'लैला मजनू' : पागलपन है, प्रेम नहीं
- डायरेक्शन : साजिद अली
- स्क्रीनप्ले : इम्तियाज अली-साजिद अली
- म्यूजिक : नीलाद्रि कुमार, जोए बरूआ
- सिनेमैटोग्राफी : सायक भट्टाचार्य
- लिरिक्स : इरशाद कामिल
- बैकग्राउंड स्कोर : हितेश सोनिक
- स्टार कास्ट : अविनाश तिवारी, तृप्ति डिमरी, परमीत सेठी, सुमित कौल, मीर सरवर, साहिबा बाली, बेंजामिन गिलानी
- रनिंग टाइम : 139.57 मिनट
जब भी प्रेम कहानियों का जिक्र होता है तो हमारे जेहन में सबसे पहले 'लैला-मजनू', 'हीर-रांझा, 'शीरीं-फरहाद', 'सोहनी-महिवाल' का नाम आता है। शायद इसीलिए जाने-माने निर्देशक इम्तियाज अली ने फिल्म 'लैला मजनू' को प्रजेंट किया है, जिसका निर्देशन उनके भाई साजिद अली ने किया है। हालांकि फिल्म की लचर कहानी के कारण 'लैला मजनू' प्यार के उस अहसास से दर्शकों को रूबरू नहीं कराती, जो इन अमर प्रेम कहानियों की खासियत है। फिल्म की कहानी कश्मीर से शुरू होती है। वहां लैला (तृप्ति डिमरी) कॉलेज गोइंग गर्ल है। वह चंचल स्वभाव की है और उसे लड़कों को अपने पीछे दौड़ाने में मजा आता है। दूसरी ओर, कैस (अविनाश तिवारी) बिगड़ैल रईसजादा है। उसके पिता बिजनेसमैन हैं और उनका लैला के पिता से छत्तीस का आंकड़ा है। एक रात लैला एक्सीडेंटली कैस से टकरा जाती है। कैस लैला पर लट्टू हो जाता है और वह लैला का पीछा करना शुरू कर देता है, जो लैला को नागवार होता है। हालांकि थोड़ी नोक-झोंक के बाद उनकी मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो जाता है और दोनों में प्यार पनपने लगता है। उनके प्यार की भनक लैला के पिता को लग जाती है। फिर कहानी ऐसा मोड़ लेती है, जिससे दोनों की जिंदगी एकदम बदल जाती है।
लिखावट में कसावट नहीं
स्टोरी और स्क्रीनप्ले फिल्म का कमजोर पक्ष है। स्क्रीनप्ले एंगेजिंग नहीं है, जिससे फिल्म देखते समय प्यार के अहसास का माहौल ही नहीं पनप पाता। साजिद का निर्देशन ठीक-ठाक है, लेकिन इम्तियाज-साजिद लिखावट में कसावट नहीं ला पाए। हालांकि पूरी फिल्म में इम्तियाज की फिल्म मेकिंग स्टाइल और फ्लेवर फील होता है। मॉडर्न एरा पर बेस्ड 'लैला मजनू' की इस कहानी में अविनाश तिवारी ने मजनू का किरदार अच्छे से जीया है। कई दृश्यों में वह जबरदस्त लगे हैं, वहीं लैला की भूमिका में तृप्ति डिमरी ने सहज अभिनय किया है। परमीत सेठी ने लैला के पिता का रोल बखूबी निभाया है। फिल्म को कश्मीर में फिल्माया गया है। वहां की खूबसूरती फिल्म का प्लस पॉइंट है। सिनेमैटोग्राफी अट्रैक्टिव है। गीत-संगीत औसत है, जो कि लव स्टोरी बेस्ड फिल्म के लिहाज से ठीक नहीं माना जा सकता। 'हाफिज हाफिज' सॉन्ग ही थोड़ा बहुत हिट हुआ है। फिल्म की रफ्तार धीमी है, जिसे एडिटिंग टेबल पर दुरुस्त किया जा सकता था।क्यों देखें : रोमांटिक स्टोरी तभी असरदार होती है, जब वह दर्शकों के दिलों को छुए। 'लैला मजनू' प्यार की गहराई को दर्शाने में नाकाम रही है। फिल्म में पागलपन तो दिखता है, पर प्यार नहीं। ऐसे में 'लैला मजनू' के रूप में नई जोड़ी के लिए देख सकते हैं यह फिल्म।
रेटिंग: ★★
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