इतिहास के पन्नों से सिनेमाई पर्दे पर जीवंत हुए 'सरदार उधम' 


  • डायरेक्शन: शूजित सरकार
  • स्टोरी: शुबेन्दु भट्टाचार्य
  • स्क्रीनप्ले: रितेश शाह, शुबेन्दु भट्टाचार्य
  • डायलॉग: रितेश शाह
  • जॉनर: बायोग्राफिकल ड्रामा
  • एडिटिंग: चंद्रशेखर प्रजापति
  • सिनेमैटोग्राफी: अविक मुखोपाध्याय
  • बैकग्राउंड स्कोर: शांतनु मोइत्रा
  • स्टार कास्ट: विक्की कौशल, शॉन स्कॉट, बनिता संधू, अमोल पाराशर, स्टीफन होगन, कर्स्टी एवर्टन, एंड्रयू हैविल, रितेश शाह, जोगी मलंग, मानस तिवारी, तुषार जैन
  • रनिंग टाइम: 162 मिनट

फिल्म 'सरदार उधम' आजादी की लड़ाई के इतिहास के उन पन्नों को पलटती है, जो वर्ष 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड के काले अध्याय के बाद लिखे गए हैं। इस नृशंस हत्याकांड में मारे गए लोगों की चीखें महसूस करने वाले उधम सिंह घटना के करीब 21 साल बाद इस षड्यंत्र के जिम्मेदार पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर जनरल माइकल ओ'डायर की हत्या कर इसका बदला लेते हैं। शूजित सरकार ने इन घटनाओं को दस्तावेज के अंदाज में सिनेमाई कैनवास पर उकेरा है।

जुनूनी सफर

कहानी की शुरुआत में वर्ष 1931 में पंजाब की जेल में बंद उधम सिंह रिहा किए जाते हैं। हालांकि उन पर पुलिस की कड़ी निगरानी है लेकिन वे चकमा देने में कामयाब रहते हैं। यहां से वे अपना नाम बदल-बदल कर अलग-अलग देशों से होते हुए 1934 में लंदन पहुंचते हैं। वहां पर रहने वाले भारतीयों की मदद से उधम सिंह अपने लिए पिस्तौल का इंतजाम करते हैं। छह साल तक भिन्न-भिन्न तरह के जॉब करते हैं। फिर 13 मार्च 1940 को कैक्सटन हॉल में माइकल ओ'डायर पर पिस्तौल की छह की छह गोलियां बरसा देते हैं। पुलिस तुरंत उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। उन पर मुकदमा चलाया जाता है। इस बीच फ्लैशबैक में उधम की जिंदगी के अलग-अलग पड़ाव की कहानी चलती रहती है।

शूजित स्टाइल...रवानगी तो ठहराव भी

निर्देशक शूजित सरकार ने शहीद उधम सिंह से जुड़े पहलुओं को अपने स्टाइल में पेश किया है। फिल्म तेज रफ्तार से आगे नहीं बढ़ती बल्कि इसमें ठहराव भी है। संवादों के साथ खामोशी की 'आवाज' भी है। जलियांवाला हत्याकांड में लाशों के ढेर के बीच से कराहती जिंदगी जैसे झकझोर देने वाले दृश्य उम्दा हैं। शूजित ने छोटे से छोटे तथ्यों से लेकर लोकेशंस तक पर अच्छा काम किया है। पटकथा सधी हुई है। कहानी वर्तमान और फ्लैशबैक में चलती है लेकिन लय बनी रहती है। मानसी ध्रुव मेहता, दिमित्री मालिच द्वारा किया गया प्रोडक्शन डिज़ाइन शानदार है। लोकेशंस और सेट्स विषय व काल के अनुरूप हैं। अविक मुखोपाध्याय की सिनेमैटोग्राफी फिल्म को असरदार बनाती है। एडिटिंग में जरूर थोड़ी गुंजाइश रह गई। चुस्त संपादन से फिल्म की लंबाई करीब पंद्रह मिनट कम की जा सकती थी। 

उधम को किया 'जीवंत'

उधम सिंह के किरदार में विक्की कौशल पूरी तरह रच-बस गए हैं। उन्होंने कैरेक्टर को जीया है। दर्द और रोष जाहिर करने के हाव-भाव भी कमाल के हैं। भगत सिंह के साथ उधम की ट्यूनिंग हो या फिर करीबी दोस्त रेशमा के साथ कैमिस्ट्री.. सब कुछ आई कैची हैं। बनिता संधू की खामोशी में भी गुनगुनाहट है। भगत सिंह के किरदार में अमोल पाराशर ठीक-ठाक हैं। वहीं, ब्रिटिशर्स के किरदारों में शॉन स्कॉट, स्टीफन होगन, कर्स्टी एवर्टन ने अच्छा काम किया है।

क्यों देखें: फिल्म उधम सिंह की शख्सियत के साथ-साथ आजादी की लड़ाई के प्रति उनके नजरिए से भी परिचित करवाती है। विक्की कौशल की एक्टिंग माइंड ब्लोइंग है, वहीं शूजित सरकार का निर्देशन फिल्म में निखार लाता है। लिहाजा अतीत के दबे हुए पन्नों से निकली कहानी पर बनी 'सरदार उधम' वाकई में देखने लायक फिल्म है।

रेटिंग: ½