'अनामिका' का 'चक्रव्यूह' कर देता है च​क्करघिन्नी 



  • राइटिंग-डायरेक्शन: विक्रम भट्ट
  • डायलॉग्स: जेसिका खुराना
  • एडिशनल स्क्रीनप्ले: श्वेता बोथरा
  • एडिटिंग: कुलदीप महान, सुधीर महान
  • सिनेमैटोग्राफी: अभिषेक शेटे, लवेश अविनाश डाली
  • जॉनर: एक्शन स्पाई थ्रिलर
  • एक्शन डायरेक्शन: मोसेस फर्नांडीज, एजाज सत्तार शेख
  • कॉस्ट्यूम डिजाइन: मरियम अल उस्मान, श्रियंका शर्मा
  • स्टार कास्ट: सनी लियोनी, सोनाली सहगल, राहुल देव, समीर सोनी, शहजाद शेख, अयाज खान, गर्विल मोहन, रणधीर राय, पुनीत तेजवानी, गौरव सिंह, सुशील पाराशर, पार्थ अकेरकर, अस्मिता बक्शी, जुगल किशोर तायल, हर्षांत शर्मा, रोमिल के. शर्मा, तृशा जी. दाधीच, अभिषेक शर्मा, हिमानी वर्मा
  • रनिंग टाइम: 201.17 मिनट

अक्सर ग्लैमरस और बोल्ड किरदारों में नजर आने वाली सनी लियोनी वेब सीरीज 'अनामिका' में एक्शन अवतार यानी मार-धाड़ मोड में हैं और अपने दुश्मनों का सफाया कर बदला लेती दिखती हैं। मगर, इस सीरीज को झेलना लोहे के चने चबाने जितना ही मुश्किल काम है। इसकी घिसी-पिटी कहानी को च्युइंगम की तरह खींचा गया है। यह थ्रिलर के नाम पर 'मजाक' है। आठ एपिसोड में एक भी ऐसा दृश्य नहीं है, जो सही मायने में रोमांचित करे। सब कुछ अधूरा और अधपका-सा है। एंडिंग भी अचानक से हो जाती है, मानो चलते-चलते सीरीज अटक गई हो।

कहानी में अनामिका और डॉ. प्रशांत फरीदाबाद में लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हैं। दोनों एक ही अस्पताल में काम करते हैं। दरअसल, प्रशांत को अनामिका तीन साल पहले जख्मी हालत में मिली थी। वह उसकी जान बचाता है। अनामिका को अपने अतीत से जुड़ा कुछ याद नहीं है। वह 'तिजोरी में बंद अपनी यादों' की चाबी ढूंढने की कोशिश कर रही है, पर उसे मिल नहीं रही है। आखिरकार अनामिका जिंदगी में आगे बढ़ने और प्रशांत से शादी करने का फैसला करती है। लेकिन, तभी उन पर हमला होता है और गोली लगने से प्रशांत की मौत हो जाती है। इसके बाद अनामिका प्रशांत की मौत का बदला लेने निकल पड़ती है।  

स्क्रीनप्ले बेसिर-पैर का है, जो जरा भी दिलचस्प नहीं है। विक्रम भट्ट का निर्देशन निहायती लचर है। सीरीज की शुरुआत से उनकी पकड़ छूट गई है और यह बकवास खिचड़ी की तरह बन गई है, जिसमें 'मनोरंजन का कोई जायका' नहीं है। वीएफएक्स घटिया हैं। एडिटिंग कसी हुई नहीं है। बैकग्राउंड स्कोर बेअसर है। सनी लियोनी से अच्छी एक्टिंग की उम्मीद करना खुद को धोखा देने जैसा है। उनके चेहरे से एक्सप्रेशन गायब हैं। स्टंट भी बचकाने हैं। सोनाली सहगल की परफॉर्मेंस ठीक-ठाक है। राहुल देव ने खुद को जाया किया है। वह सीरीज में होते हुए भी नहीं होने जैसे हैं। समीर सोनी का काम भी जिक्र करने लायक नहीं है। शहजाद शेख, अयाज खान, गर्विल मोहन और रणधीर राय ने भी खानापूर्ति की है। एक लाइन में कहें तो 'अनामिका' आपकी सहनशक्ति की परीक्षा लेती है। अगर आप में इसे झेलने की हिम्मत और धैर्य दोनों हैं तो ही इसे अपना समय दें। नहीं तो 'अनामिका' के 'ऑपरेशन चक्रव्यूह' में फंस कर आप चक्करघिन्नी बन जाएंगे।

रेटिंग: ½