'राधे श्याम' के प्यार में जज्बात नहीं, सब कुछ भाग्य भरोसे
- राइटिंग-डायरेक्शन: राधा कृष्ण कुमार
- म्यूजिक: मिथुन, मनन भारद्वाज, अमाल मलिक
- सिनेमैटोग्राफी: मनोज परमहंस
- एडिटिंग: कोटागिरी वेंकटेश्वर राव
- डायलॉग्स: अब्बास दलाल, हुसैन दलाल
- एक्शन डायरेक्शन: निक पॉवेल
- लिरिक्स: कुमार, मनोज मुंतशिर, मिथुन, रश्मि विराग
- प्रोडक्शन डिजाइन: आर रविंदर
- साउंड डिजाइन: रेसुल पुकुट्टी
- कोरियोग्राफी: वैभवी मर्चेंट
- जॉनर: रोमांटिक ड्रामा
- स्टार कास्ट: प्रभास, पूजा हेगड़े, भाग्यश्री, सत्यराज, सचिन खेडेकर, जगपति बाबू, मुरली शर्मा, रिद्धि कुमार, कुणाल रॉय कपूर, प्रियदर्शी, बीना, सत्यन, जयराम, साशा छेत्री
'बाहुबली' से पैन-इंडिया स्टार बने प्रभास की नई फिल्म 'राधे श्याम' एक धीमी गति से चलने वाली प्रेम गाथा है, जो आपके धैर्य की कई बार परीक्षा लेती है। कहानी साल 1976 में सेट है। कथानक में प्यार बनाम किस्मत (नियति) है। फिल्म का कैनवास बड़ा है। भारी-भरकम बजट है। विजुअली खूबसूरत है, पर कहानी कमजोर है। कहानी के नाम पर कुछ डिलीवर नहीं हुआ है। कहने को तो यह लव स्टोरी है लेकिन जज्बात की कमी है, जिससे यह आपसे कनेक्ट नहीं हो पाती। दूसरे हाफ की शुरुआत दिलचस्प होती है, लेकिन वह इसे बरकरार रखने में नाकाम रहती है।
लव नहीं, सिर्फ फ्लर्ट
विक्रमादित्य (प्रभास) मशहूर पामिस्ट है। वह हाथों की रेखाएं देखकर इंसान का भविष्य बताता है। उसकी भविष्यवाणी कभी गलत नहीं होती। वह दावा करता है कि उसके हाथों में लव लाइन यानी प्यार की लकीर नहीं है। वह फ्लर्ट तो करता है पर रिलेशनशिप से दूर भागता है। उसकी जिंदगी में डॉ. प्रेरणा (पूजा हेगड़े) की एंट्री होती है। दोनों की नजदीकियां बढ़ती है और वे साथ में वक्त बिताने लगते हैं। विक्रमादित्य, प्रेरणा को बताता है कि उसकी लंबी उम्र है। लेकिन, ट्विस्ट यह है कि प्रेरणा तो रेयर डिजीज से जूझ रही है। डॉक्टर्स का मानना है कि वह अब महज 2-3 महीने और जिंदा रहेगी।
दिल से नहीं गढ़ी कहानी
बतौर लेखक-निर्देशक राधा कृष्ण कुमार निराश करते हैं। राइटिंग पर खास ध्यान नहीं दिया गया। कहानी गढ़ते समय किरदारों को सलीके से नहीं बुना है। इन्हें ज्यादा स्पष्ट और तर्कों के साथ गढ़ा जा सकता था। स्क्रीनप्ले में खामियां हैं। निर्देशक मूवी को स्टाइलिश बनाने के चक्कर में बुनियादी पहलुओं पर गौर करना भूल गए। गीत-संगीत सोलफुल है। वीएफएक्स अच्छे हैं। यूरोप की लोकेशंस आपको परियों की कहानी की तरह लगती हैं। सिनेमैटोग्राफी एक्सीलेंट है। एडिटिंग बेहतर होनी चाहिए थी।
स्टाइल और स्वैग के साथ प्रभास हैंडसम लगे हैं। एक्टिंग भी ठीक-ठाक है। प्रभास ने खुद हिंदी में डबिंग की है। अफसोस, उनके संवाद एकदम सपाट हैं। कोई फीलिंग और इंटेंसिटी नहीं। पूजा हेगड़े स्क्रीन पर ब्यूटीफुल लगी हैं। उनकी परफॉर्मेंस फिल्म दर फिल्म बेहतर हो रही है। मगर, लीड पेयर प्रभास और पूजा की कैमिस्ट्री में 'स्पार्क' नहीं है। भाग्यश्री की मौजूदगी काफी है। जगपति बाबू की भूमिका व्यर्थ है। सचिन खेडेकर और सत्यराज को उचित स्क्रीन स्पेस नहीं मिला। अन्य सपोर्टिंग कास्ट के लिए ज्यादा स्कोप नहीं है। बहरहाल, मनोरंजन के लिहाज से फिल्म कुछ खास नहीं है। इसकी कामयाबी अब भाग्य भरोसे है।
रेटिंग: ★½
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