शास्त्री की मौत का सच तलाशती 'द ताशकंद फाइल्स'


  • राइटिंग-डायरेक्शन : विवेक अग्निहोत्री
  • म्यूजिक : रोहित शर्मा
  • सिनेमैटोग्राफी : उदय सिंह मोहित
  • एडिटिंग : सत्यजीत गजमेर
  • स्टार कास्ट : मिथुन चक्रवर्ती, श्वेता बसु प्रसाद, नसीरुद्दीन शाह, पंकज त्रिपाठी, पल्लवी जोशी, मंदिरा बेदी, विनय पाठक, राजेश शर्मा, प्रकाश बेलवाडी, प्रशांत गुप्ता, अंचित कौर, विश्व मोहन बडोला, अंकुर राठी
  • रनिंग टाइम : 144 मिनट
दो अक्टूबर की तारीख का जिक्र होते ही जेहन में गांधी जयंती आती है। दिमाग पर थोड़ा और जोर डालने पर याद आता है कि अरे! इस दिन तो लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती होती है, जो कि देश के दूसरे प्रधानमंत्री रहे थे। लेकिन बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें ये भी पता नहीं है कि शास्त्रीजी की जयंती कब होती है। खैर, इन्हीं लाल बहादुर शास्त्री की मौत भी अपने आप में एक सवाल है। दरअसल, 10 जनवरी 1966 को शास्त्री ने ताशकंद समझौता पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के कुछ घंटों बाद ही 11 जनवरी 1966 को शास्त्री इस दुनिया में नहीं रहे। उनकी रहस्यमय मौत हो गई। उनकी मौत की पहेली इतिहास के विवादित अध्यायों में से एक है। शास्त्री की इसी रहस्यमय मौत पर सवाल उठाते हुए निर्देशक विवेक अग्निहोत्री फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' लेकर आए हैं। क्या शास्त्री की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी या उन्हें जहर दिया गया था? आखिर सच क्या है...इसी सच की पड़ताल करने की कहानी दिखाती है पर्दे पर रिओपन हुई 'द ताशकंद फाइल्स'।

जर्नलिस्ट रागिनी और उसके सामने चुनौतियां...

​यह कहानी है पॉलिटिकल जर्नलिस्ट रागिनी फुले (श्वेता बसु प्रसाद) की। जिसने हाल ही में एक फेक न्यूज दी थी। उसके बॉस उसे पॉलिटिकल की बजाय आर्ट एंड कल्चर बीट कवर करने के लिए कहते हैं, लेकिन वह गुजारिश करके बॉस से एक और मौका मांगती है। तब उसके बॉस उसे  अल्टीमेटम देते हुए स्कूप स्टोरी लाने को कहते हैं, वर्ना उसके कॅरियर पर असर पड़ सकता है। इसी दौरान रागिनी के बर्थडे पर उसके पास एक कॉल आता है। फोन करने वाला अनजान शख्स उससे कुछ सवाल पूछता है। सवालों की उसकी गाड़ी लाल बहादुर शास्त्री के मौत के सवाल पर आकर रुक जाती है। वह रागिनी को जन्मदिन के तोहफे के रूप में एक लिफाफा भेजता है। उसमें शास्त्री की मौत से संबंधित डॉक्यूमेंट्स होते हैं। इसके बाद रागिनी, शास्त्री की मौत का राज जानने के लिए इंटरनेट पर खंगालना शुरू करती है और वह एक स्टोरी पब्लिश करती है। खबर प्रकाशित होते ही सियासी पारा में गर्मा जाता है। मीडिया सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा करना शुरू कर देती है। विपक्ष भी सरकार पर दबाव बनाने लगता है। ऐसी परिस्थिति में गृहमंत्री नटराजन (नसीरुद्दीन शाह) इस मामले पर एक कमेटी गठित करते हैं, जिसका अध्यक्ष विपक्षी पॉलिटिशियन श्याम सुंदर त्रिपाठी (मिथुन चक्रवर्ती) को बनाया जाता है। कमेटी में रिटायर्ड जज, सोशलिस्ट समेत आठ लोगों को मेंबर बनाया जाता है। चौंकाते हुए जर्नलिस्ट के तौर पर उसमें रागिनी को भी जगह दी जाती है। इसके बाद शुरू होता है शास्त्री की मौत पर तर्क-वितर्क प्रस्तुत करने का सिलसिला। इससे कहानी में कई इंटरेस्टिंग मोड़ आते हैं।

राइटिंग टेबल पर कमजोर वर्क

विवेक अग्निहोत्री फिल्म के डायरेक्टर के साथ राइटर भी हैं। कॅरियर की शुरुआत में 'चॉकलेट', 'दन दनादन गोल', 'हेट स्टोरी', 'जिद' सरीखी फिल्म बनाने वाले विवेक ने 2016 में सोशल-पॉलिटिकल ड्रामा 'बुद्धा इन ट्रैफिक जाम' से अचानक गियर बदला। अब उन्होंने एक बार फिर गंभीर मसले को फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' में उठाया है। फिल्म का विषय सच्ची घटना से प्रेरित है, लेकिन इसे क्रिएटिव बनाने के लिए विवेक ने सिनेमैटिक लिबर्टी ली है। हालांकि स्क्रीनप्ले क्रिस्प नहीं लिख पाए। इस कारण फिल्म बोझिल हो गई है, खासकर पहले हाफ में। विवेक ने कहानी को प्रजेंट करने के दौरान उसमें न्यूज स्टोरी, ऐतिहासिक पुस्तकों, दस्तावेजों के तथ्यों को स्कूप के अंदाज में प्रजेंट किया है, जो थ्रिल पैदा करते हैं। हालांकि इनकी विश्वसनीयता की गारंटी नहीं ली है।

एक्टिंग में पास, एडिटिंग में फेल

श्वेता बसु प्रसाद ने पत्रकार की भूमिका बखूबी अदा की है, भले ही कुछ दृश्यों में वह अपने ट्रैक से भटकी हों। पॉलिटिशियन के रोल में मिथुन चक्रवर्ती की परफॉर्मेंस सराहनीय है। आला दर्जे के एक्टर नसीरुद्दीन शाह ने फिल्म का हिस्सा बनकर खुद की काबिलियत को जाया किया है। पंकज त्रिपाठी का रोल छोटा ही है, पर वह फुल फॉर्म में हैं। उनमें भीड़ में भी अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने का टैलेंट है। मंदिरा बेदी की एक्टिंग ओके है, वहीं पल्लवी जोशी एक गैप के बाद पर्दे पर नजर आई हैं और ठीक काम किया है। विनय पाठक, राजेश शर्मा, प्रकाश बेलवाडी, प्रशांत गुप्ता, विश्व मोहन बडोला सहित अन्य सह कलाकारों ने अपना शत-प्रतिशत देने का प्रयास किया है। गीत-संगीत कमजोर है। फिल्म में गाना है 'सब चलता है', लेकिन वह भी नहीं चलता। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। एडिटिंग स्लॉपी है। कई जगह फिल्म की रफ्तार बेहद धीमी है, जो इरिटेट करती है।

देखें और खुद तय करें : अगर आप इतिहास व राजनीति में रुचि रखते हैं और ट्रू इवेंट्स से इंस्पायर्ड फिल्में पसंद करते हैं तो 'द ताशकंद फाइल्स' देख सकते हैं। हालांकि इसमें प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के तथ्य वास्तविकता की डोर से कितनी मजबूती से बंधे हैं, इसे पुख्ता करने के लिए आप भी रिसर्च शुरू कर दें।

 रेटिंग: