'साइना' ने स्मैश तो खूब मारे, पर सभी से फुल पॉइंट नहीं मिलते


  • बैनर: टी-सीरीज फिल्म्स, फ्रंट फुट पिक्चर्स
  • राइटिंग-डायरेक्शन: अमोल गुप्ते
  • जॉनर: बायोग्राफिकल स्पोर्ट्स
  • एडिशनल डायलॉग्स: अमितोश नागपाल
  • म्यूजिक: अमाल मलिक
  • लिरिक्स: मनोज मुंतशिर, कुणाल वर्मा
  • सिनेमैटोग्राफर: पीयूष शाह
  • एडिटर: दीपा भाटिया
  • प्लेबैक सिंगर्स: श्रेया घोषाल, अरमान मलिक, अमाल मलिक
  • डांस डायरेक्टर: विजय गांगुली
  • स्टार कास्ट: परिणीति चोपड़ा, मानव कौल, मेघना मलिक, शुभ्रज्योति बरत, अंकुर विकल, ईशान नकवी, नायशा कौर भटोये, रोहन आप्टे, शरमन डे
  • रनटाइम: 134 मिनट
पिछले कुछ सालों से स्पोर्ट्स पर्सनैलिटी पर बायोपिक बनाने का एक ट्रेंड चल निकला है। 'पान सिंह तोमर', 'भाग मिल्खा भाग', 'मैरी कोम', 'अजहर', 'एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी', 'दंगल', 'सूरमा' सरीखी बायोपिक की फेहरिस्त में अब 'साइना' का नाम भी जुड़ गया है। यह कहानी है भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल की, जो पहली फीमेल बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने देश के लिए न सिर्फ ओलंपिक में मेडल जीता बल्कि वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर वन तक भी पहुंचीं। इस फिल्म में बैडमिंटन कोर्ट में साइना के पहला कदम रखने से लेकर चैंपियन और वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बनने तक के सफर को पिरोया गया है, जिसमें साइना की प्रतिभा, लगन, मेहनत और मजबूत इच्छाशक्ति को दिखाया है। इतना ही नहीं, साइना की मां के सपने और पिता के समर्पण को भी पेश किया है। 

उतार-चढ़ाव से गुजरता है कॅरियर

यह प्रेरणादायक कहानी बयां करती है कि चैंपियन बनने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है। कहानी में आठ वर्षीय साइना की फैमिली कुछ दिन पहले ही हरियाणा के हिसार से हैदराबाद शिफ्ट हुई है। साइना की मां उषा रानी डिस्ट्रिक्ट लेवल की बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं। वह अपनी बेटी के स्पोर्ट टैलेंट को पहचान लेती हैं और उसे चैंपियन बनते देखना चाहती हैं। इसके लिए वह साइना का एडमिशन घर से 25 किलोमीटर दूर लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में स्थित एकेडमी में करा देती हैं। साइना अपनी प्रतिभा और मेहनत से जल्द ही सबको प्रभावित कर लेती हैं। यही नहीं, सब जूनियर लेवल और फिर जूनियर लेवल पर मेडल व खिताब जीतने का सिलसिला भी शुरू होता है। इसी बीच, साइना को कोच राजन की एकेडमी जॉइन करने का चांस मिलता है। इसके बाद साइना के खेल कॅरियर में उतार-चढ़ाव आते हैं, साथ ही वह शोहरत की बुलंदियों तक भी पहुंचती है। 

परिणीति की सर्विस तो दमदार, पर मैच पॉइंट में चूक गईं

साइना के रोल में खुद को ढालने के लिए परिणीति चोपड़ा ने मेहनत तो खूब की है, जो नजर भी आती है। लेकिन इसके बावजूद वह अपनी एक्टिंग से उतना प्रभावित नहीं कर पातीं। दरअसल, उनके अभिनय का एक सीमित दायरा है और वह उससे बाहर निकलकर कुछ असाधारण नहीं कर सकीं। साइना के बचपन का रोल नायशा कौर भटोये ने परफेक्ट अंदाज में निभाया है। वह न सिर्फ साइना के बचपन की असल झलक देती हैं, बल्‍क‍ि खेल को लेकर उसके स्‍क‍िल्‍स भी पर्दे पर अच्‍छे दिखते हैं। कोच के किरदार में मानव कौल स्वाभाविक लगे हैं। मेघना मलिक ने मां की भूमिका हरियाणवी टच और जिस फ्लो के साथ निभाई है, उससे वह ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रही हैं। ईशान नकवी और शुभ्रज्योति की परफॉर्मेंस सराहनीय है।

सिर्फ 'चैंपियन' दिखाने पर किया फोकस

अमोल गुप्ते का डायरेक्शन नीट और क्लीन है। उन्होंने स्टोरी को बेहद सिम्पल रखा है। यहां तक कि मनोरंजन के लिहाज से ग्लैमर का तड़का लगाने से भी परहेज किया। उन्होंने वही दिखाया है, जो साइना की छवि को प्रभावित नहीं करे। साइना की जर्नी से जुड़े उन पहलुओं को नहीं दिखाया, जो किसी तरह की थोड़ी सी भी कंट्रोवर्सी को जन्म दें। पटकथा ठीक है लेकिन कहीं कहीं इसकी वह लय बरकरार नहीं रहती, जो मनोरंजन के कोर्ट पर विनर साबित हो। डायलॉग्स शार्प और इम्प्रेसिव हैं। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है, खासकर बैडमिंटन मैच के दृश्य उम्दा ढंग से दिखाए हैं। म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर में उस एक्स फैक्टर की कमी है, जो इस तरह की इंस्पिरेशनल लाइफ स्टोरी में समानांतर जोश की अनुभूति कराए। एडिटिंग ओके है।  

क्यों देखें: 'साइना' में सिनेमाई रूप से रोमांच की कमी है। एंटरटेनमेंट का पुट कम होने से कहीं-कहीं यह धीमी पड़ जाती है। दरअसल, साइना की कहानी में स्‍ट्रगल उतना नहीं दिखता, क्योंकि उसे सपोर्ट करने वाले काफी लोग हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह फिल्‍म और अध‍िक मेमोरेबल बन सकती थी। अगर कुछ पहलुओं पर थोड़ा और गौर किया जाता। भले ही यह एक इंस्पिरेशनल जर्नी को प्रदर्शित करती है, फिर भी युवाओं को प्रेरित करने के भाव में कम‍तर ही दिखती है। बहरहाल, एक बार तो फिल्म को देख ही सकते हैं।

रेटिंग: ½