कमजोर कहानी की बाढ़ में बही 'केदारनाथ', अपनी परफॉर्मेंस से सारा ने खुद को बचाया

केदारनाथ त्रासदी सिनेमा के लिहाज से एक अच्छा सब्जेक्ट है, जिस पर बेहतरीन फिल्म बन सकती थी लेकिन निर्देशक अभिषेक कपूर इसमें नाकाम रहे हैं।

  • डायरेक्शन : अभिषेक कपूर
  • स्टोरी : अभिषेक कपूर, कनिका ढिल्लों
  • स्क्रीनप्ले-डायलॉग्स : कनिका ढिल्लों
  • म्यूजिक : अमित त्रिवेदी
  • बैकग्राउंड स्कोर : हितेश सोनिक
  • सिनेमैटोग्राफी :  तुषार कांति रे
  • एडिटिंग : चंदन अरोड़ा   
  • स्टार कास्ट : सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान, नीतीश भारद्वाज, अल्का अमीन, सोनाली सचदेव, पूजा गौर, निशांत दहिया
  • रनिंग टाइम : 120.31 मिनट
सैफ अली खान और उनकी पहली पत्नी अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान ने फिल्म 'केदारनाथ' से एक्टिंग में डेब्यू किया है। अभिषेक कपूर निर्देशित यह फिल्म साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में आई बाढ़ पर आधारित है, जिसे प्रेम कहानी के साथ पिरोकर प्रस्तुत किया गया है। यह ऐसा विषय था, जिस पर बेहतरीन फिल्म बन सकती थी लेकिन कमजोर कहानी के कारण 'केदारनाथ' उसी तरह तहस-नहस हो गई, जैसे बाढ़ ने तबाह किया था। इन सबके बीच सारा अपनी परफॉर्मेंस से दिल जीतने में कामयाब रही हैं। फिल्म की कहानी में पिट्ठू मंसूर (सुशांत सिंह राजपूत) श्रद्धालुओं को मंदिर तक लाने-ले जाने का काम करता है। वहीं मंदिर के पंडितजी (नीतीश भारद्वाज) की बेटी मंदाकिनी उर्फ मुक्कु (सारा अली खान) हमेशा अपनी मर्जी का करती है। पंडितजी ने मुक्कु की मंगनी कुल्लू (निशांत दहिया) से तय कर रखी है लेकिन मुक्कु को वह पसंद नहीं है। फिर मंसूर और मुक्कु की मुलाकात होती है। मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता है और दोनों धीरे-धीरे बेपनाह प्यार में डूब जाते हैं। इसके बाद उनके प्यार के आड़े आ जाती है मजहब की दीवार। इसके बाद कहानी कुछ मोड़ के साथ अपने अंजाम तक पहुंचती है।

प्रेम कहानी का घिसा-पिटा फॉर्मूला

फिल्म में प्रेम कहानी का घिसा-पिटा फॉर्मूला इस्तेमाल किया है। स्क्रीनप्ले में भी काफी लूपहोल्स हैं। पहला हाफ धीमा है। दूसरे हाफ में बाढ़ के दृश्य जरूर प्रभावित करते हैं। इन दृश्यों में विजुअल इफेक्ट्स असरदार हैं। निर्देशक अभिषेक कपूर ने 'रॉक ऑन!!', 'काई पो छे' जैसी अच्छी फिल्में बनाई हैं तो 'फितूर' जैसी डिजास्टर लव स्टोरी भी निर्देशित की है। 'केदारनाथ' में उनका डायरेक्शन एवरेज है। फिल्म में प्रलय को कहानी के बैकड्रॉप में रखा है, पर इसे सतही तौर पर ही छुआ गया है। एक्टिंग की बात करें तो सारा पहली ही फिल्म में काफी कॉन्फिडेंट लगी हैं और सहज अभिनय किया है। उनकी परफॉर्मेंस में मां अमृता सिंह जैसी शोखियां व बांकपन नजर आता है। फिल्म की जान सारा और वीएफएक्स हैं। सुशांत सिंह का काम ठीक है लेकिन उनके किरदार पर और काम किया जा सकता था। गीत-संगीत औसत है, जो लव स्टोरी के लिहाज से एक कमजोरी है। हिमालय की खूबसूरत वादियों का फिल्मांकन आकर्षक है।

क्यों देखें : फिल्म में न तो केदारनाथ की त्रासदी का दर्द पूरी तरह से उभर कर आया है, न ही प्रेम कहानी में गहराई है। कुल मिलाकर यह फिल्म एक अच्छे विषय की भ्रूण हत्या की तरह है। अगर आप सारा की डेब्यू परफॉर्मेंस देखना चाहते हैं तो 'केदारनाथ' देख सकते हैं।

रेटिंग: ½