चल नहीं पाएगी यह 'जबरिया जोड़ी'
- डायरेक्शन: प्रशांत सिंह
- स्टोरी-स्क्रीनप्ले: संजीव के. झा
- डायलॉग्स-एडिशनल स्क्रीनप्ले: राज शांडिल्य
- एडिशनल स्क्रीनप्ले-एडिशनल डायलॉग्स: नीरज सिंह
- म्यूजिक: तनिष्क बागची, विशाल मिश्रा, सचेत-परंपरा, रामजी गुलाटी, अशोक
- बैकग्राउंड स्कोर: जोएल क्रास्टो
- सिनेमैटोग्राफी: विशाल सिन्हा
- एडिटिंग: देव राज जाधव
- स्टार कास्ट: सिद्धार्थ मल्होत्रा, परिणीति चोपड़ा, अपारशक्ति खुराना, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा, नीरज सूद, चंदन रॉय सान्याल, शीबा चड्ढा, शरद कपूर, एली एवरम
- रनिंग टाइम: 143.30 मिनट
आपने उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रचलित 'पकड़वा विवाह' यानी जबरन शादी के चलन के बारे में तो सुना होगा। इस तरह की शादी में इलाके के दबंग या बाहुबली लोग दूल्हे का अपहरण कर बंदूक की नोक पर फेरे करवा देते हैं। इसी मुद्दे पर निर्देशक प्रशांत सिंह फिल्म 'जबरिया जोड़ी' लेकर आए हैं लेकिन अच्छा विषय खराब ट्रीटमेंट की भेंट चढ़ गया। ऐसा लगता है कि जबरिया शादी की तरह कॉन्सेप्ट के साथ भी जबरदस्ती हो गई है। लिहाजा फिल्म एंटरटेनमेंट की बजाय फ्रस्ट्रेशन देती है।
पब्लिक को दबंग पसंद है, हुड़दंग नहीं
बाहुबली अभय सिंह (सिद्धार्थ मल्होत्रा) अपने पिता दबंग हुकुम देव सिंह (जावेद जाफरी) के मार्गदर्शन में जबरिया शादी करवाता है। हुकुम सिंह के लिए यह काम समाज सेवा और पुण्य की तरह है। दरअसल, वे ऐसी लड़कियों की शादी करवाते हैं, जिनके पैरेंट्स लड़कों के दहेज के लोभी माता-पिता की मांग पूरी नहीं कर पाते, जिसकी वजह से रिश्ता नहीं हो पाता है। हालांकि जबरिया शादी करवाने की एवज में हुकुम सिंह लड़की के पिता से बयाना के रूप में अच्छी खासी रकम वसूलते हैं। इसी तरह की एक जबरिया शादी के दौरान अभय की मुलाकात बबली यादव (परिणीति चोपड़ा) से होती है। अभय का बचपन में बबली पर क्रश था लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी बनी कि दोनों की राहें जुदा हो गई। इस मुलाकात के बाद अभय व बबली बचपन की तरह अपना ज्यादातर समय साथ में बिताने लगते हैं और एक दूसरे के करीब आ जाते हैं। हालांकि अभय का फोकस प्यार से ज्यादा कुर्सी पर है। वह एमएलए का चुनाव लड़ने की तैयारी में है। बबली भी अपनी दबंगई के लिए मशहूर है। अभय से मिलने से पहले वह अपने एक्स बॉयफ्रेंड के धोखा देने पर उसकी सरेबाजार पिटाई कर चुकी है, जो कि टीवी पर टेलीकास्ट हुआ था। इस कारण लोग उसे बबली बम कहते हैं। दूसरी ओर, बबली के पिता दुनियालाल (संजय मिश्रा) अपनी इकलौती बेटी की शादी को लेकर परेशान है। कई जगह रिश्ते की बात की लेकिन मामला भारी-भरकम दहेज के कारण अटक जाता है। ऐसे में दुनियालाल अपने दोस्त की सलाह पर बबली की जबरिया शादी करानेे का मन बना लेता है। इसके लिए वह हुकुम सिंह को 20 लाख रुपए बयाना देता है और मेडिकल की पढ़ाई करने वाले एक लड़के की तस्वीर उसे देता है। इसके बाद कहानी करवट लेती है।
स्क्रिप्ट में झोल कर देता है सबकुछ गोल
जैसा कॉन्सेप्ट है, वैसी स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई है। स्क्रीनप्ले लूज है। कॉमिक सीन के चलते पहला हाफ तो मजेदार है लेकिन दूसरे हाफ में कहानी राह भटक जाती है और ट्रैक से उतरकर ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर चलने लगती है। साथ ही कन्फ्यूजिंग भी हो जाती है। यही नहीं, पेस पर भी असर पड़ता है। अंजाम तक आते-आते हांफने लगती है। प्रशांत सिंह की निर्देशन पर पकड़ कमजोर है, जिसकी वजह से वह न तो मनोरंजन परोस पाए और न ही सोशल मैसेज देने में सफल रहे। वनलाइनर्स और संवाद जरूर राहत के छींटे हैं। संगीत असरदार नहीं है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। संपादन सुस्त है, जिससे फिल्म की लंबी अवधि झुंझलाहट पैदा करती है।
किरदार में घुल नहीं पाई बिहार की आबोहवा
सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणीति चोपड़ा की कैमिस्ट्री को साल 2014 में आई फिल्म 'हंसी तो फंसी' में पसंद किया गया था लेकिन यहां उनकी कैमिस्ट्री देख लगता है कि यह जोड़ी जबरिया बनाई गई है। सिद्धार्थ और परिणीति ने बिहारी आबोहवा को अपने किरदार में महसूस कराने की कोशिश की है लेकिन असर नहीं छोड़ पाए। परिणीति ने जिस तरह का मेकअप किया है और कॉस्ट्यूम पहने हैं उससे वह ग्लैमरस तो लगीं, पर किरदार के मिजाज से दूर हो गईं। ग्रेड शेड्स में जावेद जाफरी का काम बढ़िया है। संजय मिश्रा लाजवाब हैं। उनकी परफॉर्मेंस बोरियत के बीच सुकून की बानगी है। नीरज सूद, अपारशक्ति खुराना और चंदन रॉय सान्याल का काम ठीक है। शीबा चड्ढा, शरद कपूर और अन्य सह कलाकार अपनी भूमिका अच्छे से निभा जाते हैं।
जबरिया न लगे आपका फैसला: कॉन्सेप्ट जबरदस्त है, पर बेतरतीब स्क्रिप्ट ऐसी खिचड़ी पका देती है, जिससे जायका बिगड़ जाता है और बदहजमी हो जाती है। लचर डायरेक्शन और साधारण अभिनय के कारण यह चटपटा मनोरंजन पेश नहीं कर पाती। फिल्म में संवाद है- जबरिया शादी चाइनीज माल की तरह होती है, जिसके चलने की गारंटी नहीं होती। वैसा ही हाल फिल्म 'जबरिया जोड़ी' का है। ऐसे में सोच-समझ कर फिल्म देखने का निर्णय लें। कहीं ऐसा न हो कि आपको अपने फैसले पर पछताना पड़े और खुद को जबरिया फंसा हुआ महसूस करें।
रेटिंग: ★½
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