'रूही' में वो कशिश नहीं, जो दिल चुरा ले...
- बैनर: मैडॉक फिल्म्स, जियो स्टूडियोज
- डायरेक्शन: हार्दिक मेहता
- जॉनर: हॉरर कॉमेडी
- राइटर: मृगदीप सिंह लाम्बा, गौतम मेहरा
- म्यूजिक: सचिन-जिगर
- लिरिक्स: अमिताभ भट्टाचार्य
- सिनेमैटोग्राफी: अमलेन्दु चौधरी
- एडिटिंग: हुजेफा लोखंडवाला
- बैकग्राउंड म्यूजिक: केतन सोढ़ा
- रनटाइम: 134 मिनट
- स्टारकास्ट: राजकुमार राव, वरुण शर्मा, जाह्नवी कपूर, मानव विज, सरिता जोशी, एलेक्स ओ'नील, सुमित गुलाटी, अनुराग अरोड़ा, राजेश जैस
हॉरर कॉमेडी फिल्म 'रूही' के ट्रेलर से यह उम्मीद जगी थी कि यह 'स्त्री'(2018) जैसा मजा देगी लेकिन 'रूही' उस भरोसे को पूरी तरह चकनाचूर करती है। यह फिल्म न तो डराने की कोशिश में सफल होती है और न ही हंसाने में। बस, किस्तों में बहुत थोड़ा सा मनोरंजन करती है।
फिल्म की कहानी में भंवरा पांडे (राजकुमार राव) व कटन्नी (वरुण शर्मा) छोटे से कस्बे बागड़पुर में क्राइम जर्नलिस्ट हैं। इतना ही नहीं, पार्ट टाइम में ये दोनों 'पकड़ाई शादी' के धंधे से भी जुड़े हैं और अपने बॉस के कहने पर लड़की को उठाकर उसकी मर्जी के बिना शादी कराते हैं। इसी तरह एक दिन बॉस के आदेश पर दोनों रूही (जाह्नवी कपूर) को अगवा कर लेते हैं। दोनों उसको शादी के मंडप तक पहुंचाएं, इससे पहले ही उनका बॉस फोन कर के उन्हें बताता है कि लड़के वालों के परिवार में कोई ट्रेजडी हो जाने के कारण शादी को एक हफ्ते के लिए टाल दिया गया है। ऐसे में उन्हें रूही को कस्बे से दूर जंगल में एक पुरानी फैक्ट्री में रखना पड़ता है। रूही के अजीब बर्ताव से उन्हें मालूम पड़ता है कि उस पर 'मुड़ियापैरी चुड़ैल' अफजा का साया है। इस ट्विस्ट के बाद कहानी में एक और मोड़ तब आता है, जब भंवरा को नॉर्मल रूही की सादगी से प्रेम हो जाता है तो कटन्नी चुड़ैल अफजा से खौफ खाने की बजाय उस पर लट्टू हो जाता है। आगे की कहानी इन तीनों किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है।
जाह्नवी फिल्म के सेंटर में, फिर भी हैं फीकी
राजकुमार राव का अभिनय ठीक-ठाक है पर वे कुछ नया और असाधारण नहीं कर पाए। जाह्नवी कपूर के किरदार पर फिल्म का टाइटल है, फिर भी उनकी एक्टिंग में जरा सा भी आत्मविश्वास नहीं झलकता। उनके पूरी फिल्म में एक जैसे ही हाव-भाव रहे। उन्हें संवाद भी गिने-चुने मिले हैं। यह जरूर है कि नॉर्मल लड़की तुलना में वे चुड़ैल के अवतार में थोड़ी ठीक लगी हैं। वरुण शर्मा के हास्यप्रद एक्सप्रेशन, बॉडी लैंग्वेज और अंग्रेजी के शब्दों का गलत उच्चारण करना फन का तड़का लगाते हैं। हालांकि वरुण जब से इंडस्ट्री में आए हैं तब से खुद को एक दायरे तक सीमित कर लिया है। उससे बाहर निकलने की जरा भी कोशिश नहीं करते। बार-बार उन्हें एक जैसे अंदाज में परफॉर्म करते देखना भी ज्यादा देर तक अच्छा नहीं लगता। इन सबके बीच राजकुमार व वरुण की इक्वेशन ही फिल्म का प्लस पॉइंट है, जिससे टुकड़ों में ही सही, कुछ देर के लिए हंसी तो आती है। अन्य सपोर्टिंग कास्ट में सरिता जोशी की परफॉर्मेंस ही सराहनीय है। मानव विज के लिए करने को कुछ खास नहीं है।
कहानी शुरू होते ही राह भटक गई
प्लॉट पेचीदा है, जो पूरी फिल्म में खुद को स्थापित करने के लिए जूझता नजर आता है। पटकथा कमजोर है, जो लड़खड़ाते हुए आगे का सफर तय करती है। हार्दिक मेहता निर्देशन पर पकड़ ही नहीं रख पाए। शुरुआत के कुछ देर बार ही फिल्म उनके हाथ से कुछ ऐसे फिसली कि वो उसे समेट ही नहीं पाए। कुछ दृश्य अच्छे हैं पर सीन दर सीन फिल्म बिखरती जाती है। फिल्म में ऐसी कई कड़ी हैं, जो अधपकी सी रह गई हैं। कई बातें अस्पष्ट हैं। फिल्म देखते समय जेहन में कई प्रश्न उठते हैं, जिनका जवाब नहीं मिलना परेशान करता है। क्लाइमैक्स अटपटा है। कुछ डायलॉग्स इतने अस्पष्ट बोले गए हैं कि समझ से परे हैं। गीत-संगीत भी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता। सिनेमैटोग्राफी और लोकेशंस कुछ सुकून देते हैं। वीएफएक्स अच्छे हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी ठीक है। मगर संपादन में चुस्ती की दरकार है।
रेटिंग: ★½
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