डायरेक्शन रॉ, स्टोरी रोस्ट, फिल्म फिनिश्ड


  • राइटिंग-डायरेक्शन : रॉबी ग्रेवाल
  • डायलॉग्स : रॉबी, इशराक इबा, श्रेयांश पांडे
  • म्यूजिक : अंकित तिवारी, सोहेल सेन, शब्बीर अहमद, राज आशु
  • सिनेमैटोग्राफी : तपन बसु
  • एडिटिंग : निलेश गिरधर
  • स्टार कास्ट : जॉन अब्राहम, जैकी श्रॉफ, मौनी रॉय, सिकंदर खेर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति, रघुवीर यादव, अनिल जॉर्ज, राजेश शृंगारपुरे, अलका अमीन, पूर्णेन्दु भट्टाचार्य, ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी
  • रनिंग टाइम : 144.30 मिनट
'एक था टाइगर'(2012), 'बैंग बैंग'(2014), 'बेबी'(2015), 'टाइगर जिंदा है'(2017) और 'राजी'(2018) बॉलीवुड की वो स्पाई थ्रिलर हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है। अब निर्देशक रॉबी ग्रेवाल भी स्पाइ थ्रिलर 'रोमियो अकबर वाल्टर' लेकर आए हैं, जिसमें जॉन अब्राहम अंडरकवर एजेंट बने हैं। गत वर्ष आई उनकी देशभक्ति से जुड़ी फिल्में 'परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण' और 'सत्यमेव जयते' ने अच्छा बिजनेस किया था। लेकिन 'रोमियो अकबर वाल्टर' का बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाना मुश्किल लगता है, क्योंकि रोमांच का अभाव है। फिल्म का सब्जेक्ट तो अच्छा है, लेकिन उसका एग्जीक्यूशन बेहद सतही है। स्क्रीनप्ले और डायरेक्शन एकदम लचर है, जो सारा मजा किरकिरा कर देता है।

जासूसी के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानी

यह कहानी वर्ष 1971 है। रोमियो अली (जॉन अब्राहम) इंडियन नेशनल बैंक में जॉब करता है। उसी के साथ बैंक में पारूल (मौनी रॉय) भी काम करती है। रोमियो अपनी मां वहीदा (अलका अमीन) के साथ रहता है, जो अपने पति के शहीद हो जाने के बाद से बेटे को लेकर काफी संवेदनशील है। यही वजह है कि उसने अपने बेटे को पिता के नक्शेकदम पर नहीं जाने दिया। इधर, रोमियो रॉ चीफ श्रीकांत राय (जैकी श्रॉफ) की निगरानी में है। वह काफी समय से रोमियो की हर हरकत पर नजर रखे हुए हैं। एक दिन बैंक में रॉबर हमला बोल देते हैं। रोमियो बहादुरी से उनका सामना करता है। इस घटना के बाद रोमियो की श्रीकांत से मुलाकात होती है। श्रीकांत उसे रॉ के लिए काम करने को कहते हैं। रोमियो की सहमति के बाद उसे ट्रेनिंग दी जाती है और उसे अकबर मलिक की आइडेंटिटी के साथ अंडरकवर एजेंट के रूप में पाकिस्तान भेजा जाता है। रोमियो अपनी मां से यह कहकर जाता है कि उसकी तरक्की हो गई है और बैंक उसे ट्रेनिंग के लिए बाहर भेज रहा है। पाकिस्तान में वह हथियारों के सौदागर इसाक अफरीदी (अनिल जॉर्ज) का विश्वास जीत उसका खास आदमी बन जाता है। अफरीदी जनरल जोरावर (पूर्णेंदु भट्टाचार्य) का बहुत करीबी है। रोमियो उनकी बातचीत और गतिविधियों पर नजर रखते हुए रॉ को इन्फॉर्मेशन भेजता रहता है। फिर एक ऐसी इन्फॉर्मेशन मिलती है, जिसके बाद कहानी कई ​उतार-चढ़ाव के साथ आगे की दिशा तय करती है।

रोमांच हो गया फुर्र 

रॉबी ग्रेवाल ने न केवल फिल्म का निर्देशन किया है, बल्कि स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले भी लिखा है। लेकिन हर मामले में उन्होंने चलताऊ काम किया है। कहानी आशाजनक है और इस पर एक अच्छी रोमांचक थ्रिलर बन सकती थी। लेकिन बिखरे हुए और त्रुटिपूर्ण स्क्रीनप्ले ने सारा रायता फैला दिया। स्क्रीनप्ले काफी असंगत लगता है और आसानी से समझना मुश्किल है। कई दृश्य तो असमंजस में डाल देते हैं। पहला हाफ स्लो है या यूं कहें कि वह सिर्फ घुटनों के बल चलने जैसा है। निर्देशन में काफी खामियां हैं। ऐसा लगता है कि रॉबी ने जो रिसर्च किया था, उसको ताक में रखकर निर्देशन किया है। क्योंकि फिल्म के लिए किया गया रिसर्च नजर तो आता है, लेकिन उसका बखूबी प्रजेंटेशन नहीं है। रॉबी, इशराक इबा और श्रेयांश पांडे के संवाद ओके कहे जा सकते हैं। स्पाइ थ्रिलर फिल्म होने के बावजूद रोमांच का अहसास तक नहीं होता। गीत-संगीत तो छोड़ देना ही बेहतर है, क्योंकि कोई भी ऐसा गाना नहीं है, जो थोड़ा भी अच्छा बन पड़ा हो।

एक्टिंग ओके है

जॉन ने अपनी परफॉर्मेंस से फिल्म को अपने कंधों पर ढोने की पूरी कोशिश की है, लेकिन एक्शन स्टार की इमेज रखने वाले जॉन के एक्शन दृश्य नहीं होना कोढ़ में खाज जैसा है। मौनी रॉय ने यह फिल्म क्यों की, इसका जवाब तो वही बेहतर दे सकती हैं, क्योंकि फिल्म में उनके करने के लिए कुछ नहीं है। वह केवल चंद सीन में नजर आती हैं। उसमें भी उनकी अपीयरेंस असरदार नहीं है। जैकी श्रॉफ उम्दा एक्टर हैं, लेकिन रॉ चीफ का उनका किरदार बेड़ियों में जकड़ा हुआ सा लगता है। हालांकि वह अपनी अदाकारी से प्रभाव छोड़ने में सफल रहे हैं। आईएसआई ऑफिसर के रोल में सिकंदर खेर वाकई में फिट हैं, वहीं अनिल जॉर्ज ने भी तारीफ के लायक अभिनय किया है। रघुवीर यादव की भूमिका छोटी है, पर उसमें वह ठीक हैं। सुचित्रा कृष्णमूर्ति बस फिल्म की कास्टिंग में एक नाम की तरह हैं। अलका अमीन, राजेश शृंगारपुरे समेत अन्य सपोर्टिंग कास्ट का काम ठीक-ठाक है। लोकेशंस लुभावनी हैं और कैमरा वर्क अमेजिंग है। एडिटिंग स्लैक है।

कुछ और ट्राई करें : 'रोमियो अकबर वाल्टर' एक अधपकी सी फिल्म है। जिसका विषय अच्छा है, स्टारकास्ट भी ठीक है, लेकिन प्रजेंटेशन एकदम कमजोर है। ऐसे में इस हफ्ते मनोरंजन के लिए कुछ और ट्राई करें तो बेहतर रहेगा। वरना आप सिनेमाहॉल में खुद को पका हुआ महसूस करेंगे।

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