ्यूचर देखना है, सैड बचपन नहीं। ऐसे में वह दोस्त सैंटी(अपारशक्ति खुराना) की मदद से नकली माता-पिता के जुगाड़ में जुट जाता है। इस जुगाड़ से कहानी में कुछ ट्विस्ट आते हैं।
राजकुमार-कृति नहीं, परेश-रत्ना छाए
राजकुमार और कृति ने अभिनय तो रोल के अनुरूप किया है पर दोनों की रोमांटिक कैमिस्ट्री में स्पार्क मिसिंग है। फिल्म में परेश रावल और रत्ना पाठक शाह का ट्रैक राजकुमार व कृति की कहानी के समानांतर चलता है और यह फिल्म में अलग रंग भरता है। परेश की एंट्री से कुछ देर के लिए हंसी का माहौल बनता है। परेश का भरपूर साथ देती हैं रत्ना। आन्या के चाचा का रोल इंटरेस्टिंग है, जिसे मनु ऋषि चड्ढा ने अच्छे से निभाया है। हालांकि उनके किरदार को और विस्तार दिया जा सकता था। अपारशक्ति खुराना नायक के दोस्त के पर्याय बनते जा रहे हैं। प्राची पांड्या और सानंद वर्मा ने हमेशा की तरह अच्छा अभिनय किया है।
बन नहीं पाती लय
अभिषेक जैन की निर्देशन पर पकड़ मजबूत नजर नहीं आई। कहानी में ताजगी का अभाव है। पटकथा में कसावट नहीं है। कॉमेडी की लय बनने से पहले ही टूटने लगती है, जिससे फिल्म बेजान सी हो जाती है। कुछ कॉमिक पंच और वन लाइनर्स अच्छे बन पड़े हैं। गीत-संगीत मूड को फ्रेश नहीं करता। एडिटिंग भी जरा ढीली है। लोकेशंस ठीक हैं पर सिनेमैटोग्राफी और बेहतर हो सकती थी।
क्यों देखें: फिल्म का एक डायलॉग है- 'फैमिली चुन नहीं सकते, वह या तो होती है या नहीं होती है।' मगर आप यह जरूर चुन सकते हैं कि आपको कौन-सी फिल्म देखनी है और कौन-सी नहीं। अगर आप राजकुमार राव और कृति सैनन के प्रशंसक हैं तो 'हम दो हमारे दो' देख सकते हैं। हालांकि आपको ज्यादा संतुष्टि मिलने की गारंटी कतई नहीं है।
रेटिंग: ★½
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