'अटैक' में लॉजिक मत तलाशिए, सिर्फ 'सुपर' एक्शन एन्जॉय कीजिए
- डायरेक्शन: लक्ष्य राज आनंद
- स्टोरी: जॉन अब्राहम
- राइटिंग: लक्ष्य राज आनंद, सुमित बथेजा, विशाल कपूर
- एडिटिंग: आरिफ शेख
- म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: शाश्वत सचदेव
- सिनेमैटोग्राफी: विल हम्फ्रीस, पी.एस. विनोद, सौमिक मुखर्जी
- लिरिक्स: कुमार
- जॉनर: एक्शन थ्रिलर
- एक्शन डायरेक्शन: फ्रांज स्पिल्हौस, अमृतपाल सिंह, अमीन खातिब
- स्टार कास्ट: जॉन अब्राहम, जैकलीन फर्नांडीस, रकुल प्रीत सिंह, प्रकाश राज, रत्ना पाठक शाह, इल्हाम एहसास, किरण कुमार, रजित कपूर
जॉन अब्राहम की साई-फाई फिल्म 'अटैक पार्ट-1' में देश के दुश्मनों को करारा जवाब देने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के सहारे तैयार सुपर-सोल्जर का कॉन्सेप्ट है। एक्शन सीक्वेंस मूवी का सबसे मजबूत पक्ष है। इंटरवल से पहले धीमी गति से 'कदम' बढ़ाती फिल्म सेकंड हाफ में धुआंधार एक्शन से मनोरंजन के ट्रैक पर दौड़ने लगती है। तर्क ढूंढने में जरा भी दिमाग दौड़ाया तो मजा मिस करोगे। यह फिल्म 'सुपर' तो नहीं है, पर रोमांच जरूर महसूस होता है।
अर्जुन शेरगिल (जॉन अब्राहम) भारतीय सेना का जांबाज अफसर है। एक मिलिट्री ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा कर लंबे समय के बाद घर लौट रहे अर्जुन की मुलाकात फ्लाइट में एयर होस्टेस आयशा से होती है। जल्द ही दोनों प्यार में पड़ जाते हैं। एक दिन एयरपोर्ट पर आतंकी हमला होता है, जिसमें आयशा की मौत हो जाती है। जबकि गोलियां लगने से अर्जुन का गर्दन से नीचे का शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है। व्हीलचेयर पर वह खुद को लाचार महसूस करता है। इसके बाद गवर्नमेंट के सुपर-सोल्जर प्रोग्राम के तहत वैज्ञानिक सबा (रकुल प्रीत सिंह), अर्जुन के शरीर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड नैनो चिप इम्प्लांट करती है। इससे वह सुपर-सोल्जर बन जाता है।
कहानी ओके है, पर पटकथा हिचकोले खाती रहती है। डेब्यू फिल्म के लिहाज से लक्ष्य राज आनंद का निर्देशन ठीक है। गीत-संगीत कमजोर है। वीएफएक्स अच्छे हैं। जॉन और उनका माइंड पढ़ने वाली एआइ पर्सनल असिस्टेंट 'इरा' की गुफ्तगू बीच-बीच में ह्यूमर क्रिएट करती है। सिनेमैटोग्राफी रिफ्रेशिंग है। बैकग्राउंड स्कोर कहीं-कहीं लाउड है।
जॉन अब्राहम एक्शन हीरो के अवतार में सहज नजर आते हैं। रकुल प्रीत सिंह साइंटिस्ट के रोल में जंचती हैं, पर उनके किरदार में गहराई नहीं है। जॉन की लव इंट्रेस्ट के तौर पर जैकलीन फर्नांडीस निराश करती हैं। प्रकाश राज अपने किरदार में फिट हैं। जॉन के साथ उनकी कैमिस्ट्री अच्छी है। मुख्य आतंकी के रूप में इल्हाम एहसास सिर्फ कामचलाऊ हैं। रजित कपूर बचकाने लगे हैं। किरण कुमार को बहुत कम स्क्रीन स्पेस मिला है। रत्ना पाठक भी सीमित ही हैं।
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