रॉकेट के अंदाज में फिनिश लाइन को टच नहीं करती 'रश्मि रॉकेट'
- बैनर: आरएसवीपी, मैंगो पीपल मीडिया नेटवर्क
- डायरेक्शन: आकर्ष खुराना
- स्टोरी: नंदा पेरियासामी
- स्क्रीनप्ले: अनिरुद्ध गुहा, कनिका ढिल्लों
- डायलॉग: कनिका ढिल्लों, आकर्ष खुराना, अनिरुद्ध गुहा, लिशा बजाज
- जॉनर: स्पोर्ट्स ड्रामा
- एडिटिंग: अजय शर्मा, श्वेता वेंकट मैथ्यू
- सिनेमैटोग्राफी: नेहा पार्ती मटियानी
- म्यूजिक: अमित त्रिवेदी
- लिरिसिस्ट: कौसर मुनीर
- स्टार कास्ट: तापसी पन्नू, प्रियांशु पेन्युली, अभिषेक बनर्जी, सुप्रिया पाठक, सुप्रिया पिलगांवकर, मंत्रा, मनोज जोशी, वरुण बडोला, मिलोनी झोंसा, नमिता दुबे, आकाश खुराना, श्वेता त्रिपाठी, उमेश प्रकाश जगताप, चिराग वोरा, जफर कराचीवाला
- रनटाइम: 129 मिनट
तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म 'रश्मि रॉकेट' महिला एथलीट्स की जेंडर टेस्टिंग प्रक्रिया के संवेदनशील मुद्दे को उठाती है। लिंग परीक्षण के कारण दुनियाभर में कई महिला एथलीट को अपमान का घूंट पीना पड़ता है। यहां तक कि उनका कॅरियर भी बर्बाद हो जाता है। 'रश्मि रॉकेट' में इस टेस्ट से गुजरने वाली ऐसी ही एक स्प्रिंटर को अपनी पहचान, प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान के लिए लड़ते हुए दिखाया गया है। सब्जेक्ट बेहद दिलचस्प है पर फिल्म परफेक्ट तरीके से फिनिश लाइन तक नहीं पहुंचती। टाइटल भले ही 'रश्मि रॉकेट' है पर फिल्म फुर्तीले अंदाज में आगे नहीं बढ़ती। इसकी एक वजह स्क्रीनप्ले है, जो क्रिस्प नहीं है। इस कारण स्पोर्ट्स आधारित यह फिल्म दर्शकों से मजबूती के साथ कनेक्ट नहीं हो पाती।
खेल में पैबस्त बुराई के खिलाफ संघर्ष की कहानी
कहानी में रश्मि वीरा (तापसी पन्नू) भुज में एक टूर गाइड के रूप में काम करती है। वह बहुत तेज दौड़ती है, लिहाजा इलाके के लोग उसे 'रॉकेट' बुलाते हैं। उसकी मुलाकात आर्मी कैप्टन गगन ठाकुर (प्रियांशु पेन्युली) होती है। गगन खुद एक पदक विजेता एथलीट रहा है और अब आर्मी में एथलीट्स को ट्रेन करता है। रश्मि के टैलेंट से प्रभावित होकर गगन उसे एथलेटिक्स प्रतिस्पर्द्धाओं में हिस्सा लेने को प्रेरित करता है। अतीत में घटी एक घटना के चलते रेस कॉम्पीटिशन से दूरी बना चुकी रश्मि आनाकानी करती है लेकिन अपनी मां की समझाइश के साथ-साथ भावनात्मक दबाव के चलते वह मान जाती है। गगन उसे ट्रेन करता है और रश्मि एक के बाद एक राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में विनर बनती जाती है, जिससे वह इंडियन एथलेटिक्स एसोसिएशन के सिलेक्टर्स की नज़र में आ जाती है।
वह नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट्स की तैयारी के लिए एथलेटिक्स एसोसिएशन की पुणे स्थित एथलीट एकेडमी जॉइन कर लेती है। रश्मि में प्रतिभा तो खूब है लेकिन प्रॉपर टेक्निक नहीं है। कोच तेजस मुखर्जी(मंत्रा) रश्मि को निखारने में जुट जाता है। लेकिन, रश्मि के टैलेंट से देश की नंबर एक स्प्रिंटर निहारिका चोपड़ा(मिलोनी झोंसा) को परेशानी है क्योंकि अब रश्मि उसके लिए कॉम्पीटिटर है। निहारिका एसोसिएशन के पदाधिकारी दिलीप चोपड़ा (वरुण बडोला) की बेटी भी है। एशियन गेम्स-2014 में रश्मि तीन मेडल जीत लेती है। यह उसके लिए मुसीबत का सबब बन जाता है। वह अपनी कामयाबी को ढंग से सेलिब्रेट करे, इससे पहले ही एसोसिएशन की ओर से उसका जेंडर टेस्ट करवाया जाता है, जहां उसे शारीरिक और मानसिक रूप से काफी प्रताड़ित होना पड़ता है। इसके बाद एक एथलीट उसे लौंडा कह कर पुकारती है तो रश्मि अपना आपा खो देती है और उसके मुंह पर पंच मारती है। उसे पुलिस गिरफ्तार कर ले जाती है। इसके बाद एसोसिएशन उस पर नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट्स में भाग लेने से बैन लगा देती है। मीडिया और समाज उसके औरत होने पर सवाल उठाने लगते हैं। इसके बाद शुरू होती है रश्मि के संघर्ष की असली कहानी।
तापसी के साथ ही अभिषेक भी हाईलाइट पॉइंट
तापसी ने एथलीट के किरदार के लिए मेहनत की है, जो पर्दे पर दिखती है। हालांकि अभिनय में नयापन महसूस नहीं होता। आर्मी अफसर और रश्मि के पार्टनर के रोल में प्रियांशु पेन्युली चेहरे पर बारहमासी मुस्कान लिए हुए हैं और उन्होंने अपने किरदार की जिम्मेदारी ठीक से निभाई है। अभिषेक बनर्जी फिल्म के हाईलाइट पॉइंट हैं। वकील के रोल में वह ध्यान आकर्षित करते हैं। जज बनीं सुप्रिया पिलगांवकर के साथ कोर्टरूम में अभिषेक के कई दृश्य अच्छे हैं, जिनमें थोड़ा विट भी है। सुप्रिया पाठक मां की भूमिका में ठीक हैं लेकिन उनके कैरेक्टर को और मजबूत बनाया जा सकता था। यही बात वरुण बडोला के किरदार के लिए कही जा सकती है। उनके कैरेक्टर पर भी और काम किया जा सकता था। मिलोनी झोंसा, नमिता दुबे और आकाश खुराना की परफॉर्मेंस ओके है। मनोज जोशी और श्वेता त्रिपाठी कैमियो में ठीक लगे हैं। मंत्रा कोच की भूमिका में अनफिट लगे हैं।
कोशिश में थोड़ी कमी रह गई
जेंडर टेस्टिंग के मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए निर्देशक आकर्ष खुराना ने हिम्मत दिखाई, इसके लिए वह सराहना के पात्र हैं। लेकिन उनका निर्देशन साधारण है। उन्होंने कई तयशुदा फॉर्मूलों का इस्तेमाल किया है। फिल्म में एक डायलॉग है- 'हार जीत परिणाम है, कोशिश हमारा काम है'। लेकिन, एक प्रभावी स्पोर्ट्स फिल्म बनाने के लिहाज से पटकथा, निर्देशन और संपादन में कोशिश में कुछ कमी खलती है। कुछ गैर-जरूरी दृश्यों और गीतों के चलते रनिंग टाइम ज्यादा महसूस होता है। इस कारण फिल्म बोझिल लगने लगती है। अमित त्रिवेदी का गीत-संगीत असरदार नहीं है। कोई भी ऐसा ट्रैक नहीं है, जो फिल्म के सब्जेक्ट से तालमेल बनाए रखते हुए जोश जगा दे।
क्यों देखें: फिल्म का प्लस पॉइंट इसका विषय है। कहानी भी अच्छी है। मजबूत स्टैंड भी है। यहां तक कि फिल्म देखते समय भारतीय धाविका दुती चंद का नाम भी जेहन में आता है। स्क्रीनप्ले, म्यूजिक और कुछ अन्य टेक्निकल आस्पेक्ट्स पर मेकर्स ने गंभीरता दिखाई होती तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी। फिर भी जेंडर टेस्टिंग के मुद्दे और तापसी-अभिषेक के लिए ओटीटी पर तो यह फिल्म देखी ही जा सकती है।
रेटिंग: ★★½
1 Comments
Casinos in the UK - How to find good games - GrizzGo
ReplyDeleteSo, what do 스포츠 토토 사이트 we mean by casinosites.one “casinos in the UK”? to find a casino and live gri-go.com casino games gri-go.com on a mobile phone poormansguidetocasinogambling.com device in 2021.