न 'कबीर' बन पाया 'अर्जुन', न शाहिद बन पाए विजय
- राइटिंग, एडिटिंग एंड डायरेक्शन : संदीप रेड्डी वांगा
- बेस्ड ऑन : तेलुगू फिल्म अर्जुन रेड्डी
- म्यूजिक : मिथुन, अमाल मलिक, विशाल मिश्रा, सचेत-परंपरा, अखिल सचदेवा
- लिरिक्स : इरशाद कामिल, मनोज मुंताशिर, कुमार, मिथुन
- सिनेमैटोग्राफी : सांथना कृष्णन रविचन्द्रन
- एडिटिंग : आरिफ शेख
- स्टार कास्ट : शाहिद कपूर, कियारा आडवाणी, सोहम मजूमदार, अर्जन बाजवा, सुरेश ओबेरॉय, निकिता दत्ता, कामिनी कौशल, आदिल हुसैन, अमित शर्मा, कुणाल ठाकुर
- रनिंग टाइम : 174.30 मिनट
मशहूर गीतकार आनंद बक्षी का गीत है, 'सुनो सुनाऊं एक कहानी, जब आती है रुत पे जवानी,
तब बनती है प्रेम कहानी.. प्रेम कहानी में एक लड़का होता है, एक लड़की होती है..कभी दोनों हंसते हैं, कभी दोनों रोते हैं...'। अक्सर कुछ ऐसा ही भारतीय फिल्मों की प्रेम कहानियों में देखने को मिलता है। कभी-कभी कुछ फिल्मकार एक्सपेरिमेंट करते हुए प्यार, इश्क और मोहब्बत की इन कहानियों को अलग रंग देने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही प्रयास दक्षिण भारतीय फिल्म निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने 2017 में आई तेलुगू फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' में किया था। फिल्म में विजय देवरकोंडा और शालिनी पांडे ने लीड रोल अदा किए थे। अब इसी फिल्म को संदीप ने हिंदी में शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी के साथ 'कबीर सिंह' टाइटल से बनाया है। फिल्म का नायक गुस्सैल और आक्रामक स्वभाव का है। वह कब किस से मारपीट शुरू कर दे कह नहीं सकते। जबकि नायिका उसके एकदम विपरीत शांत, मासूम और सादगी की मूरत है। यहां तक कि वह जल्दी से ऊंची आवाज में भी नहीं बोलती। खैर, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि विपरीत मिजाज के लोगों में प्यार होना गलत नहीं है। आपत्ति तो इस बात पर है कि फिल्म में प्यार शुरुआत में थोपा हुआ सा लगता है।
क्यों देखें : 'कबीर सिंह' एक अलहदा किस्म की प्रेम कहानी है, लेकिन कमियां भी बहुतेरी हैं। ऐसे में अगर आपने 'अर्जुन रेड्डी' नहीं देखी है तो 'कबीर सिंह' देखने का मानस बना सकते हैं। आपको थोड़ा मजा आएगा, तो थोड़ा मजा किरकिरा होता भी महसूस होगा।
रेटिंग: ★★½
तब बनती है प्रेम कहानी.. प्रेम कहानी में एक लड़का होता है, एक लड़की होती है..कभी दोनों हंसते हैं, कभी दोनों रोते हैं...'। अक्सर कुछ ऐसा ही भारतीय फिल्मों की प्रेम कहानियों में देखने को मिलता है। कभी-कभी कुछ फिल्मकार एक्सपेरिमेंट करते हुए प्यार, इश्क और मोहब्बत की इन कहानियों को अलग रंग देने की कोशिश करते हैं। ऐसा ही प्रयास दक्षिण भारतीय फिल्म निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने 2017 में आई तेलुगू फिल्म 'अर्जुन रेड्डी' में किया था। फिल्म में विजय देवरकोंडा और शालिनी पांडे ने लीड रोल अदा किए थे। अब इसी फिल्म को संदीप ने हिंदी में शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी के साथ 'कबीर सिंह' टाइटल से बनाया है। फिल्म का नायक गुस्सैल और आक्रामक स्वभाव का है। वह कब किस से मारपीट शुरू कर दे कह नहीं सकते। जबकि नायिका उसके एकदम विपरीत शांत, मासूम और सादगी की मूरत है। यहां तक कि वह जल्दी से ऊंची आवाज में भी नहीं बोलती। खैर, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि विपरीत मिजाज के लोगों में प्यार होना गलत नहीं है। आपत्ति तो इस बात पर है कि फिल्म में प्यार शुरुआत में थोपा हुआ सा लगता है।
प्यार, फ्यार और जुदाई का दर्द
दरअसल, कहानी में कबीर राजधीर सिंह (शाहिद कपूर) दिल्ली के मेडिकल कॉलेज का स्टूडेंट है। वह पढ़ाई में अव्वल है तो खेल और अन्य गतिविधियों में भी कॉलेज की शान है। बस, उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है गुस्सा, जिस पर उसका कोई कंट्रोल नहीं है। चूंकि कबीर सीनियर है तो कॉलेज के सभी स्टूडेंट्स में उसका रौब है। एक फुटबॉल मैच के दौरान विपक्षी टीम के खिलाड़ी के उकसाने पर वह अपना आपा खो देता है और उसकी जमकर पिटाई करता है। यह बात कॉलेज डीन तक पहुंचती है तो कॉलेज डीन उसे अपने एंगर पर कंट्रोल करने की सलाह देते हैं। साथ ही दो विकल्प देते हैं कि या तो वह कॉलेज छोड़कर चला जाए या फिर माफीनामा लिखकर दे और एक महीने तक कॉलेज से सस्पेंड रहे। वह कॉलेज छोड़कर जाने का मन बना लेता है, तभी उसकी नजर फर्स्ट ईयर की छात्रा प्रीति सिक्का (कियारा आडवाणी) पर पड़ती है। उसकी मासूमियत और सादगी पर वह फिदा हो जाता है। उससे पहली नजर वाला प्यार हो जाता है। वह कॉलेज में अनाउंस कर देता है कि 'वह मेरी बंदी है' और कोई भी उसकी ओर न देखे। फिर वह उसे टॉपिक समझाने और रैगिंग से बचाने के बहाने प्यार का पाठ पढ़ाने लगता है। कबीर, प्रीति से पागलपन की हद तक इश्क करने लगता है। प्रीति को कोई भी तकलीफ नहीं पहुंचाए, इसलिए कबीर उसे बॉयज हॉस्टल में अपने रूम में ले आता है। समय बीतने के साथ दोनों का प्यार फ्यार की चादर ओढ़े परवान चढ़ने लगता है। फिर कबीर मास्टर्स करने मसूरी चला जाता है, लेकिन दोनों का साथ समय बिताने का सिलसिला जारी रहता है। कबीर की एमएस पूरी हो जाती है तो प्रीति की भी एमबीबीएस कम्प्लीट हो जाती है। कबीर अपने भाई की शादी में शामिल होने के लिए प्रीति को लेने आता है। दोनों प्रीति के घर की छत पर प्राइवेट स्पेस में क्वालिटी टाइम स्पेंड कर रहे होते हैं, तभी प्रीति के पिता वहां आते हैं और दोनों को किस करते हुए देख लेते हैं। यहीं से कहानी में नया मोड़ आता है और उसके बाद उनकी प्रेम कहानी किस उतार-चढ़ाव से गुजरती है। इसे देखने के लिए सिनेमाघरों का रुख करना होगा।लड़की नहीं जैसे मिल्कियत हो
कहानी तो दिलकश और रोचक है, लेकिन इसमें नायिका और अन्य कई फीमेल कैरेक्टर्स को जिस तरह से प्रस्तुत किया है, उससे पुरुष प्रधानता हावी दिखती है। मसलन, कबीर फिल्म में प्रीति के लिए कई दफा यह कहता है, 'मेरी बंदी है।' इससे यह लगता है कि प्रीति कोई लड़की नहीं बल्कि कबीर की मिल्कियत हो। प्रीति की इजाजत के बिना उसे चूम लेना, यहां तक कि थप्पड़ भी मार देना इसी ओर इशारा करते हैं। इसी तरह, रैगिंग के बहाने सीनियर गर्ल स्टूडेंट्स जूनियर लड़कियों को अपने शरीर के सारे कपड़े उतारने के लिए कहती हैं, वह भी अखरता है। यही नहीं, अपने प्यार से बिछड़ जाने पर कबीर जब टूट जाता है और शराब व ड्रग्स के नशे में खुद को डुबो लेता है तो लड़कियां उसके लिए सिर्फ फिजिकल नीड पूरा करने का साधन मात्र बन जाती हैं। कई दृश्य ऐसे हैं, जिसमें वह सेक्स करने को आतुर यानी भूखा भेड़िया दिखता है। फिल्म में एक कैरेक्टर एक्ट्रेस जिया शर्मा भी है, जिससे भी कबीर इसीलिए मेलजोल बढ़ाता है, ताकि वह उसके साथ हमबिस्तर होकर अपनी कामुकता को शांत कर सके। यानी फिल्म में कहीं न कहीं फीमेल कैरेक्टर्स को वस्तु की तरह प्रस्तुत किया है।ओरिजिनल जैसी नहीं होती जेरॉक्स कॉपी
'कबीर सिंह', 'अर्जुन रेड्डी' की फ्रेम दर फ्रेम कॉपी है। यहां तक कि संवाद भी। यूं कह सकते हैं कि 'कबीर सिंह', 'अर्जुन रेड्डी' की वो प्रतिलिपि है, जिसके अक्षरों की स्याही थोड़ी बदल गई है, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि यह जेरॉक्स कॉपी ज्यादा स्पष्ट है। दरअसल, 'अर्जुन रेड्डी', 'कबीर सिंह' से बेहतर है। 'अर्जुन रेड्डी' में विजय देवरकोंडा ने जिस अग्रेशन से टाइटल कैरेक्टर निभाया था, 'कबीर सिंह' में शाहिद कपूर उससे मैच नहीं कर पाते। ऐसा नहीं है कि शाहिद ने मेहनत नहीं की। उन्होंने इस इंटेंस रोल में कैरेक्टर के एंगर और अग्रेशन को पकड़ने का पूरा प्रयास किया है। यहां तक कि एल्कोहॉल और ड्रग्स के आदी हो चुके सर्जन के रूप में भी वह जंचे हैं। उनका बीयर्ड लुक भी आकर्षक है। फिर भी वह विजय से उन्नीस ही हैं। कियारा आडवाणी का रोल ज्यादा बड़ा नहीं है, लेकिन वह अपनी खूबसूरती और मासूमियत से लुभाती हैं। इसके बावजूद उनमें भी 'अर्जुन रेड्डी' की शालिनी जैसा चार्म नहीं दिखता। कबीर के दोस्त शिवा के रोल में सोहम मजूमदार ध्यान बटोरने में कामयाब रहे हैं। अर्जन बाजवा, निकिता दत्ता, कामिनी कौशल और सुरेश ओबेरॉय अपनी भूमिका में अच्छा परफॉर्म कर गए हैं। अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम भी ठीक है। संदीप वांगा का डायरेक्शन सही है, परफेक्ट नहीं। उन्हें फिल्म की अवधि पर भी ध्यान देने की जरूरत थी। कुछ सीन में आसानी से काट-छांट कर अवधि 30 से 40 मिनट तक कम की जा सकती थी। म्यूजिक और लिरिक्स फिल्म का प्लस पॉइंट हैं। गाने इतने माधुर्य के साथ रचे गए हैं कि दिल को टच करते हैं। 'बेखयाली में...', 'कैसे हुआ...' सॉन्ग वाकई में खूबसूरत हैं। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है।क्यों देखें : 'कबीर सिंह' एक अलहदा किस्म की प्रेम कहानी है, लेकिन कमियां भी बहुतेरी हैं। ऐसे में अगर आपने 'अर्जुन रेड्डी' नहीं देखी है तो 'कबीर सिंह' देखने का मानस बना सकते हैं। आपको थोड़ा मजा आएगा, तो थोड़ा मजा किरकिरा होता भी महसूस होगा।
रेटिंग: ★★½
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