ये 'हीरोपंती' नहीं, हेडेक है 


  • डायरेक्शन: अहमद खान (Ahmed Khan)
  • स्टोरी: साजिद नडियादवाला (Sajid Nadiadwala)
  • स्क्रीनप्ले-डायलॉग्स: रजत अरोड़ा (Rajat Aroraa)
  • म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: एआर रहमान (A. R. Rahman)
  • सिनेमैटोग्राफी: कबीर लाल
  • एडिटिंग: रामेश्वर एस भगत
  • स्टार कास्ट: टाइगर श्रॉफ (Tiger Shroff), नवाजुद्दीन सिद्दीकी (Nawazuddin Siddiqui), तारा सुतारिया (Tara Sutaria), जाकिर हुसैन (Zakir Hussain), अमृता सिंह (Amrita Singh), कृति सनोन (Kriti Sanon), उदय महेश
  • रन टाइम: 142 मिनट

किसी भी फिल्म की धुरी होती है उसकी कहानी। अगर कहानी ही बेजान हो तो पूरी फिल्म संघर्ष करती नजर आती है। यही हाल है फिल्म 'हीरोपंती' (2014) के सीक्वल 'हीरोपंती 2' का। मेकर्स को समझना होगा कि यह 90 का दशक नहीं है, जो खराब स्टोरीलाइन के साथ एक्शन, गानों और डांस स्टेप्स से दर्शकों को प्रभावित कर सकते हैं। टाइगर श्रॉफ की इस फिल्म के ज्यादातर दृश्य अनपेक्षित, असहनीय और अतार्किक हैं। 'हीरोपंती 2' सिर्फ 'सिर दर्द' देती है। जबकि दर्शक परिपक्वता चाहते हैं। वह ऐसी फिल्म देखना चाहते हैं, जिससे वे खुद को कनेक्ट कर सकें लेकिन 'हीरोपंती 2' का दूर-दूर तक इससे कोई नाता ही नहीं है।

कहानी में बबलू (टाइगर श्रॉफ) एक कुख्यात हैकर है। अचानक हुई एक मुलाकात के बाद बबलू को इनाया (तारा सुतारिया) से इश्क हो जाता है, जो कि जादूगर लैला (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) की बहन है। असल में, लैला शातिर साइबर क्रिमिनल है। लैला ने एक ऐप डिजाइन किया है, जो यूजर्स का डेटा चुराता है। वहीं, सीबीआइ ऑफिसर असद खान (जाकिर हुसैन) ने बबलू को लैला के मंसूबों का पता लगाने भेजा है। लेकिन, बबलू तो लैला के गलत धंधे में उसका साथी बन जाता है। लैला भारतीय बैंकों में रखा आम आदमी का पैसा उड़ाने की फिराक में है। इधर, बबलू का जमीर तब जागता है, जब उसकी मुलाकात सा​इबर ठगी का शिकार हो चुकी एक महिला से होती है। वह उसे मां का दर्जा देता है। पूरी कहानी बबलू और लैला के इर्द-गिर्द घूमती है, बावजूद इसके यह जरा भी रोमांचित नहीं करती।

बेसिर-पैर की स्क्रिप्ट और घिसे-पिटे स्क्रीनप्ले के कारण फिल्म ​तूफान में घिरी नाव की माफिक हिचकोले खाती रहती है। निर्देशन किसी 'कटी पतंग' के जैसा है, जिसकी डोर निर्देशक के हाथ से 'छूट' गई है। गीत-संगीत भी ऐसा नहीं है, जो तनाव के माहौल में चंद पल सुकून के दे सके। हर चार सीन के बाद एक गाना आता है, जो आप चाहकर भी याद नहीं रख पाते। एडिटिंग ढीली है। सिनेमैटोग्राफी जरूर अच्छी कही जा सकती है। 

टाइगर श्रॉफ की फिजिक बहुत अच्छी है और उन्होंने स्टंट भी अच्छे किए हैं लेकिन बिना हाव-भाव के 'अभिनय' से जरा भी भरोसा नहीं देते। नवाजुद्दीन सिद्दीकी तो सचमुच बर्बाद हो गए हैं। उनकी एक्टिंग, सॉरी ओवरएक्टिंग निराश करती है। तारा सुतारिया मिसकास्ट हैं। उनकी परफॉर्मेंस समझ से परे है। अमृता सिंह जैसी समर्थ अभिनेत्री को जाया कर दिया गया है, क्योंकि मां की उनकी भूमिका लिखावट के स्तर पर बेहद कमजोर है। जाकिर हुसैन के लिए करने को कुछ नहीं है। अगर टाइगर के पक्के वाले फैन हैं और उनका डांस व एक्शन बार-बार देख कर बोर नहीं होते तो ही इसे ​देखिए। वैसे हकीकत तो यह है कि इसे बर्दाश्त करना मुश्किल ही नहीं, 'नामुमकिन' है!

रेटिंग: ★