अहम संदेश के साथ 'उन दिनों' की यादों का कोलाज है 'छिछोरे' 


  • डायरेक्शन: नितेश तिवारी
  • राइटिंग: नितेश तिवारी, पीयूष गुप्ता, निखिल मेहरोत्रा
  • म्यूजिक: प्रीतम
  • सिनेमैटोग्राफी: अमलेंदु चौधरी
  • एडिटिंग: चारू श्री रॉय
  • लिरिसिस्ट: अमिताभ भट्टाचार्य
  • रनिंग टाइम: 145 मिनट
  • स्टार कास्ट: सुशांत सिंह राजपूत, श्रद्धा कपूर, वरुण शर्मा, ताहिर राज भसीन, प्रतीक, नवीन पोलीशेट्टी, तुषार पांडे, सहर्ष शुक्ला, नलनीश नील, शिशिर शर्मा
नितेश तिवारी बॉलीवुड के वो फिल्म मेकर हैं, जिन्होंने वर्ल्डवाइड हाइएस्ट ग्रॉसिंग इंडियन फिल्म 'दंगल' का निर्देशन किया है। इस फिल्म के कंटेंट और उसके प्रजेंटेशन के अंदाज को दर्शकों की खूब सराहना मिली थी। अब वह कॉमेडी-ड्रामा 'छिछोरे' लेकर हाजिर हुए हैं, जिसका ताना-बाना कॉलेज लाइफ की मस्ती और दोस्ती के इर्द-गिर्द बुना गया है। इसके साथ ही फिल्म में एक ऐसा संदेश भी दिया गया है, जो आज के दौर में बेहद जरूरी है। मौजूदा दौर कड़ी प्रतियोगिता का है। प्रतिष्ठित कॉलेजों और संस्थानों में एडमिशन लेना किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि सीटें सिर्फ हजारों में होती हैं तो एंट्रेंस एग्जाम में अपीयर होने वाले स्टूडेंट्स लाखों में होते हैं। ऐसे में चुनिंदा स्टूडेंट्स ही एंट्रेंस एग्जाम क्लीयर कर पाते हैं और जो फेल हो जाते हैं, उन्हें लगता है कि वे लूजर हैं। उनमें जीने की इच्छाशक्ति ही खत्म हो जाती है और वे आत्महत्या जैसा कदम भी उठा लेते हैं। हमारे समाज की संरचना ही ऐसी है, जिसमें सफलता के बाद क्या करना है, इसका पूरा खाका तो तैयार रहता है, लेकिन अगर फेल हो गए तो उस विफलता को कैसे लेना है, इस बारे में कोई नहीं बताता। फिल्म में इसी इश्यू को उठाया गया है और यह संदेश देने की कोशिश की है कि विफल होने पर निराश नहीं होना चाहिए। फिल्म भले ही '3 इडियट्स' के अहसास को छूती हुई निकलती है, पर उतनी मजेदार और असरदार नहीं है, जितनी इससे उम्मीद लगाई गई थी।

लूजर के टैग की चुभन और उसे हटाने की जद्दोजहद

तलाकशुदा अनिरुद्ध पाठक (सुशांत सिंह राजपूत) और माया (श्रद्धा कपूर) के बेटे राघव ने इंजीनियरिंग में एडमिशन के लिए एंट्रेंस टेस्ट दिया है, लेकिन जब रिजल्ट आता है तो उसे निराशा हाथ लगती है। उसे लगता है कि वह लूजर है, जबकि उसके माता-पिता रैंक होल्डर रह चुके हैं। इसी निराशा के भाव में वह बिल्डिंग से कूद जाता है। उसे गंभीर हालत में अस्पताल में एडमिट कराया जाता है। जो डॉक्टर उसका इलाज कर रहा होता है, उसे लगता है कि राघव पर ट्रीटमेंट इसलिए असर नहीं कर पा रहा, क्योंकि उसमें जीने की चाह ही खत्म हो गई है। यह बात वह उसके माता-पिता को बताता है। तब अनिरुद्ध उसे अस्पताल में ही अपनी कॉलेज लाइफ सुनाना शुरू करता है। कहानी फ्लैशबैक में जम्प करती है, जहां अनिरुद्ध नेशनल कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एडमिशन लेता है। वहां उसे हॉस्टल एच4 अलॉट होता है। इस हॉस्टल के स्टूडेंट्स को लूजर कहकर बुलाया जाता है। हॉस्टल में अनिरुद्ध की मुलाकात सीनियर स्टूडेंट सेक्सा (वरुण शर्मा) से होती है, जो एकदम ठरकी किस्म का है। वहीं एक अन्य सीनियर एसिड (नवीन पोलीशेट्टी) की जुबां पर हमेशा गाली होती है। ये दोनों स्टूडेंट्स की रैगिंग लेते हैं। हॉस्टल में इनका जूनियर मम्मी (तुषार पांडे) और सीनियर डेरेक (ताहिर राज भसीन) और बेवड़ा (सहर्ष शुक्ला) भी हैं। कॉलेज में प्रवेश लेने के साथ ही अनिरुद्ध का दिल एच10 हॉस्टल में रहने वाली माया पर आ जाता है। इसी बीच अनिरुद्ध को पता चलता है कि उनके हॉस्टल के स्टूडेंट्स को लूजर क्यों बुलाया जाता है। डैरेक उसे बताता है कि कॉलेज में हर साल स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप होती है, जिसमें एच4 के स्टूडेंट्स आखिरी नंबर पर रहते हैं। इस वजह से उन पर लूजर का टैग लग गया है। यह टैग बहुत चुभता है। इसे हर बार हटाने की कोशिश भी करते हैं, पर फिसड्डी ही रह जाते हैं। फिर हॉस्टल्स के ये सारे दोस्त मिलकर स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप एच4 को जिताने की कोशिश में लग जाते हैं। इसके बाद कहानी में रोचक मोड़ आते हैं।

वरुण हैं असली 'छिछोरे'

स्क्रिप्ट सिम्पल है और स्क्रीनप्ले कसा हुआ नहीं है। पहला हाफ धीमा है, मगर दूसरे हाफ में इंटरेस्टिंग चीजें होती हैं, जिससे फिल्म को गति मिलती है। कॉलेज लाइफ की मस्ती, सीनियर्स द्वारा जूनियर्स की रैगिंग, स्टूडेंट्स का छिछोरापन, हॉस्टलर्स के बीच का टशन, लूजर का टैग, खेल प्रतियोगिता जीतने के लिए तिकड़बाजी सरीखे सीन मनोरंजक हैं। संवाद में इस बात का ध्यान रखा गया है कि ये कॉलेज स्टूडेंट्स की आपसी बोलचाल से रिलेट करते हों। जिस तरह लिखावट परफेक्ट नहीं है, उसी तरह नितेश के निर्देशन में भी परफेक्शन की कमी लगती है। वह माइलस्टोन फिल्म 'दंगल' की तरह 'छिछोरे' को फ्रेम दर फ्रेम मनोरंजक बनाने में चूक गए। गीत-संगीत औसत है। कोई गाना ऐसा नहीं है, जो याद रह जाए। अभिनय की बात करें तो सुशांत सिंह राजपूत ने अपना रोल अच्छे से अदा किया है। श्रद्धा कपूर लड़कों के कुनबे के बीच एकमात्र लड़की हैं, जो शोपीस से ज्यादा नहीं हैं। वरुण शर्मा को 'फुकरे' मूवी के 'चूचा' के किरदार के लिए जाना जाता है। इस फिल्म में भी उनकी कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त है। उन्हें स्क्रीन पर देखते ही हंसी छूट पड़ती है। वह फिल्म के असली 'छिछोरे' हैं। ताहिर राज की परफॉर्मेंस इम्प्रेसिव है। नवीन पोलीशेट्टी, तुषार पांडे, प्रतीक और सहर्ष शुक्ला ने अपने किरदार असरदार तरीके से निभाए हैं। सिनेमैटोग्राफी ओके है।

क्यों देखें: 'छिछोरे' फिल्म कॉलेज की यादों का एक कोलाज है, जिसमें उन दिनों के मस्तीभरे माहौल को समेटने की कोशिश है। हालांकि खामियों के चलते यह कोलाज उतना आकर्षक नहीं बन पाया, जितने अमेजिंग कॉलेज लाइफ के अहसास होते हैं। बहरहाल, आप अपनी कॉलेज लाइफ के वो दिन याद करना चाहते हैं तो 'छिछोरे' देखने का मन बना सकते हैं।

रेटिंग: ½