दसवीं... मनोरंजन की परीक्षा में फेल


  • डायरेक्शन: तुषार जलोटा
  • स्टोरी: राम वाजपेयी
  • राइटिंग: रितेश शाह, सुरेश नायर, संदीप लेजेल
  • स्क्रिप्ट एंड डायलॉग कंसल्टेंट: डॉ. कुमार विश्वास
  • म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: सचिन-जिगर
  • एडिटिंग: ए. श्रीकर प्रसाद
  • सिनेमैटोग्राफी: कबीर तेजपाल
  • लिरिक्स: अमिताभ भट्टाचार्य, आशीष पंडित
  • स्टार कास्ट: अभिषेक बच्चन, यामी गौतम धर, निम्रत कौर, मनु ऋषि चड्ढा, चितरंजन त्रिपाठी, धनवीर सिंह, अरुण कुशवाहा, दानिश हुसैन, रोहित तिवारी, श्रीकांत वर्मा, शिवंकित सिंह परिहार, सचिन श्रॉफ, सुमित शेखर राय, अदिति वत्स, सार्थक गंभीर, अभिमन्यु यादव 
  • रन टाइम: 125.21 मिनट

फिल्म 'दसवीं' का स्टोरी आइडिया दिलचस्प है पर कमजोर राइटिंग से इसका बेड़ा गर्क हो गया है। यह एजुकेशन की इम्पॉर्टेंस की बात करती है लेकिन बेतरतीब और बिना तर्क की लिखावट के कारण यह मनोरंजन की परीक्षा में फेल हो गई। फिल्म अशिक्षा, भ्रष्टाचार, सत्ता, ऑनर किलिंग, जेल के अंदर के हालात जैसे मुद्दों को छूती है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, इसके निष्पादन की कमियां सामने आने लगती हैं। किरदारों के चरित्र में तेजी से आने वाला बदलाव भी अखरता है। फिल्म अपने उद्देश्य के बारे में उलझन में है। यह न तो हंसाती है और न ही सोचने को विवश करती है।

कुर्सी का 'खेल'

हरित प्रदेश के मुख्यमंत्री गंगा राम चौधरी (अभिषेक बच्चन) को शिक्षक भर्ती घोटाले में छानबीन पूरी होने तक न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है। गंगा राम पर घूसखोरी, आपराधिक साजिश, पावर का मिसयूज और धोखाधड़ी के आरोप हैं। आठवीं तक पढ़े गंगा का जेल में पाला स्ट्रिक्ट सुपरिटेंडेंट ज्योति देसवाल (यामी गौतम) से पड़ता है। खास बात यह है कि ज्योति का ट्रांसफर गंगा ने खुद मुख्यमंत्री रहते हुए सेंट्रल जेल में किया था क्योंकि वह उसकी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर लगाम कस रही थी। जेल में गंगा बार-बार ज्योति को अपनी कुर्सी की धौंस देता है, ऐसे में ज्योति उसे कुर्सी बनाने के काम पर लगा देती है। वह काम से बचने की तरकीबें ढूंढने की कोशिश करता है लेकिन ज्योति के सख्त रवैये के कारण वह कामयाब नहीं हो पाता। फिर उसे एक धांसू आइडिया आता है और वह जेल से दसवीं की परीक्षा देने की ठानता है। जेल की लाइब्रेरी में पढ़ाई के बहाने वह काम से बचना चाहता है। उसे परमिशन मिल जाती है। हालात ऐसे बनते हैं कि वह यह भी घोषणा कर देता है कि अगर वह दसवीं पास नहीं कर पाया तो दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेगा। इधर, गंगा की जगह सीएम की कुर्सी संभाल रही उसकी पत्नी बिमला देवी (निम्रत कौर) को धीरे-धीरे सत्ता का सुरूर चढ़ जाता है। संकोची गृहिणी से वह तिकड़मी पॉलिटिशियन के रूप में पैर जमाना शुरू कर देती है...।

अधिकांश कॉमिक पंच सपाट

पटकथा अधपकी और सपाट है। कहानी खींची हुई लगती है। तुषार जलोटा का निर्देशन कहीं भी भरोसा नहीं देता। फिल्म के कई ढीले सिरे हैं, जो भ्रमित कर देंगे। कुछ सीक्वेंस मजबूर महसूस करते हैं। अच्छे हास्य की गुंजाइश थी पर कॉमिक पंच बेअसर हैं। संवाद इम्प्रेसिव नहीं हैं। गीत-संगीत निराश करता है। संपादन सुस्त है। सिनेमैटोग्राफी कहानी के अनुरूप है।

निम्रत की परफॉर्मेंस कतई जहर

अभिषेक बच्चन ने किरदार के हिसाब से ठीक काम किया है। हरियाणवी लहजे और स्टाइल को पकड़ने की कोशिश सराहनीय है। निम्रत कौर की परफॉर्मेंस बिना किसी शक के अच्छे मार्क्स की हकदार है। जब वह सीएम पद की शपथ लेती हैं, वो सीन काफी मजेदार है। हालांकि अभिषेक और निम्रत की ऑनस्क्रीन कैमिस्ट्री सतही लगती है। यामी गौतम बढ़िया लगी हैं लेकिन उनके चरित्र को सलीके से लिखा नहीं गया है। चापलूस पुलिसकर्मी के रोल में मनु ऋषि चड्ढा याद रह जाते हैं। उनकी हरकतें थोड़ा बहुत गुदगुदाती हैं। घंटी के रूप में अरुण कुशवाहा अच्छा करते हैं। चितरंजन त्रिपाठी और दानिश हुसैन का काम ठीक है। धनवीर सिंह वेस्ट हो गए हैं। अच्छे मैसेज वाली 'दसवीं' में स्ट्रॉन्ग बेस नहीं दिखा, लिहाजा यह दर्शकों को एंटरटेन करने में संघर्ष करती नजर आती है। 

रेटिंग: ★½