लेजी राइटिंग से फीका पड़ गया 'अभय' के रोमांच का जादू
- डायरेक्शन: केन घोष
- स्टोरी: सुधांशु शर्मा
- स्क्रीनप्ले: सुधांशु शर्मा, दीप्तक दास, श्रीनिवास अबरोल, शुभम शर्मा
- डायलॉग्स: अपर्णा नाडिग
- सिनेमैटोग्राफी: आदिल अफसर
- म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: अजय सिंघा
- एडिटिंग: मनन सागर
- स्टार कास्ट: कुणाल खेमू, विजय राज, राहुल देव, तनुज विरवानी, दिव्या अग्रवाल, निधि सिंह, आशा नेगी, विद्या मालवडे, एलनाज नौरोजी, ऋतुराज सिंह
- रन टाइम: 289 मिनट (8 एपिसोड)
कुणाल खेमू की वेब सीरीज 'अभय 3' में पिछले सीजन की तरह दरिंदगी, हिंसा और पुलिस ड्रामा है। हालांकि इस बार रोमांच का 'जादू' कहीं-कहीं फीका पड़ता नजर आता है। इस सीजन में भी नायक अपराधियों को उनके मकसद में कामयाब होने से रोकने में जुटा है। वह निजी जिंदगी की 'काली छाया' और उलझनों से भी जूझ रहा है। 'अभय 3' उस कसौटी पर खरी नहीं उतरती, जो उससे उम्मीद थी। सीरीज में ऐसे कई पहलू हैं, जो खींचे हुए लगते हैं।
एसटीएफ के तेजतर्रार ऑफिसर अभय प्रताप सिंह (कुणाल खेमू) के सामने अपराध की काली दुनिया की नई चुनौतियां हैं। पहला मामला हाइवे पर हो रही हत्याओं का है। दूसरे केस में, मुक्ति के नाम पर लोगों को मौत दी जा रही है। मर्डर स्पॉट पर आठ या इन्फिनिटी का निशान मिल रहा है। इतना ही नहीं, जर्नलिस्ट सोनम खन्ना की मौत के बाद अभय की जूनियर खुशबू (निधि सिंह) तफ्तीश में जुटी है और यहां शक के घेरे में अभय है।
'अभय 3' कमजोर लेखन के कारण लड़खड़ाती है। नेगेटिव किरदार दहशत तो पैदा करते हैं, पर उनके चरित्र को उभारा नहीं गया, जिससे मजबूत छाप नहीं छोड़ पाए। केन घोष का निर्देशन कहीं सधा हुआ तो कहीं लचर है। बैकग्राउंड स्कोर थ्रिल को बरकरार नहीं रखता। कुणाल खेमू की परफॉर्मेंस पिछले दोनों सीजन की तरह धीर-गंभीर जोन में है। 'मृत्यु' के रूप में विजय राज प्रभावित करते हैं, सम्मोहित नहीं। राहुल देव प्रॉपर स्क्रीन स्पेस नहीं मिलने से वेस्ट हो गए हैं। निधि सिंह इम्प्रेसिव हैं। दिव्या अग्रवाल, आशा नेगी, विद्या मालवडे और तनुज विरवानी का काम ठीक है।
रेटिंग: ★★
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