सेल्फी के दौर में ब्लर 'फोटोग्राफ'
- राइटिंग-डायरेक्शन : रितेश बत्रा
- म्यूजिक : पीटर रायबर्न
- सिनेमैटोग्राफी : टिमोथी गिलिस, बेन कुचिंस
- एडिटिंग : जॉन एफ. लायंस
- स्टार कास्ट : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सान्या मल्होत्रा, फर्रुख जफर, गीतांजलि कुलकर्णी, विजय राज, सचिन खेड़ेकर, जिम सरभ, आकाश सिन्हा, बृंदा त्रिवेदी, वीरेन्द्र सक्सेना, सहर्ष कुमार शुक्ला
- रनिंग टाइम : 111.10 मिनट
'वाव! क्या कमाल फोटोग्राफ क्लिक किया है।' ये लाइन आपके मुंह से बरबस ही तब निकल पड़ती है, जब फोटोग्राफर ने आपकी तस्वीर परफेक्ट एंगल, विजन, लाइट सहित फोटोग्राफी के सभी आस्पेक्ट्स के सही सामंजस्य के साथ क्लिक की हो। इनमें से किसी भी पहलू में कमी रह गई तो जाहिर है फोटो या तो ब्लर (धुंधली) आएगी या फिर ऐसी आएगी, जिसे देखकर आप खुद सोच में पड़ जाओगे। 'द लंच बॉक्स' फेम डायरेक्टर रितेश बत्रा की फिल्म 'फोटोग्राफ' की स्थिति भी कुछ-कुछ ब्लर फोटो जैसी ही है। यानी इस फिल्म में फीलिंग्स तो हैं, पर सतही। रितेश ने 'द लंच बॉक्स' में खाने के डब्बे के रास्ते बेहद प्यारी प्रेम कहानी प्रस्तुत की थी। 'फोटोग्राफ' की प्रेम कहानी भी अलहदा किस्म की है, लेकिन इसकी गति इतनी धीमी है कि एक समय पर आकर दर्शकों को कोफ्त होने लगती है।
चेहरे पर यह धूप दोबारा नहीं पड़ेगी...
कहानी में रफी (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया पर आने वाले लोगों की तस्वीर क्लिक करके अपनी रोजी-रोटी चलाता है। वो वहां आने वाले सब लोगों को यह कहता है, आपके चेहरे पर यह धूप दोबारा नहीं पड़ेगी, ये हवा इस तरह आपके बाल नहीं उड़ाएगी। ये सब एक तस्वीर में कैद कर लीजिए। इसी तरह वह एक दिन वहां आई सीए स्टूडेंट मिलोनी (सान्या मल्होत्रा) का फोटोग्राफ क्लिक करता है। मिलोनी ब्रिलिएंट स्टूडेंट है और सीए फाउंडेशन में टॉप कर चुकी है। इधर, रफी की दादी (फर्रुख जफर) लगातार उस पर निकाह कर लेने के लिए दबाव बना रही है। वह चाहती हैं कि उनके पोते का घर बस जाए, मगर रफी पहले कर्ज चुकाना चाहता है। रफी की जिद से परेशान दादी अपनी दवाइयां खाना बंद कर देती है। ऐसे में मजबूरन एक दिन रफी दादी को खत लिखता है और मिलोनी की फोटो खत के साथ यह लिखकर भेज देता है कि उसे मुंबई में यह लड़की पसंद आ गई है। इसके बाद मिलोनी से मिलने दादी मुंबई आने को बोल देती है। रफी परेशान हो जाता है। आखिर वह मिलोनी को सारी बात बता कर दादी से मिलने के लिए राजी कर लेता है। इसके बाद कहानी अलग मिजाज के इश्क की भीनी-भीनी महक लिए आगे बढ़ती है।लचर स्क्रीनप्ले और स्लो स्पीड से होती है बोरियत
कहानी सिम्पल है, लेकिन स्क्रीनप्ले में कसावट नहीं है। रेंग-रेंग कर आगे बढ़ती कहानी सुस्ती का अहसास कराने लगती है। इस दौरान कब आपको झपकी आ जाए, कह नहीं सकते। रितेश का डायरेक्शन साधारण है। कुछ दृश्य तो फिजूल ही हैं। बैकग्राउंड स्कोर कहानी के मिजाज से समन्वय रखता है। मुंबई की बारिश, चाय, पकौड़े, कुल्फी, गोला आदि को किरदारों के साथ कहानी में बुनने का प्रयास किया है, जो रोमांस की खूबसूरती दर्शाता है। नवाज और सान्या ने अच्छी एक्टिंग की है। दोनों के किरदार में कई लेयर्स हैं। एक तरफ तो उनके मन में कुछ चल रहा होता है, दूसरी ओर वे उसे भीतर ही रखने की कोशिश करते हैं। प्यार की भावना के कारण दोनों साथ में खूब वक्त गुजारते हैं, लेकिन उसका इजहार नहीं करते। फिल्म के बैकग्राउंड में पुराने फिल्मी गीत चलते रहते हैं, जो दोनों किरदारों की फीलिंग्स को सपोर्ट करते हैं। रफी की दादी के रोल में फर्रुख जफर कुछ हद तक फिल्म 'बधाई हो' की सुरेखा सीकरी की याद दिलाती हैं। गांव में रहने वाली भोली-भाली बुजुर्ग महिला का किरदार उन्होंने बखूबी जीवंत किया है। उनकी कहानी में एंट्री से हंसगुल्ले छूटने लगते हैं। मिलोनी के टीचर के रोल में जिम सरभ के पास करने को कुछ नहीं है। सपोर्टिंग कास्ट का काम ठीक है। कैमरा वर्क आकर्षक है। मुंबई की बारिश, सड़कों और गेटवे ऑफ इंडिया आदि का फिल्मांकन शानदार है। एडिटिंग के मामले में फिल्म ढीली है।क्यों देखें : राइटिंग पर थोड़ा और फोकस करने की जरूरत थी। दोनों लीड एक्टर्स की कैमिस्ट्री तो अच्छी है, लेकिन कहानी बुनते समय खामोशी को ज्यादा तवज्जो दे दी, जिससे दोनों के किरदार दर्शकों से वो जुड़ाव नहीं रख पाते, जैसा 'द लंचबॉक्स' के किरदारों के साथ हुआ था। बहरहाल, अगर आप कुछ अलग किस्म की फिल्म देखना पसंद करते हैं तो ही 'फोटोग्राफ' देखने का मन बनाएं।
रेटिंग: ★★
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