'सम्राट' बनने में चूके अक्षय, 'पृथ्वीराज' को ढूंढते ही रह गए दर्शक 


  • स्क्रीनप्ले, डायलॉग्स एंड डायरेक्शन: डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी
  • म्यूजिक: शंकर-एहसान-लॉय
  • सिनेमैटोग्राफी: मानुष नंदन
  • एडिटिंग: आरिफ शेख
  • बैकग्राउंड स्कोर: संचित-अंकित बलहारा
  • लिरिक्स: वरुण ग्रोवर
  • स्टार कास्ट: अक्षय कुमार, मानुषी छिल्लर, संजय दत्त, सोनू सूद, मानव विज, आशुतोष राणा, साक्षी तंवर, मनोज जोशी, राजेन्द्र गुप्ता
  • रन टाइम: 135.39 मिनट
कवि चंद बरदाई की रचना 'पृथ्वीराज रासो' पर आधारित फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' के जरिए लेखक-निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने परदे पर पृथ्वीराज चौहान के शौर्य और संघर्ष को दिखाने की कोशिश की है। यही नहीं, राजकुमारी संयोगिता के साथ उनके प्रेम-विवाह को भी पिरोया है। फिल्म में टाइटल रोल में अक्षय कुमार हैं, लेकिन फिल्म देखते समय एक भी क्षण ऐसा नहीं आता, जब वह पृथ्वीराज जैसे लगे हों। इतिहास के पन्नों से निकली इस कहानी के निष्पादन में ऐसी तमाम चूक रह गई हैं, जिससे यह उतनी असरदार नहीं बन पाई, जिसकी वास्तव में हकदार है। वॉर सीक्वेंस में भी ऐसा कुछ नहीं है, जो 'सम्राट पृथ्वीराज' को इस जॉनर की आईं दूसरी फिल्मों से अलहदा बनाए। खैर, इक्के-दुक्के दृश्य जरूर उत्साह जगाते हैं। उनमें भी दर्शक हकीकत और फसाना के बीच में झूलते रहते हैं।
पृथ्वीराज चौहान के बारे में हमने इतिहास की किताबों में पढ़ा है और उनके बारे में मोटी-मोटी जानकारियां हमें मालूम हैं। यह फिल्म भी उतना ही दिखाती है। ऐसा कुछ अलग नहीं दर्शाती, जो हमें पता नहीं हो। बहरहाल, फिल्म की कहानी में अजमेर के राजा पृथ्वीराज (अक्षय कुमार) से खफा होकर गजनी का सुल्तान मोहम्मद गौरी (मानव विज) आक्रमण कर देता है। पृथ्वीराज और गौरी की सेना के बीच तराइन की रणभूमि में युद्ध होता है, जिसमें गौरी की शिकस्त होती है। उसे बंदी बना लिया जाता है। हालांकि बाद में पृथ्वीराज रहम खाते हुए उसे रिहा कर देते हैं। उधर, कन्नौज के राजा जयचंद (आशुतोष राणा) की बेटी संयोगिता (मानुषी छिल्लर), पृथ्वीराज पर मोहित है और उन्हें प्रेम करती है। जबकि जयचंद दिल्ली की गद्दी चाहता है, जिस पर अब पृथ्वीराज आसीन हैं...।  
स्क्रीनप्ले बुनते समय कसावट का खयाल नहीं रखा गया, जिससे यह बेतरतीब-सा महसूस होता है। कहने को तो डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने फिल्म के लिए काफी रिसर्च की है, लेकिन जब फिल्म देखते हैं तो निराशा हाथ लगती है। उनके निर्देशन में भी उतना 'स्पार्क' नजर नहीं आता, जबकि फिल्म से उनका नाम जुड़ा होने से एक भरोसा था। पृथ्वीराज की चंद वरदाई से 'दोस्ती वाली जोड़ी', संयोगिता से प्रेम प्रसंग, मोहम्मद गौरी से युद्ध और जयचंद की गद्दारी जैसे प्रसंगों को फिल्म में रखा गया है। कहानी हड़बड़ी में बताने की कोशिश की गई है, जिससे कई पहलू अनसुलझे और अधूरे-से लगते हैं। शुरुआती और अंत के दृश्य के अलावा इंटरमिशन पॉइंट अच्छा है। ऐतिहासिक मूवी के लिहाज से जितने दमदार संवादों की जरूरत थी, उस स्तर के आसपास भी नहीं हैं। बैकग्राउंड स्कोर ठीक है, मगर शंकर-एहसान-लॉय का संगीत 'बेजान' सा फील होता है। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। जितनी चर्चा फिल्म के बजट को लेकर थी, उतनी भव्यता इसमें दिखाई नहीं देती। 
अक्षय कुमार 'सम्राट' के किरदार के साथ न्याय करने में विफल रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वह इस कैरेक्टर के लिए मिसकास्ट हैं। मिस वर्ल्ड रहीं मानुषी छिल्लर अपनी डेब्यू फिल्म में 'फेडेड फोटोग्राफ' जैसी लगी हैं। राजकुमारी के कैरेक्टर में वह उतना आत्मविश्वास नहीं दिखा पाईं, जितनी किरदार की डिमांड थी। अक्षय और मानुषी की कैमिस्ट्री भी नदी के दो किनारों जैसी है। अधपके चरित्र में अपने चुटीले संवादों के साथ संजय दत्त इम्प्रेसिव हैं। सोनू सूद डीसेंट हैं। गौरी की धूर्तता को पूर्णता देने में मानव विज 'सुस्त' हैं। आशुतोष राणा भरोसेमंद हैं। साक्षी तंवर ठीक हैं, वहीं कैमियो में मनोज जोशी प्रभावित करते हैं। लेकिन, इन तीनों ही कलाकारों को उचित स्क्रीन स्पेस नहीं मिलना अखरता है। पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित इस ऐतिहासिक फिल्म को एक रोचक पटकथा की जरूरत थी, जो उनकी वीरता का जश्न मनाए, लेकिन इस कहानी को सपाट अंदाज में प्रस्तुत किया गया है। यही वजह है कि पृथ्वीराज की शौर्य गाथा दर्शकों से कनेक्ट नहीं हो पाती।

रेटिंग: **