द्वापर नाद : आरंभ है तो अंत है, और अंत ही आरंभ है...
आसमान में चमकते सितारे और निशा का दामन थामे आहिस्ता-आहिस्ता अपने कदम आगे बढ़ाती सर्दी... इसी ठंडी फिजा में म्यूजिकल कॉन्सर्ट 'द्वापर नाद' (Dwapar Naad) का शंखनाद होता है। 'द्वापर नाद' गीत-संगीत का लिबास पहने कृष्ण और महाभारत से जुड़े प्रसंगों का अनूठा मिश्रण है। इसमें अलग-अलग स्टाइल के गीत हैं, जिनमें अलग-अलग प्रसंग और कहानियां छिपी हैं। गीत 'तूणीर कृष्ण शर भूमि है.. वो विजय-पराजय दोनों है, दोनों का अंतर वो ही है.. वो रथ भी है, वो रथ पर भी है, और वो ही रथ के चालक हैं... वो कौरव भी, वो पांडव भी, वो स्वयं सकल महाभारत है...' से यूनीक म्यूजिकल एक्सपीरियंस की शुरुआत होती है। कृष्ण की महिमा का बखान करती गीत-संगीत की लहरें दर्शकों-श्रोताओं में पलक झपकते ही जोश का संचार कर देती हैं। सुरों का यह कारवां जैसे ही अगले पड़ाव पर पहुंचता है। जिक्र होता है कृष्ण के दोस्त सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन का। पत्नी द्रौपदी और चित्रांगदा को अर्जुन से शिकायत है। शिकायत इसलिए है, क्योंकि अर्जुन दोनों से लौटकर आने का वादा करते हैं, मगर आते नहीं। ऐसे में द्रौपदी और चित्रांगदा अपने-अपने अंदाज में कुछ इस तरह शिकवा करती हैं- 'तेरी सजन अनोखे ढंग से नजर मैं उतार लूं, बन के बाती जल विरह में उम्र ये गुजार दूं... फिर से मिलन तो इस जन्म में होता न लागे..'।
अर्जुन से तो सिर्फ उनकी चार पत्नियों को ही शिकायत थी, लेकिन उनके सखा कृष्ण से तो किस-किस को शिकायत थी, गिनती करना मुश्किल है। कृष्ण की नायिकाओं (गोपियों) की शिकायत 'खुद ही खुद को श्याम बुलाऊं, खुद ही रूठूं, खुद ही मनाऊं, खुद मिलने का वादा करके श्याम की तरह खुद न आऊं... श्याम तुमको गए एक जमाना हुआ, लौटकर आज तक पर न आना हुआ, सबको देते जो महरम हमें भी तो दो, जख्म दुखता है बेशक पुराना हुआ...' को शो की सूत्रधार और गायिका लतिका जैन ने कव्वाली स्टाइल में पेश किया।
ये तो हो गई प्यार-मोहब्बत और शिकायत की बात, मगर महाभारत में सब कुछ इतना प्यार-मोहब्बत भरा था नहीं। कुछ ऐसा हुआ, जिसके बाद लगा कि अधर्म इतना बढ़ गया है कि धर्म की स्थापना के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वह दिन था, जब द्रौपदी को सभा में बुलाकर सबके सामने अपमानित करने की कोशिश की गई। कॉन्सर्ट में हरियाणवी रागिनी में 'बादल उठ्या, हे री सखी बादल उठ्या.. कैसे मैं कहूं वा मिलन की पहली-पहली रात थी, ऊंचे से चौबारे पे साजन से मुलाकात थी, सावन का महीना था और...' को प्रजेंट किया गया। इस गीत की शुरुआत में उस समय के जज्बात हैं, जब द्रौपदी शायद पहली बार अर्जुन से मिली होंगी, उनके साथ प्यार के दो-चार पल बिताए होंगे। समय का कांटा बदलता है और पहुंच जाता है हस्तिनापुर। महल में चौसर का खेल चल रहा है। द्रौपदी अपने कक्ष में बैठी हुई है। उसको अंदेशा है कि कुछ गलत होने वाला है। गाने को पेश करने का अंदाज खुद-ब-खुद दर्शकों के जेहन में इन प्रसंगों की तस्वीरें उकेरता चला गया।
अतुल सत्य कौशिक के डिजाइन किए इस कॉन्सर्ट की गीतमाला में अब बारी आती है युद्ध में कर्ण-अर्जुन के टकराव की। 'कृष्ण का अगर सहारा न होता, कर्ण अर्जुन से हारा न होता, जन्म लेते ही मां ने बहाया, कुंती को क्यों तरस भी न आया, छूटा अगर वो किनारा न होता, कर्ण अर्जुन से हारा न होता... गुरु बनाए परशुराम थे, क्रोधित उसका वंश जान के... क्रोधित परशुराम ने कहा- कठिन समय पर मेरी शिक्षा भूल कर्ण जाएगा, श्राप ये मेरा बाण-सा बन के काट तुझे खाएगा... श्राप का बाण मारा न होता, कर्ण अर्जुन से हारा न होता...' गीत में कर्ण की अर्जुन से हार की वजह और उसकी मजबूरी को पिरोया गया।
युद्ध तो कदाचित कोई नहीं चाहता। क्योंकि, युद्ध और महासमर तो हो जाते हैं। लेकिन, इनमें जो सैनिक लड़ते हैं, मरते हैं। उनके पीछे घर-गांव में उनका परिवार रह जाता है। युद्ध में वीर गए हुए हैं और घर की औरतें कामकाज कर रही हैं। इस कल्पना को 'जब वीर समर में जाते हैं तो क्या ही संग ले जाते हैं, कुछ अस्त्र-शस्त्र वो धातु के जो टूट ही जाते हैं आखिर, कुछ कवच पशु की चमड़ी के जो फूट ही जाते हैं आखिर... बस घरवालों के छोटे-छोटे सपने साथ में जाते हैं, जो अक्सर समर और घर के बीच कहीं खो जाते हैं...' गीत में पेश किया गया।
महाभारत के प्रसंगों पर आधारित इस कॉन्सर्ट का समापन द्वापर के मैसेज यानी उस फलसफे के साथ होता है, जो कृष्ण ने खुद अपने गीत अर्थात् भागवत गीता में कहा है।
था जो विशाद पार्थ का
है वो ही प्रश्न आज का
जो भागवत का गीत था
वो मंत्र आत्म-जीत का
सत्य मोक्ष है यदि
तो कर्म उसका स्तंभ है
आरंभ है तो अंत है
और अंत ही आरंभ है...
करीब डेढ़ घंटे के इस कॉन्सर्ट में अतुल सत्य कौशिक लिखित गीतों को आमोद भट्ट ने संगीत से सजाया। वोकल पर लतिका जैन का साथ हीना जोहरा, मौली बानिक, शुभाश्री भट्ट और अजय जयराम ने दिया। बांसुरी पर राजीव प्रसन्ना, गिटार पर आतनु गौतम, कीबोर्ड पर अरविंद सरोले, ऑक्टोपैड पर हर्षवर्धन नासेरी और पर्कशन रिदम पर पिता-पुत्र की जोड़ी सुरेंद्र बेलबंसिया और यश ने संगत की। कॉन्सर्ट के प्रोडक्शन मैनेजर सुमित नेगी और साउंड इंजीनियर निखिल थे। लाइट डिजाइन एंड ऑपरेशन का जिम्मा अजहर खान और कॉस्ट्यूम एंड प्रॉपर्टी का सोनम ने संभाला। यह मनमोहक शाम संगीत की सीमाओं से परे थी, जिसमें कव्वाली, ठुमरी, रागिनी, भक्ति और दार्शनिक प्रस्तुतीकरण सहित विविध गायन शैलियों का मिश्रण था। यह इस म्यूजिकल प्रोजेक्ट का दूसरा ही शो था। इससे एक दिन पहले यानी 10 दिसंबर 2023 को मंडी हाउस (दिल्ली) में कमानी ऑडिटोरियम में इसका प्रीमियर हुआ था।
फेस्टिवल : जयपुर रंग महोत्सव (जयरंगम)-2023
वेन्यू : मध्यवर्ती (जवाहर कला केंद्र, जयपुर)
टाइम-डेट : शाम 7 बजे, 11 दिसंबर 2023
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