सारा 'चका चक', पर 'अतरंगी...' आनंद जरा सा


  • डायरेक्शन: आनंद एल. राय
  • स्टोरी-स्क्रीनप्ले-डायलॉग्स: हिमांशु शर्मा
  • म्यूजिक-बैकग्राउंड स्कोर: ए. आर. रहमान
  • जॉनर: रोमांटिक ड्रामा
  • सिनेमैटोग्राफी: पंकज कुमार
  • एडिटिंग: हेमल कोठारी
  • लिरिक्स: इरशाद कामिल
  • प्रोडक्शन डिजाइन: नितिन जिहानी चौधरी
  • स्टारकास्ट: अक्षय कुमार, धनुष, सारा अली खान, आशीष वर्मा, सीमा बिस्वास, डिम्पल हयाती, पंकज झा, अशोक बांठिया, गोपाल दत्त, विजय कुमार, मन्नत मिश्रा
  • रन टाइम: 137 मिनट

फिल्म 'अतरंगी रे' में एक अनूठी प्रेम कहानी को सुरीले अंदाज में पिरोने की कोशिश की गई है। इसके साथ ही फिल्म मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दे को भी टच करती है। पहला हाफ दिलचस्प है और स्क्रीनप्ले फास्ट पेस से आगे बढ़ता है। दूसरे हाफ में यह हिचकोले खाने लगता है, जिसे गीत-संगीत थोड़ा ठहराव देता है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि ए. आर. रहमान का म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर इस फिल्म की लाइफलाइन है। फिल्म में कई दृश्य तर्क से परे हैं। फिल्म दिल के दरवाजे पर दस्तक तो देती है लेकिन उसे गहराइयों तक छूने में चूक गई।

रिंकू का पागलपन...

कहानी की शुरुआती पृष्ठभूमि में बिहार है। रिंकू सूर्यवंशी (सारा अली खान) सात साल में 21 बार घर से भागने की नाकाम कोशिश कर चुकी है। अपनी इस हरकत के लिए रिंकू अपनी नानी (सीमा बिस्वास) और परिवार के अन्य सदस्यों से पिटाई तक खाती रही है। दरअसल, वह सज्जाद अली खान (अक्षय कुमार) के प्यार में पागल है। उसका यह आशिक जादूगर है और जादू की तरह एक मिस्ट्री है। रिंकू के इस रवैये से तंग आ चुकी नानी के आदेश पर उसके मामा मेडिकल छात्र विशु (धनुष) को अगवा कर लेते हैं, जो कि एक कैंप के लिए दिल्ली से सीवान आया है। मूलत: चेन्नई के विशु से बिहार की रिंकू की जबरन शादी कर दी जाती है। दूसरी ओर, विशु की कुछ दिन बाद ही अपनी प्रेमिका मैंडी उर्फ मंदाकिनी (डिम्पल हयाती) से सगाई होनी है। बस, इसके बाद कहानी कई ट्विस्ट के साथ सफर करती हुई अंजाम तक पहुंचती है।

धनुष हर फ्रेम के 'हीरो'

सारा अली खान 'चका चक' लगी हैं पर भावुक दृश्यों में उन्हें अभी खुद को पॉलिश करना बाकी है। धनुष इंटेंस एक्सप्रेशंस से बाजी मार ले जाते हैं। वे अपनी परफॉर्मेंस से हर एक फ्रेम के 'हीरो' हैं। अक्षय कुमार ओके हैं पर 'गर्दा उड़ा दिए' जैसा कुछ किया नहीं है। धनुष के 'साइडकिक' यानी दोस्त की भूमिका में आशीष वर्मा ठीक लगे हैं। सीमा बिस्वास, डिम्पल हयाती, पंकज झा और गोपाल दत्त सपोर्टिंग कास्ट में हैं मगर उनको करने को कुछ खास नहीं है। मन्नत मिश्रा (बेबी रिंकू) क्यूट है।   

भावपूर्ण संगीत यूएसपी में से एक

राइटर हिमांशु शर्मा की स्टोरी का प्लॉट अनकन्वेंशनल है। उन्होंने रोमांस, कॉमेडी और इमोशंस के मिश्रण के साथ पटकथा गढ़ी है। हालांकि कहानी में प्रमुख ट्विस्ट के बाद स्क्रीनप्ले 'जम्हाई' लेने लगता है। इसके साथ ही दर्शकों का कहानी से जुड़ाव टूटने लगता है। हालांकि जब भी फिल्म फिसलने लगती है तो आनंद एल. राय अपने सधे हुए निर्देशन से उसे फिर से ट्रैक पर ले आते हैं। इसके बावजूद वह बात नहीं बन पाती, जो शुरुआती दृश्य देखकर एक अच्छी फिल्म की उम्मीद जगी थी। यानी इंटरवल के बाद स्क्रीनप्ले का जो रायता फैलता है, उसे समेटना डायरेक्टर के बूते के बाहर हो जाता है। ए. आर. रहमान का संगीत भावपूर्ण है और फिल्म की यूएसपी में से एक है। 'चका चक' फुट टैपिंग और फिल्म सबसे अच्छा गाना है। जिस तरह माला में हर मोती की खूबसूरती और अहमियत को ध्यान में रखते हुए पिरोया जाता है, ठीक उसी प्रकार गीतकार इरशाद कामिल ने गीतों में शब्दों को सलीके से बुना है। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। प्रोडक्शन डिजाइन आकर्षक है। एडिटिंग थोड़ी ढीली है, जो और टाइट हो सकती थी। खास बात यह है कि आनंद एल राय ने एक एक्सपेरिमेंट यह किया है कि उन्होंने 'ओपनिंग' क्रेडिट्स में म्यूजिक डायरेक्टर से लेकर प्रोडक्शन डिजाइनर तक सभी साथियों को जगह दी है। कुल मिलाकर आनंद की 'अतरंगी रे' उनकी पिछली फिल्म 'जीरो' से तो बेहतर है लेकिन 'तनु वेड्स मनु' सीरीज और 'रांझणा' से कमतर है। यह फिल्म खूब सारा 'अतरंगी' आनंद नहीं देती। खैर, फिल्म ओटीटी पर है तो जब वाकई फुर्सत में हों तो ही देखने का मन बनाएं। 

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